काव्य-रचना

काव्य-रचना

      पत्थर हूं    
पत्थर हूं टूटकर जुड़ना 
मुनासिब न होगा
खुदपरस्त दुनियां में 
सफगोई से 
कुछ हासिल न होगा
पत्थर हूं ......

उनसे कह दो चालों के 
नश्तर न चलाएं,
लकीरों के सिवा उन्हें 
कुछ हासिल न होगा
पत्थर हूं......

जिन हाथों ने मुझे 
संभाला था बार बार
सबने समझा कि वह
मेरा कातिल न होगा
पत्थर हूं .......

उम्रभर इश्क ए सफ़र में 
बस चलना ही है "बाबू"
इस दरिया का कभी
कोई साहिल न होगा
पत्थर हूं.......

जय बाबू