काव्य रचना
जीवन खुशियों का एक पैगाम है...
जीवन खुशियों का एक पैगाम है
बैर जो मुझसे है मन में तेरे,
लहू से मेरे उसको धो लेना,
कर सके न जो वार तुम सीने,
खंजर वो पीठ में मेरे भोंक देना।
काटों संग हम मुस्काते हैं,
फूलों की खुशबू हो तुम्हें मुबारक,
रहते हैं हम अपने गुलिस्ता में,
जहां की खुशियां हो तुम्हें मुबारक।
दूर जो होना चाहो रहो दूर सही,
पास होने को मैं मजबूर नहीं,
साथ हाथ बढ़ाने से होता है,
रिश्तो में समझौता मुझको मंजूर नहीं ।
न थकता हूं, न रूकता हूं,
डगर कैसी भी हो चलता हूं,
बाधाएं क्या डरायेंगी मुझको कभी,
दर्द सहकर भी मैं हंसता हूं ।
समय का न कोई मोल है,
समय का न कोई तोल है,
समय को जो समझ सके,
जग में वो सबसे अनमोल है ।
जीवन न एक संग्राम है,
जीवन न एक अंजाम है,
जोड़ – तोड़ न कर सकता कोई,
जीवन खुशियों का एक पैगाम है ।।
-राकेश कुशवाहा ‘ऋषि’