काव्य रचना
आओ आर्द्रता!
आर्द्रता! आओ! मुझसे प्यार करो!
मैं लोहा हूँ
मुहब्बत की मिट्टी में मेरा मुरचा मुस्कुराता है
मेरे इश्क की इच्छा है कि मैं धरती में धँसूँ
और इस्पात हो जाऊँ
फिर अग्नि में तप कर अस्त्र-शस्त्र में परिवर्तित हो जाऊँ
जैसे कोई शब्द संगीत में सार्थक हो जाता है
विरह वेदना की कसौटी पर प्रेम पवित्र वस्तु है
सृष्टि की शाश्वत सुगंध मनुष्यता की महक है
मगर मौसम में मित्रता की चहक है
एक दिन दोस्त की दरिद्रता ने दहाड़ते दर्द को देखा
कि वह दुनिया के दुख को दीपक में बदल रहा है
जहाँ उसकी आँखें पढ़ रही हैं कि
औचित्य की शिला पर पीड़ा की पंक्ति
स्याह संवेदना की सूक्ति है
युवावस्था में भावुकता की प्रधानता से मुक्ति है
पर पर्वत के पास नदी की प्यास है
समय की साँसों में वासंतिक वासना का वास है
तन में ताप है
मन में तरी है
चिंता हरी-भरी है
रूह रेगिस्तानी राही के लिए रेत से रस निचोड़ रही है
धूप में रूप पुकार रहा है
आर्द्रता! आओ! मुझसे प्यार करो!
मैं दोहा हूँ
मेरा नया छंद संवेदना के सलवार का नाड़ा है
कविता मेरे लिए कलम की कुश्ती का अखाड़ा है!
गोलेन्द्र पटेल