महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ ने पूरे किए 101 साल, वेदमंत्रों और कुरान की आयत के साथ बापू ने रखी थी नींव
वाराणसी (रणभेरी): वाराणसी का यह विश्वविद्यालय भारत का पहला ऐसा संस्थान था जो अंग्रेजों के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के केंद्र के रूप में स्थापित काशी विद्यापीठ ने अपने 101 साल पूरे कर लिए हैं। जो कि विशुद्ध रूप से भारतीयों की पहल और धन पर स्थापित हुआ था।ग्रेजों में विद्यापीठ का इतना खौफ भर गया था कि यहां से पढ़ाई करने वाले छात्रों को कोई सरकारी नौकरी नहीं मिलती थी। विद्यापीठ की स्थापना पर बात करते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व विशेष अधिकारी डॉ. विश्वनाथ पांडेय कहते हैं कि देश भर में असहयोग आंदोलन चरम पर था। अंग्रेजी व्यवस्था के विरोध में छात्रों ने स्कूल और कॉलेज का बहिष्कार कर दिया था।इस आंदोलन को गति देने के लिए देश में राष्ट्रीय शिक्षा देने की बात उठी। गांधी जी ने तब शिव प्रसाद गुप्त के साथ मिलकर भारतीय पद्धति से शिक्षा दिलाने के लिए महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ स्थापित किया।
विश्वविद्यालय ने देश को कई विभूतियां दीं तो स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई।बापू और राष्ट्ररत्न के मूल्यों की नींव पर स्थापित काशी विद्यापीठ नई शिक्षा नीति के साथ नए आयाम की ओर अग्रसर है। वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ भट्टाचार्य ने बताया कि काशी विद्यापीठ की स्थापना 10 फरवरी 1921 वसंत पंचमी को भदैनी स्थित किराये के मकान में हुई।सुबह आठ बजे वेद मंत्र व कुरान की आयतों के उच्चारण के साथ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इसकी आधारशिला स्वयं रखी थी। समारोह में पं. मोती लाल नेहरू, मौलाना मोहम्मद अली, सेठ जमनालाल बजाज, मौलाना अब्दुल कमाल आजाद, पं. जवाहर लाल नेहरू शामिल हुए थे।
डॉ. पांडेय बताते हैं कि काशी विद्यापीठ के साथ ही महात्मा गांधी ने गुजरात और बिहार विद्यापीठ की भी स्थापना की थी। उस समय भारतीय शिक्षाविद और देश प्रेमियों ने इस विश्वविद्यालय का मैनेजमेंट संभाला जाता था। उस समय विद्यापीठ में छात्रों के बढ़े रूझान देखकर अंग्रेजी सरकार काफी घबरा गई थी। गांव-गांव से आए छात्रों ने ब्रिटिश सरकार को उखाड़कर फेंकने का हर प्रयास किया। खतरे को भांपते हुए अंग्रेजों ने कुछ समय बाद ही विद्यापीठ पर कड़ी निगरानी करना शुरू कर दी। यहां से स्नातक करने वाले छात्रों को नौकरी देने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। चंद्रशेखर आजाद समेत यहां के कई क्रांतिकारियों को आए दिन जेल और दंड मिलता रहता था।