फिल्म रिव्यू : ‘तेरे इश्क में’- शानदार अभिनय, कमजोर कहानी; धनुष-कृति प्रभावी, क्या मिली ‘रांझणा’ वाली कसक?
(रणभेरी): प्रेम जितना गहरा, उतना ही दर्द देने वाला-इसी थीम पर बनी आनंद एल राय की नई फिल्म ‘तेरे इश्क में’ एक बार फिर रिश्तों की उलझनों, प्यार के तूफान और भीतर की टूटन को पर्दे पर लाती है। निर्देशक का सिग्नेचर इमोशनल टच इस फिल्म में भी नजर आता है, लेकिन पिछले कामों खासकर ‘रांझणा’ की कसक, प्रवाह और संगीत की ऊंचाई के सामने यह फिल्म कई जगह ठहर नहीं पाती।
कहानी की शुरुआत होती है शंकर गुरुक्कल (धनुष) से गुस्सैल, अनियंत्रित और कॉलेज का सबसे खतरनाक छात्र नेता। उसके बिल्कुल उलट मुक्ति बेनीवाल (कृति सैनन) है एक समझदार शोध छात्रा, जिसका विश्वास है कि हिंसा इंसान की फितरत नहीं बल्कि परिस्थिति है और इसे बदला जा सकता है। एक घटना के बाद दोनों की राहें टकराती हैं। मुक्ति फैसला करती है कि वह शंकर को बदलकर अपने रिसर्च की थीसिस साबित करेगी। शंकर सच में बदलता है, उसका गुस्सा कम होता है और दिल में मुक्ति के लिए गहरा प्रेम जन्म लेता है। लेकिन दिल तोड़ देने वाला सच सामने आता है कि यह बदलाव प्रेम के कारण नहीं बल्कि शोध के लिए किया गया प्रयोग था। यह खुलासा शंकर को भीतर तक चकनाचूर कर देता है।
सात साल बाद दोनों दोबारा आमने-सामने आते हैं, पर इस बार मुलाकात में प्यार की जगह दर्द, विश्वासघात और पुराने घाव हैं। दूसरे हिस्से में फिल्म इमोशनल होती जरूर है, लेकिन कुछ दृश्य अविश्वसनीय प्रतीत होते हैं और लंबाई कहानी की गति को कमजोर करती है।

फिल्म के अभिनय की बात करें तो यह इसकी सबसे बड़ी ताकत बनकर सामने आता है। धनुष ने शंकर के गुस्से, टूटन और प्रेम की बेचैनी को इतनी तीव्रता से जिया है कि कई सीन लंबे समय तक याद रहते हैं। कृति सैनन ने मुक्ति के नाजुक लेकिन मजबूत व्यक्तित्व को सहज और खूबसूरती के साथ निभाया है। प्रकाश राज और प्रियांशु पैन्यूली सहित अन्य कलाकार भी प्रभाव छोड़ते हैं, हालांकि कुछ सहायक पात्रों को लेखन बेहतर बनाया जा सकता था।
निर्देशन के मामले में फिल्म का पहला हिस्सा बेहद मजबूत है। शंकर को ‘सब्जेक्ट’ बनाना, इंटरवल से पहले का टकराव और बार वाला दृश्य दर्शकों के मन पर गहरी छाप छोड़ते हैं। लेकिन दूसरे हिस्से में कहानी बिखरती है और घटनाएं सिनेमाई बनावटीपन का एहसास कराती हैं। कैमरा वर्क और प्रोडक्शन डिजाइन बेहतरीन हैं, मगर 169 मिनट की अवधि एडिटिंग की कमी का एहसास दिलाती है।
संगीत फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी साबित होता है। ए. आर. रहमान का संगीत सुंदर होने के बावजूद यादगार नहीं बन पाता। “जिगर ठंडा” और “चिन्नावेरे” असर छोड़ते हैं, लेकिन ‘रांझणा’ के “तुम तक”, “बनारसिया” और “रांझणा हुआ” जैसी कसक यहां महसूस नहीं होती। सबसे बड़ी कमी यह कि फिल्म का टाइटल ट्रैक “तेरे इश्क में”, जिसे प्रमोशन में बेहद हाईलाइट किया गया, फिल्म में उतनी प्रभावी तरह से इस्तेमाल ही नहीं हो पाया।
कुल मिलाकर ‘तेरे इश्क में’ एक गहरी और भावनात्मक प्रेम कहानी है, जिसमें दमदार अभिनय, कुछ यादगार दृश्य और शानदार तकनीकी प्रस्तुति मौजूद है। हालांकि कमजोर दूसरा हिस्सा, लंबी अवधि और औसत संगीत इसे ‘रांझणा’ जैसे जुनूनी जादू तक नहीं पहुंचने देते। फिल्म दिल से बनाई गई है, पर दर्शकों को वह उफान, वह दर्द और वह अमिट संगीत नहीं मिल पाता जिसकी वे उम्मीद लेकर थिएटर पहुंचते हैं।











