पर्यावरण प्रहरी: BHU की एक प्रोफ़ेसर कर रही गुड़हल की पौध का लालन की तरह पालन
बीएचयू की प्रोफेसर हर रोज़ करतीं हैं अपने पौध पुत्र से बात, मालवीय भवन में रोपा था बिरवा
वाराणसी (रणभेरी): भारतीय संस्कृति में पर्यावरण, अध्यात्म, धर्म और दर्शन का बहुत बडा महत्व है। हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भगवतगीता में वर्णित है अपने बैंकुठ धाम जाने से पूर्व भगवान श्रीकृष्ण दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए। भगवान बुद्ध और महावीर को भी एक वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान लगाने से उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। वैदिक काल से असंख्य ऋषियों और मुनियों ने भी किसी ना किसी वृक्ष के नीचे तपकर ज्ञान अर्जित किया था। हिन्दू में माना जाता है वृक्ष में भी आत्मा का वास होता है। वृक्ष अति संवेदनशील होते हैं, प्रत्येक वृक्ष का गहराई से विश्लेषण करके हमारे ऋषियों ने यह जाना पीपल और वट वृक्ष सभी वृक्षों में सबसे विशेष है। कुछ इसी तरह की बीड़ा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय इतिहास विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. जयलक्ष्मी कौल ने उठाया है। बीएचयू में इतिहास विभाग की वरिष्ठ प्रोफ़ेसर अरुणा सिन्हा के निर्देशन में पोस्ट डाक्टोरोल अध्ययन के दौरान वर्ष 2012 में डॉ. जयलक्ष्मी कौल ने अपने घर में गमले में लगाई एक गुड़हल की एक पौध को बीएचयू मालवीय भवन के तत्कालीन मानद निदेशक प्रो. विन्ध्येश्वरी प्रसाद मिश्र की अनुमति से भवन परिसर में ही रोपित की थी। आज वह गुड़हल का पौधा बड़े वृक्ष का स्वरूप धारण कर लिया है।
डॉ. जयलक्ष्मी कौल ने बताया कि बीएचयू में अध्ययन के दौरान घर जाते समय दुर्गाकुंड से मैंने एक छोटा सा गुड़हल का पौधा लेकर घर में गमले में रोपित किया। संयोग की बात है कि गुड़हल के पौधे से पहला फूल एकादशी के दिन खिला। सचमुच वह नन्हा गुड़हल का पौधा मुझे किसी बच्चे की तरह आकर्षित किया और मैंने उसका नाम टूटू रख दिया। मालवीय भवन में गुड़हल का पौधा रोपित करने के बाद प्रतिदिन डॉ. जयलक्ष्मी उस पौधे को पानी देने के साथ ही श्रीमद्भागवत गीता का श्लोक और श्रीराम चरित मानस की चौपाई सुनाती है। बीएचयू पीएचडी करने के बाद डा जयलक्ष्मी कौल की नियुक्ति वर्ष 2015 में बीएचयू के इतिहास विभाग में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में हुई। इसके पूर्व डॉ. जयलक्ष्मी ने वाराणसी के बलदेव पीजी कॉलेज में भी अध्यापन का कार्य किया है। अपने अध्ययन काल से अध्यापन में आने के बाद भी डॉ. जयलक्ष्मी हर रोज़ बीएचयू परिसर स्थित मालवीय भवन में आती हैं और अपने द्वारा रोपित गुड़हल के पेड़ को पुचकारती है दुलारती है इसके बाद उसे गीता का श्लोक और रामायण की चौपाई सुनाती है। डॉ. कौल ने बताया कि जब पहली बार गमले से निकालकर गुड़हल के पौधे को मालवीय भवन में रोपित की थी तो मेरा घर सूना सूना सा हो गया था, करीब एक सप्ताह तक मैंने खाना ही छोड़ दिया था। उन्होंने बताया कि मालवीय भवन के वरिष्ठ सहायक स्वतंत्र कुमार श्रीवास्तव के मार्गदर्शन से परिसर में उसको जीवन दे पायी। कहा कि प्रदूषण के चलते तमाम तरह की बीमारियों से लोग ग्रसित हो रहे हैं। पर्यावरण को अध्यात्म से जोड़ने की जरूरत है। तभी ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से बचा जा सकेगा। इसके अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है।
हरेंद्र शुक्ला