पं. किशन महाराज का जन्म दिन को शताब्दी वर्ष के रूप में मनाया जाएगा....

 पं. किशन महाराज का जन्म दिन को शताब्दी  वर्ष के रूप में मनाया जाएगा....

वाराणसी (रणभेरी): आज तबले की थाप से संगीत की दुनिया में एक अलग ही मुकाम स्थापित करने वाले, बनारस घराने के सुप्रसिद्ध तबला वादक पंडित किशन महाराज की जयंती है। पंडित किशन महाराज की जयंती पर आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है, इसी कड़ी में मध्यप्रदेश के नेताओं उन्हें शत-शत नमन किया है।

पद्मविभूषण पं. किशन महाराज को जितनी महारत तबले पर हासिल थी, उतना ही दखल वह सामाजिक सरोकारों में भी रखते थे। कारगिल युद्ध के दौरान बनारस में उन्होंने सबसे पहले सेना के लिए फंड जुटाने की शुरुआत की थी। उन्होंने झोली फैलाकर खुद सेना के जवानों के लिए चंदा जुटाया था। उनकी पहल का ही असर था कि पूरा बनारस अभियान में जुड़ता चला गया। पं. किशन महाराज की बेटी अंजली महाराज ने बताया कि पापा की अंगुलियां भले ही खामोश हो गई हों, लेकिन तबले की थाप आज भी उसी तरह से कानों में गूंजती है। बनारस की माटी की ही तासीर थी जो उनके स्वभाव में झलकती थी। सहजता के साथ ही फक्कड़पन और अक्खड़पन को हर कोई महसूस कर सकता था। किसी कलाकार का दर्द हो तो वह सबसे पहले मदद को खड़े हो जाते थे।

तबले के इन बोलों का जन्म काशी के कबीरचौरा स्थित पद्मगली में ही हुआ है। इन बोलों को विश्वस्तर पर पहचान दिलाने वाले बनारस घराने के प्रख्यात तबला वादक पद्मविभूषण पंडित किशन महराज की आज 99वीं जयंती है। इस साल काशी में उनका जन्म शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। उनका जन्म काशी में ही 3 सिंतबर, 1923 को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर रात को ठीक 12 बजे हुआ था। आज शाम साढ़े 6 बजे से जन्म शताब्दी वर्ष का कार्यक्रम कबीरचौरा स्थित सरस्वती कक्ष से शुरू हो जाएगा। यह पूरे एक साल तक चलेगा। सारी दुनिया पद्मासन मुद्रा में तबले का वादन करती है, मगर इसके उलट पं. किशन महराज घुटनों के बल बैठकर तबले पर संगीत की नुमाइश किया करते थे। किशन महराज ने नीचा नगर, आंधियां और बड़ी मां जैसी फिल्मों में भी तबला वादन का काम किया।

वीणा साधिका, राधिका बुधकर के 2009 में छपे एक लेख के अनुसार, ''किशन महराज की पहली प्रस्तुति संकट मोचन संगीत समारोह में हुई। उसी के बाद उन्हें मुंबई में ब्रेक मिला। यही उनके कॅरियर का टर्निंग प्वाइंट था। काशी में 23 साल बिताने के बाद 1946 में वह मुंबई पहुंचे। वहां पर किशन महराज की मुलाकत प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक भारतरत्न पंडित रविशंकर से हुई।" "मंच पर इतनी जोरदार संगत हुई कि दर्शकदीर्घा में बैठे श्रोता स्तब्ध हो गए। वहां बैठे ग्वालियर घराने के हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के पुरोधा पंडित ओंकारनाथ ठाकुर उठकर मंच पर आए और एलान कर दिया कि ये दोनों बच्चे भविष्य में भारतीय शास्त्रीय संगीत के चमकते सितारे होंगे।''

प्रमुख सम्मान- 1973 में पद्मश्री, 1984 में केंद्रीय संगीत नाटक पुरस्कार, 1986 में उस्ताद इनायत अली खान पुरस्कार, 2002 में पद्मविभूषण दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार, ताल विलास, उत्तरप्रदेश रत्न, उत्तर प्रदेश, गौरव, भोजपुरी रत्न, भागीरथ सम्मान और लाइफ टाइम अचीवमेंट सम्मान भी उन्हें मिले।