बिना माहौल भांपे दिखाया अति आत्मविश्वास, फिसल गई भाजपा-रणनीतिकार लाभार्थी बने गेम चेंजर

बिना माहौल भांपे दिखाया अति आत्मविश्वास, फिसल गई भाजपा-रणनीतिकार लाभार्थी बने गेम चेंजर

गोरखपुर।  लोकसभा चुनाव के परिणाम भाजपा के रणनीतिकारों के लिए भी झटका है। गोरखपुर और बांसगांव लोकसभा सीट पर पार्टी जैसे-तैसे जीती जरूर, लेकिन पिछले मुकाबलों से वोट घट गए। दरअसल रणनीतिकार माहौल ही नहीं भांप पाए। वे यह मान बैठे थे कि सवर्ण वोटर तो उनके साथ हैं ही, जनवरी में श्रीराम मंदिर के भव्य निर्माण से धार्मिक भावना मजबूत होने से हिंदू समाज एकमुश्त उनके पक्ष में ही वोट करेगा। इस अति आत्मविश्वास ने पार्टी को घुटनों पर लाकर खड़ा कर दिया। रणनीतिकारों को सरकार की राशन योजना पर भी भरोसा था, लेकिन वे महंगाई और रोजगार के लिए परेशान युवाओं की समस्या को भूल गए। रही-सही कसर टिकट वितरण में मनमानी ने पूरी कर दी। शायद वे यह मान बैठे थे कि जिसे भी भाजपा के टिकट पर खड़ा कर दिया जाएगा, वोटर आंख मूंदकर उसके निशान पर बटन दबा देंगे। इसके विपरीत विपक्षी इंडिया गठबंधन ने उम्मीदवार चयन से लेकर लोगों की नाराजगी तक का पूरा ख्याल रखा और पिछड़े व अनुसूचित वोटरों को यह समझाने में सफल रहे कि अगर भाजपा जीती तो उनका अधिकार सुरक्षित नहीं रहेगा।

युवाओं की नाराजगी भांप नहीं पाए
पेपर लीक मामले को लेकर भाजपा ने जहां सुरक्षात्मक रुख अपनाया, वहीं विपक्ष ने इसे हर मंच से उठाया। नौकरी नहीं मिलने से परेशान युवाओं को राहुल-अखिलेश की यह बात पसंद आई। यह नाराजगी सत्ता पक्ष को भारी पड़ी

काम नहीं आया अयोध्या दर्शन का दांव
22 जनवरी को अयोध्या में श्रीराम लला की स्थापना का देशभर में लाइव टेलिकास्ट कराने के बाद संगठन के स्तर पर हर लोकसभा क्षेत्र से कार्यकतार्ओं को अयोध्या भेजा गया। नजदीक के लोग बसों से, जबकि दूर के लोगों को ट्रेनों से भेजा गया। अकेले गोरखपुर स्टेशन से होकर करीब ढाई लाख श्रद्धालुओं को अयोध्या भेजा गया। चुनाव बाद फिर लोगों को अयोध्या घूमाने की बात हर सभा में कही गई, लेकिन लोगों पर इसका फर्क नहीं पड़ा।

उम्मीदवारों से नाराजगी और अंदरूनी कलह का नहीं खोजा विकल्प
गोरखपुर लोकसभा सीट वैसे तो पूरी तरह से गोरखनाथ मंदिर के प्रभाव वाली मानी जाती है, लेकिन वर्ष 2018 के उपचुनाव में यहां निषाद पार्टी ने सपा के समर्थन के दम पर भाजपा प्रत्याशी उपेंद्र दत्त शुक्ल को हरा दिया था। वर्ष 2019 में पार्टी ने यहां से भोजपुरी फिल्म स्टार रवि किशन को टिकट दिया था। पार्टी ने उन्हें दोबारा प्रत्याशी बनाया। इसी तरह तीन बार से बांसगांव से जीत रहे कमलेश पासवान को भी मौका दिया गया, जबकि क्षेत्र में इनके प्रति काफी नाराजगी थी। उम्मीदवारी की घोषणा के साथ ही अंदरुनी कलह की खबरें बाहर आने लगी थीं। मतदान के दिन तक कई पदाधिकारी व जन प्रतिनिधि मैदान में सक्रिय नहीं दिखे। हालांकि गोरखनाथ मंदिर का प्रभाव होने के चलते यह सीट भाजपा जीत गई, लेकिन जीत-हार के अंतर में पिछले साल के मुकाबले काफी कमी आई। वहीं कमलेश से निराश कार्यकर्ता घर बैठ गए। मतदान से तीन से चार दिन पहले कार्यकर्ता सक्रिय हुए, तब तक भाजपा के कोर वोटर दूर जा चुके थे। नतीजा यह रहा कि वे मामूली अंतर से जीते।

जातीय समीकरण साधने में कामयाब रहा इंडी गठबंधन
गोरखपुर सीट पर भाजपा के कोर वोटरों के अलावा करीब तीन लाख निषाद वोटरों से भी उम्मीद थी। जबकि, सपा ने काजल निषाद को प्रत्याशी बना दिया था। भाजपा प्रदेश प्रवक्ता समीर सिंह कहते हैं कि विपक्ष ने पूरे चुनाव में जाति-धर्म की राजनीति की, जबकि भाजपा विकास की बात करती रही। भाजपा को यह विश्वास था कि निषाद वोटर उसके साथ ही हैं। कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष विश्वविजय सिंह का कहना था कि इस बार अनुसूचित व पिछड़ी जाति के लोग अपने संवैधानिक अधिकारों को लेकर चिंतित थे, इसीलिए जब हमने बांसगांव में गठबंधन ने अनुसूचित जाति के सदल प्रसाद को मैदान में उतारा तो वहां उन्हें भरपूर समर्थन मिला। यहां तक कि बसपा व भाजपा के लोग भी हमारे साथ प्रचार में जुट गए।