वीसी गर्ग की सहमति से चरम पर अवैध वसूली का धंधा

- वीडीए के भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ़ पब्लिक में आक्रोश
- नोटिस और सील का मकसद केवल धनउगाही
- सिर्फ गरीबों के निर्माण पर ही चलता है वीडीए का बुलडोजर
अजीत सिंह
वाराणसी (रणभेरी): काशी, जो दुनिया के प्राचीनतम नगरों में गिनी जाती है, जहां हर गली, हर चौराहा विरासत और संस्कृति की कहानियां बयां करता है, आज एक ऐसे दौर से गुजर रही है जहां इसकी पहचान खतरे में है। विकास की आड़ में इस पावन नगरी को कंक्रीट के जंगल में तब्दील किया जा रहा है, और इस बदलाव की इबारत कोई और नहीं, बल्कि खुद वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) के अधिकारी लिख रहे हैं। जहां एक ओर सरकार स्वच्छ, सुव्यवस्थित और स्मार्ट काशी की बात करती है, वहीं ज़मीनी हकीकत ये है कि ज़्यादातर निर्माण कार्य बिना मंज़ूरी, बिना नक्शा पास कराए, और पूरी तरह नियमों को ताक पर रखकर किए जा रहे हैं। रातों-रात बहुमंज़िला इमारतें खड़ी हो रही हैं, तंग गलियों में आलीशान अपार्टमेंट्स बन रहे हैं और नदी किनारे बिना पर्यावरणीय स्वीकृति के होटल खड़े हो रहे हैं। ये सब तब हो रहा है जब योगी सरकार ने अवैध निर्माणों पर सख्ती की खुली चेतावनी दी है। लेकिन सवाल ये है कि जब कोर्ट, सरकार और कानून के आदेश साफ हैं, तब भी कैसे और क्यों हो रहा है ये सब? ज़वाब है...वीसी की मौन सहमति, ज़ोनल अधिकारियों का संरक्षण, और सिस्टम में फैला भ्रष्टाचार।
वही काशी, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'भविष्य और परंपरा की संगम स्थली' कहते हैं, आज कंक्रीट के जंगल में तब्दील होती जा रही है। घाटों की नगरी अब अनियोजित विकास की नगरी बन रही है और इस विनाश की इबारत कोई और नहीं, बल्कि स्वयं वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) के अधिकारी लिख रहे हैं। विकास के नाम पर जो कुछ हो रहा है, वह एक सुनियोजित लूट का दस्तावेज़ बन चुका है। न नक्शा पास, न अग्निशमन विभाग की अनुमति, न पर्यावरणीय मंजूरी, फिर भी बेतरतीब और बेतहाशा निर्माण जारी है। और ये सब तब हो रहा है जब योगी सरकार अवैध निर्माणों पर सख्ती का दावा कर रही है।
लोगों का गुस्सा अब फूट रहा है। उन्हें लगता है कि वीसी से लेकर ज़ोनल अधिकारी तक सब बिक चुके हैं। हर अवैध इमारत के पीछे 'सील डील' का खेल है, जिसमें गरीबों के झोपड़े तो ढहाए जाते हैं, लेकिन बड़े बिल्डरों के मंसूबों को सरकारी संरक्षण मिलता है।
शहर के कोने-कोने में जारी अवैध निर्माण, फिर भी अंधे, गूंगे, बहरे बने वीडीए के जिम्मेदारान
वाराणसी में अवैध निर्माण की बाढ़ सी आ गई है। कहीं नाले पर कब्जा है, तो कहीं सरकारी जमीन पर बहुमंजिला इमारतें उग आई हैं। कॉलोनियों में बिना नक्शा पास कराए मकान बन रहे हैं, तो बाजारों में दुकानों के ऊपर फ्लैट खड़े किए जा रहे हैं। गंगा किनारे तक होटल बन चुके हैं, मगर हैरानी की बात यह है कि वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) के जिम्मेदार अफसर तमाशबीन बने हुए हैं।
रणभेरी को स्टिंग ऑपरेशन के जरिए प्राप्त हुए ऑडियो के अनुसार अब तो यह स्पष्ट हो रहा है कि वीडीए के ज़ोनल अफसरों से लेकर इंजीनियर और खुद उपाध्यक्ष तक लूट खसोट के पूरे खेल में शामिल है। यदि कोई शिकायतकर्ता जब शिकायत करता है, तब भी कार्रवाई की जगह खानापूर्ति होती है। कहीं सिर्फ नोटिस चिपका दिया जाता है, तो कहीं सीलिंग का रीबन लगा दिया जाता है।' परंतु दिखावा किया जाता है। सील के बाद ध्वस्तीकरण नहीं बल्कि, भवन का निर्माण कैसे पूरा होगा उसकी तरतीब बताई जाती है, फर्जी कागज़ों के सहारे कथित मानचित्र तैयार करवाया जाता है और बदले में अधिकारियों द्वारा अपनी अवैध कमाई में इजाफा किया जाता है। ऐसा नहीं कि वीडीए के वीसी पुलकित गर्ग को को इन काले कारनामों की खबर नहीं होती है। शिकायतें, सोशल मीडिया और स्थानीय मीडिया में लगातार इनके खिलाफ खबरें आती रहती हैं, लेकिन शायद रसूखदार बिल्डरों और दलालों से मिलीभगत के चलते जिम्मेदार अफसर आँख, कान, और ज़ुबान बंद कर बैठे हैं। इन अवैध निर्माणों से ना सिर्फ शहर की खूबसूरती बिगड़ रही है, बल्कि जल निकासी, यातायात और जनसुरक्षा पर भी गंभीर खतरा मंडरा रहा है। स्थिति ऐसी ही रही तो वाराणसी की ऐतिहासिक पहचान और आम जनता लोगों की ज़िंदगी दोनों खतरे में पड़ जाएंगी।
लोग बोले : वीडीए अब विकास का नहीं, विनाश का प्रतीक बन गया है
शहर में लगातार हो रहे अवैध निर्माण और उनमें विकास प्राधिकरण (वीडीए) की भूमिका को लेकर आम जनता में जबरदस्त आक्रोश है। लोगों का कहना है कि वीडीए अब केवल रसूखदारों और पैसों वालों के इशारे पर काम कर रहा है, जबकि गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों के मरम्मत वाले मकानों को भी बिना नोटिस तोड़ दिया जाता है। स्थानीय निवासियों ने कहा कि वीडीए अब विकास का नहीं, विनाश का प्रतीक बन गया है। जो पैसा देता है, उसके लिए कोई नियम या कानून नहीं है, ऐसे लोगों का निर्माण कार्य बेधड़क जारी रहता है। वहीं आम नागरिक जो नियमानुसार अपना काम पूरा करना चाहता है उसे महीनों चक्कर लगवाकर इस विभाग के अफसर पैसे देने के लिए मजबूर कर देते हैं।
सुंदरपुर निवासी एक भुक्तभोगी ने बताया कि हमने कई बार शिकायत की, लेकिन भ्रष्ट अधिकारी सुनते ही नहीं। उल्टा दलालों के साथ मिलकर हमें ही डराते हैं। पक्षपाती वीडीए अधिकारी जमीनी स्तर पर गरीबों के साथ अत्याचार कर रहे हैं। जनता का कहना है कि उच्च अधिकारियों से लेकर जूनियर इंजीनियर तक, भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी हो चुकी हैं। कार्रवाई केवल दिखावे की होती है, और वह भी उन्हीं के खिलाफ जो सिस्टम को सेट नहीं कर पाते। वाराणसी के लोगों अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मांग कर रहे है कि विकास प्राधिकरण के सभी अधिकारियों सहित कर्मचारियोंकी की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से करवाई जाए और दोषियों को तत्काल निलंबित कर कानूनी कार्रवाई की जाए, ताकि सरकार के प्रति जनता का विश्वास दोबारा कायम हो सके।
सम्प्रति मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जीरो टॉलरेंस के दावे की हवा निकलती दिख रही है। सवाल यह है कि क्या वीडीए अब भ्रष्टाचार का सर्वोच्च अड्डा बन चुका है ? और अगर नहीं, तो नियम और कानून को अपने जूते की नोक पर रखने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है ? रसूखदारों के अवैध निर्माणों के खिलाफ ध्वस्तीकरण अभियान क्यों नहीं चलाया जा रहा है? भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे जोनल अधिकारी संजीव कुमार को बर्खास्त क्यों नहीं किया जा रहा है? कूटरचित दस्तावेज बनवाकर कानून का मज़ाक बनाने वालों रिज़वान जैसे अपराधियों को जेल क्यों नहीं भेजा जा रहा है?
वीडीए में व्याप्त भ्रष्टाचार पर जमकर बोले लोग .....
''वाराणसी विकास प्राधिकरण भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है। वीडीए के अधिकारी संजीव कुमार को तत्काल बर्खास्त करना चाहिए। इन्हीं के मिली भगत से इस समय रविंद्रपुरी कॉलोनी, नगवां, अस्सी क्षेत्र में अवैध निर्माण अपने चरम सीमा पर है। वीडीए के अधिकारी सीएम की ईमानदार छवि पर धब्बा लगाने का काम कर रहे हैं। ऐसे अधिकारी पर विकास प्राधिकरण को कार्रवाई करना चाहिए। ''
-राजू शर्मा, नागरिक, भदैनी
विकास प्राधिकरण के भ्रष्ट अधिकारियों के कारण पूरे शहर में अनयोजित विकास हो रहा है। शहर को कंक्रीट के जंगल में तब्दील किया जा रहा है। बिना नक्शा पास कराए, बिना कागज पूरा हुए ही नगर में अवैध निर्माण हो रहा है जिस पर वीडीए लगाम नहीं लग पा रहा है। वजह साफ है, अधिकारी पैसे वालो का तलवा चाट रहे है। सील और बुलडोजर की कार्रवाई सिर्फ एक दिखावा है।
दिलीप कुमार पांडे, नगवां, वाराणसी
नगर में जितने भी अवैध निर्माण हो रहे हैं वह कहीं ना कहीं वीडीए के भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से ही हो रहे हैं। आज शहर में कहीं भी पेड़ पौधे नहीं दिखाई दे रहे हैं। पूरा शहर सूखा जंगल में तब्दील हो गया है इसके लिए विकास प्राधिकरण भी कम जिम्मेदार नहीं है। आज हर गली मोहल्ले में छह-छह मंजिला मकान किसके सह पर बन रहे है किसी से छिपा नहीं है। वीडीए के बेईमान अधिकारी शहर की सुंदरता को धूमिल कर रहे हैं।
सत्यांशु जोशी, भदैनी
पवित्र शहर वाराणसी में विकास प्राधिकरण का भ्रष्टाचार जगजाहिर है। विकास प्राधिकरण हाई कोर्ट के आदेशों की भी अवहेलना करते हुए अवैध निर्माण कार्यों को अनुमति देता है। गंगा किनारे बे-रोकटोक अवैध निर्माण जारी है और वीडीए के जिम्मेदार कान में तेल डालकर सोए हैं। शिकायत करने वालों को डराया जाता है और 27 का नोटिस थमाकर निर्माण कार्य को आगे बढ़ाने की खुली छूट दे दी जाती है। प्राधिकरण के जोनल अधिकारी सफेदपोशों के संरक्षण में कथित तौर पर गंगा किनारे होटलों और अन्य व्यावसायिक निर्माणों को अनुमति दे चुके हैं। वीडीए के अधिकारी पैसों के आगे अपना ईमान बेचने में जरा भी देर नहीं करते हैं। गरीबों की झुग्गियों और छोटे निर्माणों पर तुरंत बुलडोज़र चला दिया जाता है जबकि रसूखदारों के आगे यही अधिकारी चरण वंदन करते हैं। वीडीए के अधिकारियों की कथित मिलीभगत और दोहरे मापदंडों को लेकर जनता में भी रोष व्याप्त है। अगर वीडीए के अधिकारियों की कारनामों के निष्पक्ष जांच हो जाए तो कई अधिकारी भ्रष्टाचार के आरोप में सलाखों के पीछे होंगे।
अधिवक्ता नमिता झा
वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) के अधिकारी भ्रष्टाचार और लापरवाही की हदें पार कर चुके हैं। भेलूपुर और नगवां वार्ड में जोनल अधिकारी संजीव कुमार के संरक्षण में धड़ल्ले से अवैध निर्माण हो रहे हैं। शहर में बिल्डरों की मनमानी और नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, जबकि जिम्मेदार अधिकारी आंखें मूंदे बैठे हैं। पैसों के लालच में वीडीए अधिकारी नियम-कानून भूल चुके हैं, जिससे शहर में अव्यवस्था और अराजकता बढ़ती जा रही है। सीएम की साख पर वीडीए के अधिकारी बट्टा लगा रहे हैं। समय रहते इन अधिकारियों के कारनामों की जांच होनी चाहिए।
रितेश चौरसिया
प्राधिकरण के अधिकारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के स्पष्ट आदेशों को नजरअंदाज कर मनमानी कर रहे हैं। जिम्मेदारी निभाने के बजाय ये अधिकारी धनउगाही में लिप्त हैं। रसूखदारों के दबाव में आकर इन्होंने अपने ईमान और कर्तव्य को गिरवी रख दिया है। अवैध निर्माणों की सीलिंग सिर्फ दिखावा बनकर रह गई है, जबकि अंदरखाने में मोटी रकम लेकर फाइलें निपटा दी जाती हैं। ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की तत्काल जांच होनी चाहिए ताकि जनता का भरोसा बहाल हो सके।
अजीत कुमार पाण्डेय
रणभेरी की स्टिंग में यदि वीडीए के अधिकारियों की ही आवाज़ है तो तत्काल मुख्यमंत्री को संज्ञान लेते हुए जांच कराकर वीडीए के ऐसे सभी भ्रष्ट अधिकारियों को बर्खास्त कर जेल भेज देना चाहिए। जो सरकार की छवि पर कालिख लगा रहे हैं।
मनीष पाल
पार्ट- 34
रणभेरी के सोमवार अंक में पढ़िए... भ्रष्ट अधिकारियों जेल क्यों नहीं भेजती सरकार ?