खोद-खाद कर छोड़ दिया... गजब हुआ विकास !
- प्रधानमंत्री के सपनों की नगरी में ठेकेदारों का जलवा, जहां गड्ढे भी कहलाते हैं विकास !
- छह महीने से गली बनी तालाब, मिट्टी का ढूहा और खुला चेंबर बने लोगों की मुसीबत
- स्कूली बच्चों की रोज़ की जद्दोजहद, गड्ढे, मिट्टी और पाइपों के बीच से निकलता ‘शिक्षा पथ’
- ठेकेदार-मजदूर की मर्जी पर चल रहा काम, नलकूप योजना टांय-टांय फिस्स, जवाबदेही गुम
वाराणसी (रणभेरी): यह तो बहुत बड़ी बात है कि इस शहर के सांसद स्वयं प्रधानमंत्री के पद पर हैं। प्रधानमंत्री जब भी बनारस आते हैं सैकड़ों करोड़ की योजनाओं का उपहार देकर जाते हैं।बाबा विश्वनाथ और अपनी काशी से उनका अटूट नाता बन गया है।वे चाहते हैं काशी यानी बनारस यानी वाराणसी का समग्र विकास लेकिन प्रधानमंत्री के इस अभियान में कई तरह के अवरोध भी हैं। प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट को तहस नहस करने वाले उनके आने की खबर मिलने पर तुरंत एलर्ट हो जाते हैं और जो कुछ टूटा फूटा है ,रिपेयर किया जाने लगता है।जो चीजें प्रधानमंत्री की नजर से छिपानी है वहां रंगीन परदा लगा दिया जाता है।यह खेला उन रास्तों पर किया जाता है कि जिधर से उनका काफिला गुजरना होता है। बाकी सब कुछ यथावत रहता है।उसे देखने की फुर्सत किसके पास है।सब बिजी हैं।
एक शायर ने बनारस के ऐसे ही विकास का हालेबयां कुछ इस तरह किया है -
"ठेकेदारों पर कृपा रहे हमेशा खास, खोदखाद कर छोड़ दे पूरा हुआ विकास"
बड़े अफसर गली कुच्ची में कहां आएं। नगर के विकास के लिए महापौर हैं, नगर आयुक्त हैं और शहर के विभिन्न वार्डों में विकास की डोर थामे बैठे हैं पार्षद या सभासद। क्या करें इन पार्षदों के जिम्मे बहुत काम है, कहां कहां ध्यान दें।अगर ध्यान भी दिया तो करनी बसुली लेकर पार्षद खुद तो काम करने आएगा नहीं।काम कराएगा ठेकेदार। ठेकेदार खुद काम करेगा नहीं, काम करेंगे मजदूर। ठेकेदारों के जिम्मे भी बहुत दंद फंद है। कहां कहां जाएं।अब मर्जी है मजदूरों की जहां जब चाहें जो चाहे तोड़ दें, तोड़ कर बनाएं या कि महीनों तक वैसे ही छोड़ दें।
विकास के इस घूमते आईने का रुख करते हैं आदमपुरा क्षेत्र में स्थित मुहल्ला भारद्वाजी टोला की ओर, जहां विकास का महारथ कई महीने से अटका हुआ है। भारद्वाजी टोला मिश्रित आबादी वाला इलाका है जिसका नाता चौहट्टा लाल खां, दीवानगंज और पठानी टोला से जुड़ा है। पूरब में राजघाट, घसियारी टोला पश्चिम में चौहट्टा लाल खां, उत्तर में पठानी टोला , आदमपुर पुलिस चौकी, गंगा नगर कालोनी में और दक्षिण में प्रहलाद घाट, तेलिया नाला, निषादराज घाट।

इसी भारद्वाजी टोला नामक क्षेत्र में भी विकास की बयार कई महीने से बह रही है। मुहल्ले में मौजूद शिया मस्जिद और मस्जिद के सभागार के बीच से होकर गुजरने वाली गली में मस्जिद के ठीक बगल में बाएं तरफ एक कान्वेंट स्कूल और बहुत पुराना प्राइमरी स्कूल मौजूद है जिनमें सैकड़ों बच्चे पढ़ते हैं। सामने संकरी गली है और बाईं ओर कुछ आगे जाकर दाएं मुड़ने वाली गली सीधे प्रहलाद घाट चौराहे पर पहुंचाती है। बस इसी शिया मस्जिद के निकट स्थित गली के बीचों बीच और इर्दगिर्द विकास का रथ अटक गया है। बताते हैं कि लगभग 6 महीने पहले मस्जिद के सभागार या इमामबाड़ा जो भी कहें, इसके दरवाजे से तीन फुट हट कर गली खोद दी गईं। लगभग सात फुट चौड़ा 6 फुट गहरा गड्ढा खोदा गया। गड्ढा नलकूप लगाने के नाम पर कई दिन में खोदा गया। गड्ढे से निकली मिट्टी का ढेर और गली के उस भाग से हटाए गए पत्थर उस भवन के आसपास गली में रख दिए गए। फिर विकास सुस्ताने लगा। एक तरफ गड्ढा और शेष गली में मिट्टी का ढूहा।महीने दो महीने तक खोज खबर ली ही नहीं गई। मुहल्ले वालों को बाद में पता चला कि यहां जमीन नलकूप लगाने लायक नहीं है इसी लिए काम रुक गया है। गली में गहरा गड्ढा और ऊंचे टीले जैसा मिट्टी का ढूहा,इसी पर से होकर नन्हे नन्हे बच्चे स्कूल जाते रहे। आसपास के लोग येन-केन प्रकारेण उधर से बच बचाकर निकलते रहे। नलकूप योजना टांय टांय फिस्स। भला हो मुहर्रम का कि शिया मस्जिद में होने वाले आयोजनों और जुलूसों को ध्यान में रखते हुए लोगों ने समस्या दूर करने के लिए न जाने कहां गुहार लगाई कि गड्ढा पाट दिया गया। उस जगह से उखाड़कर रखे गए पत्थर आजमी जहां के तहां पड़े हैं।
दो महीने और बीते फिर विकास की बयार इसी गली में लौट आई। इस बार तो मस्जिद के करीब गली के बीचोंबीच ही खोदाई करदी गई। पता चला कि नलकूप यहीं लगेगा। इस बार भी बीच गली में हफ्ता-हफ्ता रुक रुक कर विकास की ओरिजिनल गति से बीच गली में बोरिंग होती रही। बोरिंग के बाद लगाई गई दो फुट की लोहे की मोटी पाइप के इर्द-गिर्द गिट्टी से भरी बोरियां लगाकर फिर काम बंद। लगभग एक महीना बाद सुध आने पर फिर विकास का रथ इसी गली में आया और गली में तीन चार फुट चौड़ा गड्ढा खोदकर ईंट की जोड़ाई करके चेम्बर बना कर पाइप जोड़ दी गई। एक हफ्ता हो गए गली के बीचोंबीच मिट्टी का ढूहा जस का तस। सीमेंट ईंट से बनाए गए चेम्बर का खुला हुआ मुंह जस का तस। लोग इधर से आएं जाएं या भाड़ में जाएं, अल्ला जाने। गली के लोग, स्कूली बच्चे
उनके गार्जियन और बाइक स्कूटी स्कूटर से आने जाने वाले कैसे आएंगे-जाएंगे यह भी अल्ला जाने। मिट्टी का ढेर और उखाड़े गए पत्थर जहां तहां पडे़ हैं। विकास तो ठीक है मगर .... अगर विकास इसी रफ्तार से होता रहा तो लोगों का क्या होगा ?











