वाराणसी: दालमंडी में हथौड़ों और आंसुओं की सुबह, विकास की छांव में यादें ढेर
वाराणसी (रणभेरी): दालमंडी ने आज फिर अपने पुराने स्वरूप को खोते हुए देख रही है, जहां कभी चाय की प्याली पर सौदे तय होते थे, वहां अब सन्नाटा पसरा है। दुकानों की बिजली काट दी गई, दीवारों से पंखे और तस्वीरें उतारी जा चुकी हैं, और लोग अपने जीवनभर की कमाई को बक्सों में समेट रहे हैं। सोमवार दोपहर के बाद नगर निगम की टीमें फिर पहुंची, इस बार कुछ और दीवारें गिरेंगी और कुछ और यादें मलबे में दब जाएंगी।
रविवार को प्रशासन ने एक दुकान के ऊपर बने दो फ्लोर गिरा दिए। आठ मजदूर चार घंटे तक हथौड़ा चलाते रहे, जैसे किसी पुराने किस्से को मिटा देने की जिद हो। अब सोमवार को उसके बचे हिस्से को ढहाया जाएगा। इस बीच चंदौली के सपा सांसद वीरेंद्र सिंह व्यापारियों से मिलने पहुंचे, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक लिया। उनके घर के बाहर भारी फोर्स तैनात रही। सांसद ने कहा, “हम अपने व्यापारियों से मिलकर रहेंगे, चाहे प्रशासन कुछ भी कर ले।”
भीड़ में एक बुज़ुर्ग दुकानदार खड़ा था, आंखों में पानी और हाथों में चाबियों का गुच्छा। उन्होंने कहा, “हमारा घर ही दुकान थी, अब दोनों छिन गए।” यह वाक्य नहीं, बल्कि पूरी दालमंडी का दर्द बयां करता है।
कपड़ों से लेकर जूते, ग्रॉसरी, मोबाइल और क्रॉकरी की दुकानों में दशकों की मेहनत समाई हुई थी। करीब 1200 से 1400 दुकानदार और उनसे जुड़ी लगभग 10,000 जिंदगियाँ अब अपनी मेहनत की निशानियां दीवारों से उखाड़ रहे हैं। कुछ के हाथ में पुराने बोर्ड हैं, कुछ के कंधे पर टूटी शेल्फ़।
रविवार दोपहर नगर निगम के अफसरों ने माइक से घोषणा की: “दुकानें खाली कर दीजिए।” कुछ दुकानदार चुपचाप सामान समेटने लगे, कुछ ने ताले लगा दिए। एसीपी अतुल अंजान त्रिपाठी और दुकानदारों के बीच कहासुनी भी हुई।
यह कार्रवाई उसी विकास योजना का हिस्सा है, जिसका शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 51वें काशी दौरे के दौरान किया था। दालमंडी को “मॉडल रोड” बनाने का लक्ष्य रखा गया है। शहर की सबसे खूबसूरत सड़क बनने जा रही इस योजना के तहत 186 भवनों और दुकानों के बदले 191 करोड़ रुपये का मुआवजा तय किया गया है।
अधिकारियों का कहना है कि नई सड़क देखकर लोग दिल्ली और बेंगलुरु की सड़कें भूल जाएंगे। योजना में सीवर लाइन, स्ट्रॉम वाटर ड्रेनेज, अंडरग्राउंड बिजली और इंटरनेट की तारें, हरियाली से लिपटा फुटपाथ शामिल हैं। लेकिन सवाल हवा में है: क्या सुंदरता के लिए यादें मिटाना जरूरी है?
दालमंडी के चौड़ीकरण में 187 मकान और छह मस्जिदें प्रभावित होंगी। कई मस्जिदें सौ साल से भी पुरानी हैं। प्रशासन का कहना है कि धार्मिक स्थलों के जिम्मेदारों से बातचीत जारी है, और जल्द समाधान निकलेगा।
सपा सांसद वीरेंद्र सिंह जब दालमंडी जाने की कोशिश कर रहे थे, पुलिस ने उन्हें रोक दिया। नाराज़ कार्यकर्ता उनके घर के बाहर धरने पर बैठ गए। पूर्व मंत्री मनोज राय ने कहा, “सरकार गरीबों से निवाला छीन रही है। रोजगार देना तो दूर की बात, अब कारोबार भी छीना जा रहा है।”
ADM सिटी आलोक वर्मा मौके पर पहुंचे और सांसद को समझाने की कोशिश की, लेकिन उनका जवाब वही था, “हम दालमंडी जरूर जाएंगे, क्योंकि वहां सिर्फ दुकानें नहीं, लोगों की जिंदगियाँ टूट रही हैं।”
दालमंडी सिर्फ एक बाज़ार नहीं, बल्कि काशी की धड़कन है। यहां कारोबार से ज़्यादा भरोसा चलता था। ‘बोल दिया तो तय हुआ।’ आज वही गली विकास के नाम पर जख्मी है। जो सड़क कभी रंगों और आवाज़ों से जीवंत रहती थी, अब वहां सिर्फ धूल और बुलडोज़रों की गूंज है।











