उन्नाव रेप केस में बड़ा मोड़: कुलदीप सेंगर को जमानत, पीड़िता और मां ने इंडिया गेट पर जताया विरोध
(रणभेरी): जिस मामले ने पूरे देश को झकझोर दिया था, उसी उन्नाव रेप केस में उम्रकैद की सजा काट रहे भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट से जमानत मिलना अब न्याय व्यवस्था पर नए सवाल खड़े कर रहा है। अदालत ने सजा को अपील के निस्तारण तक निलंबित करते हुए चार शर्तों के साथ सेंगर को जमानत दी है, लेकिन यह फैसला पीड़िता और उसके परिवार के लिए राहत नहीं, बल्कि डर का नया अध्याय बनकर सामने आया है।
हाईकोर्ट के फैसले के विरोध में रेप पीड़िता, उसकी मां और सामाजिक कार्यकर्ता योगिता भयाना मंगलवार शाम इंडिया गेट पहुंचीं। न्याय की गुहार लेकर बैठीं महिलाओं को आधी रात पुलिस ने जबरन वहां से हटा दिया। महिला सिपाहियों द्वारा पीड़िता और उसकी मां को उठाकर ले जाने का दृश्य खुद सवाल बन गया। क्या न्याय मांगना अब कानून-व्यवस्था के लिए अपराध है?
पीड़िता का दर्द किसी कानूनी बहस से बड़ा है। उसने कहा कि उसे डर है कि सेंगर के बाहर आने से उसका परिवार असुरक्षित हो जाएगा। “मेरे पिता को मार दिया गया, परिवार के लोगों को खत्म किया गया, मेरा एक्सीडेंट कराया गया। मैं मौत से लड़कर बाहर आई हूं। अब फिर डर के साए में जीने को मजबूर हूं,” पीड़िता ने कहा। उसके मुताबिक, सुरक्षा हटाए जाने के बाद हालात और ज्यादा भयावह हो गए हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता योगिता भयाना ने अदालत के फैसले पर तीखा सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि अगर एक नाबालिग से रेप, उसके पिता की हत्या और पूरे परिवार को डराने के बाद भी दोषी को राहत मिलती है, तो यह सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि पूरी न्याय व्यवस्था पर धब्बा है। “न्याय मांगने पर डंडे मिलते हैं,”

दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच ने 15 लाख रुपये के निजी मुचलके पर सेंगर को जमानत दी है। शर्तें तय की गई हैं, पीड़िता से पांच किलोमीटर दूर रहना, हर सोमवार पुलिस में हाजिरी, पासपोर्ट जमा करना और शर्त तोड़ने पर जमानत रद्द होना। लेकिन सवाल यही है कि कागजों पर लिखी शर्तें क्या जमीनी डर को खत्म कर सकती हैं?
निर्भया की मां आशा देवी ने भी फैसले पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि यह अपराध की गंभीरता को हल्का करने जैसा है। “अपराध किया है, सजा मिली है, फिर जमानत क्यों?”
2017 के इस केस में ट्रायल कोर्ट ने सेंगर को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद और जुर्माने की सजा दी थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केस दिल्ली ट्रांसफर हुआ था और पीड़िता की सुरक्षा के लिए विशेष निर्देश दिए गए थे। अब वही पीड़िता फिर सड़कों पर है, और आरोपी को राहत। यह मामला अब सिर्फ कानून का नहीं, बल्कि इंसानियत का इम्तिहान बन चुका है। अदालत के इस फैसले ने यह सवाल छोड़ दिया है-क्या न्याय केवल फाइलों में सुरक्षित है, और पीड़ित के हिस्से में सिर्फ डर और इंतजार?











