काशी का अनोखा मंदिरः श्री राम को यहां मिली थी ब्रह्महत्या से मुक्ति, की थी मंदिर की परिक्रमा, अद्भुत है इतिहास

काशी का अनोखा मंदिरः श्री राम को यहां मिली थी ब्रह्महत्या से मुक्ति, की थी मंदिर की परिक्रमा, अद्भुत है इतिहास

वाराणसी (रणभेरी सं.)।  मंदिरों के शहर काशी में एक ऐसा स्थान है जहां ब्रह्महत्या से मुक्ति पाने के लिए प्रभु श्री राम ने भी तप किया था। पुराणों के अनुसार, रावण की हत्या के बाद प्रभु श्री राम ने कर्दमेश्वर मंदिर की परिक्रमा भी की थी।  कर्दम ऋषि द्वारा स्थापित कर्दमेश्वर महादेव के दर्शन पूजन से असाध्य कष्टों से मुक्ति मिलती है। पुराणों के अनुसार, भगवान राम को रावण के वध से लगे ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति यहीं मिली थी। त्रेतायुग में पहली बार प्रभु श्रीराम ने पंचक्रोशी परिक्रमा की थी और यह पंचक्रोशी परिक्रमा का पहला पड़ाव भी है।  यह भी मान्यता है कि कर्दम ऋषि के तप से प्रसन्न होकर महादेव साक्षात यहां विराजते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि कर्दम ऋषि के बनवाए गए कूप में जिसकी छाया दिख जाती है, उसकी उम्र लंबी होती है। वहीं, इतिहासकारों के अनुसार, कंदवा पोखरे के किनारे स्थित कर्दमेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण चंदेल वंशीय राजाओं ने कराया था।  ऊपरी भाग में नक्काशीदार सजावटी शिखर है। मंदिर का मुख्य द्वार तीन फीट पांच इंच चौड़ा और छह फीट ऊंचा है। मंदिर का गर्भगृह, जिसकी बाहरी माप 12 गुणे 12 फीट और भीतरी माप आठ फीट आठ इंच चौड़ा व आठ फीट लंबा है। इसी के मध्य ही कर्दमेश्वर शिवलिंग स्थापित है।  गर्भगृह के उत्तर-पश्चिमी कोने में छह फीट की ऊंचाई पर जल स्रोत है, जिससे शिवलिंग पर लगातार जलधारा गिरती रहती है। इतिहासकारों का कहना है कि घने जंगल में होने के कारण यह मंदिर मुगल आक्रमण के दौरान हुए ध्वंस से सुरक्षित बच गया था।

खजुराहो से मिलती हैं आकृतियां 

क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ. सुभाष चंद्र यादव का कहना है कि कर्दमेश्वर मंदिर के निर्माण के सही समय का निर्णय मुश्किल है। कर्दमेश्वर मंदिर की कुछ आकृतियां जैसे दक्षिणी भित्ति पर बनी उमा महेश्वर की मूर्ति खजुराहो के मंदिरों में बनी आकृतियों की तरह हैं। इसी प्रकार उत्तर की ओर निर्मित रेवती और ब्रह्म की मूर्ति की केश सज्जा गुप्त कालीन मूर्ति कला से प्रभावित है।

 मंदिर पर बनी आकृतियां पुष्ट और मृदु के साथ ही चेहरे पर प्रभावकारी मुस्कान लिए हैं, जबकि नाग और शेर का चित्र अपरिपक्व व भावहीन है। इस प्रकार की आकृतियां दुलादेव मंदिर (1150 ईस्वी) के खजुराहो व उदेश्वर मंदिर उदयपुर में देखने को मिलती हैं।