काव्य-रचना
बेटियाँ
बेटियाँ परिवार की,
मान होती हैं,
स्वाभिमान होती है,
वह माता-पिता की,
अभिमान होती हैं,
मृत्यु को भी हराने वाली,
आयुष्मान होती हैं।
बहुत से दर्द सहती हैं,
किसी से भी नहीं कहती हैं,
सब दर्द सहकर के,
लौह बन जाती हैं,
बेटियां असाधारण,
इंसान होती हैं,
बेटियां समाज की,
पहचान होती हैं।
आने वाली पीढ़ियों की,
गुरू होती हैं,
ऊर्जा पुंज हैं उस स्थान की,
जहाँ से जीवन शुरू होती है,
भगत सिंह,राजगुरु को बनाने वाली,
दिव्य ज्योति हैं वो,
बेटियाँ सर्व विद्यमान होती हैं।
मां-बाप का हृदय भी,
कम मजबूत नहीं,
हाँ, सत्यता का भी,
कोई सबूत नहीं,
बेटियों के दर्द को जानते हुए भी,
चुप रहते हैं वे सत्य,
दुखी बेटी के बाप के जीवन मे,
चैन की कोई ताबूत नहीं।
चैन की कोई ताबूत नहीं।
सत्येंद्र उर्मिला शर्मा