नहाय-खाय के साथ चैती छठ महापर्व की शुरूआत

नहाय-खाय के साथ चैती छठ महापर्व की शुरूआत

वाराणसी (रणभेरी सं.)। लोक आस्था के पर्व चैती छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान आज मंगलवार 1 अप्रैल को चैत्र शुक्ल तृतीया उपरांत चतुर्थी के दिन 'नहाय-खाय' के साथ शुरू हो गया। कल यानी 2 अप्रैल को खरना है। 3 को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। 4 को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही 4 दिन का महापर्व खत्म होगा। छठ व्रतियों ने सुबह-सुबह गंगा में स्नान किया। सूर्य की पूजा की। इसके बाद गंगा के पवित्र जल से सात्विक रूप से बनाए जाने वाले कद्दू-भात का प्रसाद ग्रहण किया। आज भरणी नक्षत्र और रवि योग का शुभ संयोग बन रहा है। मान्यता है कि सुख-समृद्धि को लेकर मनोकामना करें और वह पूरी हो जाए तो वह परिवार मान्यताओं के अनुसार एक, तीन या पांच साल तक चैती छठ व्रत करता है। या फिर मनोकामना पूरी होने तक चैती छठ का अनुष्ठान भी लोग करते हैं। चैती छठ को पोखर पर कार्तिक छठ की तरह नहीं किया जाता है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के इक्का-दुक्का घाटों पर ही छठ होता है। एक श्रद्धालु ने अपनी तैयारियों के बारे में बताया, "यह चार दिनों का त्योहार है। आज हमने छठ पूजा के लिए नहाय-खाय पूरा कर लिया है। हमने गंगा में स्नान किया और अब घर जाकर चावल, दाल और कद्दू की सब्जी बनाएंगे। यह पर्व हमारे लिए आस्था और परंपरा का प्रतीक है, जिसे हम पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं। उन्होंने कहा कि नहाय-खाय के दिन सात्विक भोजन का विशेष महत्व है, जिसमें चना दाल, कद्दू की सब्जी और अरवा चावल शामिल होते हैं। इस पर्व में सूर्य भगवान की उपासना के जरिए परिवार की समृद्धि और सुख-शांति की हम कामना करेंगे।

ये है व्रत की विधि

पंडित अलोक ने बताया कि पंचांग के अनुसार, चैती छठ का पर्व 1 अप्रैल से 4 अप्रैल तक मनाया जाएगा। शुरूआत नहाय-खाय के साथ हुआ। इस दिन महिलाएं सुविधा अनुसार नदी-तालाब या नजदीकी जलाशयों में जाकर स्नान करने के बाद भगवान सूर्य की पूजा कर अरबा चावल, लौकी की सब्जी और चने की का शुद्ध शाकाहारी भोजन करेंगी। इसके साथ ही व्रत का संकल्प लेगी। वहीं, खरना के दिन 2 अप्रैल से व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत का आरंभ करेंगे। शाम के समय पीतल या फिर मिट्टी के बर्तन में गुड़ की खीर और रोटी बनाकर पूजा की जाएगी। इसे प्रसाद के तौर पर परिवार के लोगों और आसपड़ोस के लोगों के बीच बांटा जाएगा। इसके लिए नए चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता है। इस दिन सूर्यदेव को भोग लगाने के साथ अर्घ्य देने के बाद महिलाएं प्रसाद ग्रहण करती हैं। छठ पर्व के तीसरे दिन 3 अप्रैल को डूबते हुए सूर्य को और 4 अप्रैल उगते सूर्य देव को अर्घ्य दिया दिया जाएगा। इसके बाद व्रती पारण करेंगे।

सूर्य देव की बहन की होती है पूजा

भगवान सूर्य देव की बहन छठी मईया की पूजा छठ में की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि छठी मईया की पूजा करने से वो हर छठवर्ति की मनोकामना पूरी करती हैं। छठ व्रतीने कहा कि संतान सुख की प्राप्ति और पूरे परिवार की सुख, समृद्धि और शांति के लिए छठ पूजा की जाती है। यह पर्व हिंदुओं के लिए नियम निष्ठा का पर्व है क्योंकि खरना के दिन प्रसाद ग्रहण कर निर्जला 36 घंटे का व्रत रखा जाता है।

चैती छठ पूजा का महत्व

चैती छठ एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जिसे विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की पूजा के लिए जाना जाता है। इसका धार्मिक महत्व गहरा है और इसे सूर्य की उपासना, प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने और आत्मा की शुद्धि का पर्व माना जाता है। महिलाएं इस अवसर पर निर्जला उपवास रखती हैं और पवित्र नदियों के घाटों पर स्नान-ध्यान करके सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करती हैं। छठ पूजा में निष्ठा, संयम और तप का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान सुख, स्वास्थ्य, समृद्धि और परिवार में खुशहाली प्राप्त होती है।

बाजारों में पारंपरिक साड़ियों जबरदस्त खरीदारी

लोक आस्था के महापर्व छठ की शुरूआत आज से नहाय-खाय के साथ हो गई है। इस पर्व को लेकर बाजारों में भारी उत्साह देखने को मिल रहा है। व्रती महिलाएं छठ पूजा की तैयारियों में जुट गई हैं। व्रती महिलाएं इस पर्व के लिए पूरी श्रद्धा से तैयारियां कर रही हैं, जहां साड़ियों और पूजा सामग्री की खरीदारी खास ध्यान आकर्षित कर रही है। सबसे ज्यादा खरीदारी साड़ियों की हो रही है। बाजार पारंपरिक और आधुनिक साड़ियों के शानदार कलेक्शन से सजे हुए हैं जहां महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ी है।