नहाय खाय के साथ शुरू हुआ सूर्योपासना का महापर्व
- महिलाओं ने सात्विक आहार लौकी की सब्जी, चने की दाल पूड़ी ग्रहण किया
- गंगा घाटों-तालाबों-सरोवरों पर सजी छठ की वेदियां
- बाजारों में फलों की सबसे ज्यादा खरीदारी
- 27 अक्टूबर को पहला, 28 को दूसरा अर्घ्य दिया जायेगा
वाराणसी (रणभेरी): नहाय खाय के साथ शनिवार से चार दिवसीय सूर्योपासना का महापर्व डाला छठ की शुरुआत हो गई। प्रथम नियम संयम के दिन महिलाओं ने सात्विक भोजन ग्रहण किया। सात्विक भोजन में कद्दू या लौकी की सब्जी, चने की दाल तथा हाथ की चक्की से पीसे हुए गेहूं के आटे की पूड़ियां रही। इसे नहाय खाय के नाम से जाना जाता है।
उधर, डाला छठ को लेकर गंगा घाटों एवं तालाबों-कुंडों-सरोवरों पर छठ की वेदियां बना दी गई हैं। वेदियों पर लोगों ने अपना नाम लिख दिया है। ताकि कोई उस पर कब्जा न कर सके । दीपावली के बाद ही छठ पूजा का बाजार सज गया है। दऊरा, सूप और फलों के बाजार जगह-जगह लग गये हैं।
फलों के साथ ही नये अनाजों की मांग बाजार में है। डाला छठ पर सबसे अधिक खरीदारी फलों की हो रही है। फलों में सेव, मुसम्मी, केला, संतरा, अमरूद के अलावा अन्य फल बिक रहे हैं। नहाय खाय के साथ ही डाला छठ पूजा की शुरुआत बनारस में हो गई है। 26 अक्टूबर रविवार पंचमी तिथि को सायंकाल महिलाएं खरना मनायेंगी। इस दिन सायंकाल स्नान के पश्चात प्रसाद ग्रहण करेंगी।
यह प्रसाद धातु या मिट्टी के नवीन बर्तनों में तैयार किया जाता है। प्रसाद के रूप में महिलाएं नये चावल से बनी गुड़ की खीर (बखीर) ग्रह करेंगी। इस प्रसाद को अन्य लोगों में वितरित किया जाता है। इसे ही खरना के नाम से जाना जाात है। जो कि रविवार को मनाया जायेगा। डाला छठ के तीसरे दिन तृतीय संयम में 27 अक्टूबर सोमवार को अस्ताचलगामी (अस्त होते सूर्यदेव) को महिलाएं पूरी आस्था व श्रद्धा के साथ अर्घ्य देंगी। इस दिन समस्त गंगा घाटों के अलावा तालाबों व कुंडों तथा सरोवरों में व्रती महिलाओं का सैलाब उमड़ेगा। इस दिन सूर्यदेव को एक बड़े सूप अथवा डलिया में पूजन की सामग्री सजा कर साथ ही कई तरह के फल-व्यंजन-पकवान शुद्ध दशी घी का गेहूं के आटे तथा गुड़ से बना ठोकवा प्रमुख होता है। जिसे सूर्य को अर्पित किया जाता है। इसके साथ ही महिलाएं गंगा घाटों पर बैठ कर षष्ठी माता की प्रसन्नता के लिए उनकी महिमा में लोकगीत गाती हैैं। जो रात्रि पर्यन्त चलता रहता है। 28 अक्टूबर मंगलवार को चौथे व अंतिम संयम पर सप्तमी तिथि को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर महिलाएं इस कठिन व्रत का पारण करेंगी। व्रती महिलाएं सुहाग की कामना के साथ श्रद्धालुओं में प्रसाद वितरित करती हैं। ताकि उनके जीवन में सुख समृद्धि बनी रहे। इस दिन घाटों पर महिलाओं के साथ उनके परिजनों का सैलाब उमड़ पड़ता है।
लोकमंगल का महापर्व सूर्य षष्ठी, बिहार के साथ ही अनय शहरों में होता जा रहा विस्तार
दीपावली के छठें दिन पड़ता है छठ पूजा
सूर्योपासना का महापर्व सूर्य षष्ठी व्रत मुख्यत: सूम्पूर्ण बिहार- पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, असम आदि जगहों पर काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसका विस्तार अब तो दिल्ली के साथ ही और शहरों में लगातार होता जा रहा है। सही मानये में कहा जाय तो बिहार के लोग जहां-जहां पहुुंचे वहां-वहां डाला छठ शुरू हो गया। दीपावली के छठें दिन यह पर्व पड़ता है। इसलिए इसे डाला छठ कहा जाता है। सृष्टि की रचना से ही अपने यहां प्रकृति के वि•िान्न रूपों की पूजा की जाती है। इसमें सूर्य को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अंश स्वीकार किया जाता है। इस पर्व पर सूर्य की शक्ति को देवी का रूप मान कर अर्घ्य समर्पित करने का विधान है। अर्घ्य देते समय कहा जाता है
एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजो राशे जगतपतैै
अनुकम्पय माम देव गृहणार्ध्य दिवाकर।
षष्ठी सूर्य की तिथि मानी जाती है। वास्तव में यह पर्व लोक मंगल की भावना से जुड़ा हुआ है। इसलिए इसके निकट आते ही नारी कंठों से ये पंक्तियां निकलने लगत है।
हो-हो पान की पतइया, पवना परसत जाय
कांचे-कांचे बांस के बंहगिंया, बंहगी लचकत जाय।
देवी भागवत के 9वें स्कंद के 46वें अध्याय में षष्ठी देवी की उत्पत्ति ब्रह्मा के मानसी कन्या के रूप में वर्णित है। षोडश मातृकाओं में एक मातृका देवसाना के नाम से भी इन्हें अभिहित किया गया है। यह अपुत्रों को पुत्र, धनहीनों को धन, कर्म के इच्छुओं को कर्म प्रदान करती है। ये प्रकृति के छठें अंश से उत्पन्न है। देवी भागवत पुराण के अन्तर्गत इस संबंध में व्यापक रूप से प्रकाश डाला गया है।
इस पुराण के अनुसार मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत ने अपने मृत पुत्र का षष्ठी देवी की कृपा से पुन: प्राप्त किया था। उसी समय से यह र्व लोक में प्रचलित हुआ। पद्म पुराण के मुताबिक कुष्ठ रोग से ग्रसित एक ब्राह्मण ने तपस्या की। उसे स्वप्न हुआ कि वह सूर्य षष्ठी का व्रत कर सूर्य को अर्घ्य दे। उसके ऐसा करने पर वह कुष्ठ रोग से मुक्त हो गया और उसे पुत्र की प्राप्ति हुई। वह सूर्य लोक में चला गया। तब से इस व्रत की महिमा और ज्यादा बढ़ गई। अयोध्या के राजा प्रियव्रत द्वारा किया गया यह व्रत आगे चल कर मिथिला पहुंचा जहां राम-सीता के विवाह के पश्चात धीरे-धीरे यह पूरे बिहार का सबसे प्रमुख पर्व बन गया। इस व्रत में सफाई व पवित्रता का बहुत महत्व है। कार्तिक शुक्ल पंचमी की शाम से ही इस पूजा की शुरुआत हो जाती है।
बनारसी सूप से की जाती है छठी मइया की पूजा, पीतल के डिजाइनर सूप की सबसे अधिक खरीदारी
बनारस में होता है पीतल के सूप का निर्माण, दो माह पूर्व से बनने लगते हैं पीतल के सूप
सूर्योपासना के महापर्व छठ पर छठी मइया की पूजा बनारसी सूप से की जाती है। बनारसी सूप का निर्माण यहीं पर किया जाता है। बनारसी पीतल के सूप देखने में बहुत ही सुंदर व आकर्षक होते हैं। शहर के भूलेटन, औरंगाबाद,भदऊं समेत कई जगहों पर पीतल के सूप का निर्माण किया जाता है। एक आंकड़े के मुताबिक सिर्फ डाला छठ पर पीतल के सूप की 80 लाख रुपयों की खरीदारी हो जाती है। तकरीबन दो दर्जन कारखानों में छठ पूजा के दो माह पूर्व ही इसका निर्माण शुरू हो जाता है। डाला छठ के एक सप्ताह पूर्व ही कारखानों में निर्मित सूप की आपूर्ति हो जाती है। बड़े कारखानों में 30 से लेकर 40 कारीगर काम में जुटे रहते हैं तो वहीं छोटे कारखानों में 10- 20 कारीगर लगे रहते हैं। कुछ कारीगर घर पर ही सूप तैयार कर दुकानदारों को बेचते हैं। कारखानों में चार साइज के सूप बनाये जाते हैं। फिनिशिंग के चलते ही यह सूप सिर्फ बिहार व झारखण्ड ही नहीं बल्कि देश के अन्य शहरों में लोकप्रिय है। सर्वाधिक डिमांड मीडियम साइज वाले सूप की है।
कैसे बनाये जाते हैं सूप
तांबा, जस्ता निर्मित पीतल को गला कर 6 इंच चौड़ी व चार इंच मोटी मोटाई का गोला तैयार किया जाता है। इसके बाद बेलन मशीन पर साइज के मुताबिक शीट तैयार की जाती है। शीट तैयार होने के बाद कारीगरी शुरू हो जाती है। सूप बनाने का सारा का हस्त निर्मित होता है। शीट पर वि•िान्न प्रकार की आकृतियों को उभारने का काम कारीगर डाई के जरिये करते हैं। यह काम बहुत ही बारीकी व सावधानी से किया जाता है। यदि जरा सी कोई चूक हुई तो चद्दर खराब हो जाती है।
सूप पर होती है सूर्य की आकृतियां
पीतल के इस डिजाइनर सूप पर सूर्य की नक्काशी रहती है। जो ग्राहकों को आकर्षित करती है। डाला छठ का पर्व सूर्यदेव को अर्पित है। इसके चलते सूप पर सूर्य की आकृति काफी महत्व रखती है। सूप पर सूर्य की आकृति के अलावा दीपक, अर्घ्य देती दो महिलाएं, ऊं की आकृति लोगों को आकर्षित करती है।
चार तरह की होती है साइज
पीतल के सूप बाजार में चार साइज में होते हैं। पहला नंब एक साइज छोटा होता है। जबकि नंबर दो साइज मीडियम होता है। नंबर तीन साइज सूप बड़ा होता है। नंबर चार साइज सूप आर्डर देने पर तैयार होता है।
किन शहरों में होती है आपूर्ति-
बनारस से बिहार व दिल्ली समेत कई शहरों में पीतल के सूप की आपूर्ति की जाती है। इनमें बिहार के कैूर, •ा•ाुआ, मोहनया, दुर्गावती, कुदरा, पटना, आरा, छपरा, ,सीवान, गोपालगंज, गया, बक्सर, रोहतास, डेहरी आन सोन, रांची, बैजनाथ, औरंगाबाद, दानापुर, देवधर, हजारीबाग, धनबाद, के अलावा मुंबई. मध्य प्रदेश व दिल्ली में भी इसकी आपूर्ति की जाती है।











