ऑनलाइन गेमिंग के दलदल में फंसता देश का भविष्य

ऑनलाइन गेमिंग के दलदल में फंसता देश का भविष्य

आधी रात को ऑनलाइन गेमिंग की दुनिया में खो रहे बच्चे और युवा

वाराणसी (रणभेरी): आम आदमी की जिंदगी का बड़ा हिस्सा आजकल ऑनलाइन दौर में गुजर रहा है। शॉपिंग से लेकर मनोरंजन के साधन तक लोग ऑनलाइन खोज रहे हैं, लेकिन यदि बात हम ऑनलाइन गेम की करें तो ये गेम इंसानी जिंदगी में इस हद तक घुसपैठ कर चुके हैं कि लोगों की लाइफ इससे प्रभावित हो रही है या कुछ लोगों की तबाह हो चुकी है। बचपन की दहलीज लांघकर किशोरावस्था में कदम रखने वाले किशोर ऑनलाइन  गेम्स के मायाजाल मे फंसते जा रहे हैं। आधी रात को जब सारी दुनिया नींद में होती है, तब 16 साल तक के किशोर मोबाइल के जरिये ऑनलाइन गेम खेलने में मशगूल हो जाते हैं।

ये दौर टेक्नालॉजी का है, युवा पीढ़ी के लिए मोबाइल ऑक्सीजन  जितना जरूरी हो गया है।  वहीं बच्चे भी तेजी से मोबाइल का उपयोग करना सीख चुके हैं। मोबाइल पर कॉल अटेंड करना, व्हाट्सऐप और मैंसेजर पर लोगों से चैंटिंग करने के अलावा एक रोग तेजी से पैठ जमा चुका है। ऑनलाइन गेम्स ने किशोरों की आउटडोर एक्टविटी को तहन-नहस कर दिया है। युवाओं के सिर पर भी मोबाइल गेम्स का भूत सवार है। इन दिनों पबजी बैन होने के बाद भी बच्चों के सिर मोबाइल पर गेम खेलने का बुखार चढ़ा हुआ है।

बसना शहरी क्षेत्र एवं ग्रामीण क्षेत्रों में इन दिनों फ्री फायर गेम बच्चे खेल रहे हैं। हालांकि पबजी के दौर में भी इस गेम की खासी डिमांड थी, लेकिन पबजी बैन होने के बाद अब फ्री फायर गेम बच्चों पर नशा बन कर छा रहा है। सैनिक, छावनी और शत्रुओं पर हमले जैसे चोंचले इस गेम में भी पबजी जैसे ही हैं। दीवानगी का यह आलम है कि दिन-दिन भर बच्चे मोबाइल पर यह गेम खेलने में व्यस्त रह रहे हैं। शहर से लेकर गांव तक बच्चों को घर और चौक-चौराहों, दुकानों की सीढ़ियों व घरों के दरवाजे पर मोबाइल पर गेम खेलते सहज ही देखा जा सकता है। कुछ बच्चे एक दूसरे साथी को जोड़ कर गेम खेलते हैं तो कुछ देखने के लिए नजर गड़ाए रखते हैं। 

  • दिमाग पर पड़ता है बुरा असर

मोबाइल पर लगातार गेम खेलने के कारण मानसिक परेशानी के साथ आंखों, सिर में दर्द, रात में घबराहट, नींद ना आना, चिड़चिड़ापन, खीज, भूलने की बीमारी, निराशा, टेंशन और डिप्रेशन जैसी बीमारियां घेरने लगती हैं। लंबे समय तक एक ही स्थान पर बैठकर गेम्स खेलने के कारण मोटापा, ब्लड प्रेशर और डायबिटीज समेत अन्य शारीरिक समस्याएं भी बच्चों और युवाओं को घेरने लगती हैं। आॅनलाइन गेम्स के जरिए शरीर बीमारियों का घर बनने लगता है। 

  • माता-पिता का कितना दोष  

फास्ट लाइफ में माता पिता को  कम टाइम में ही सब कुछ करना होता है। बच्चों को खाना खलाने के लिए  मां उसकी हर वो बात मान लेती है जो नाजायज है। बच्चे घर पर होते हैं तो ज्यादा सुरक्षित होते हैं, ये भावना भी अभिभावकों में घर कर गई है। इब बच्चे बाहर खलेने नहीं जाते तो लगातार उन पर जोर भी नहीं डाला जाता, बच्चे बाहर जाकर बिगड़ जाएंगे ये भी चिंता घरवालों को सताती रहती है। वहीं दोस्त ना होने की वजह से बच्चे अकेलेपन के शिकार हो जाते हैं, ऐसे में वो आॅनलाइन गेम की तरफ मुड़ जाते हैं। 

  • गेम खेली तो सूखेगा आंखों का पानी

चिकित्सकों ने यह भी तय कर दिया है कि अगर कोई मोबाइल पर गेम खेलेगा तो उसकी आंखों का पानी तक सूख जाएगा, जिसके कारण आंखों की रोशनी कम हो जाएगी। अभिभावकों को ध्यान रखना होगा कि जब भी बच्चा घर पर है तो उसको मोबाइल से दूर रखें। वरना छोटी उम्र में ही गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। 

  • मोबाइल पर गेम्ज खेलते रहते हैं नौजवान व बच्चे

इंटरनेट का आज की युवा पीढ़ी पर बुरा असर साफ तौर पर देखा जा सकता है। नौजवान व बच्चे मोबाइलों पर तरह-तरह की गेम्स खेलते रहते हैं। बच्चे पबजी, कैंडीक्रश, लूडो आदि गेम खेलने में व्यस्त रहते है। इन गेमों को खेलते समय बच्चे व नौजवान इतने गमगीन रहते है कि वह एक दूसरे को देखने तक भी पसंद नहीं करते। इसके अलावा गेमों की लत इस कदर बढ़ चुकी है कि रास्ते में चलते समय हुए व बसों, गाडि?ों में बैठते हुए भी फोन पर गेम खेलने में मग्न रहते है। इसके चलते कई बच्चों को रास्ते में मोबाइल चलते समय ठोकरे भी लग चूकी है। कई बार तो सड़क पर गाड़ियों की चेपट के भी शिकार हो चूके लेकिन मोबाइल पर गेम खेलना नहीं छूट रहा है।

  • इंटरनैट के इस्तेमाल से युवा खेलकूद से हो रहे दूर

इंटरनेट से जहां लोगों को फायदे हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इसके नुकसान भी देखने को मिल रहे हैं। इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले युवा व बच्चे अक्सर मोबाइल फोन, लैपटॉप व कम्प्यूटर आदि पर चिपके रहते हैं। इसके कारण युवा व बच्चे खेलकूद व अन्य गतिविधियों से दूर होते जा रहे हैं।