राम को देख कर श्री जनक नंदिनी, मंत्रमुग्ध रह गयी
वाराणसी (रणभेरी सं.)। धार्मिक नगरी वाराणसी के रामनगर की रामलीला विश्व प्रसिद्ध है। यह रामलीला जितनी अनूठी है, उतने ही खास इसे देखने वाले भक्त हैं जो बीते कई दशकों से इस अद्भुत लीला को देखने यहां आते हैं। आधुनिकता के दौर से अलग आज भी पेट्रोमैक्स की रोशनी में बिना स्टेज और साउंड सिस्टम के यहां रामलीला का मंचन होता है। रामनगर की रामलीला का चौथे दिन भक्तों की भारी भीड़ पहुंची थी। रामलीला की शुरूआत हुई। भला सांवला, सलोना और सुंदर आकर्षक रूप किसे नहीं लुभाता। और श्रीराम-लक्ष्मण का रंग रूप सामने हो तो कौन सम्मोहित हुए बिना रह सकता है। यही तो हुआ जनकपुर में।
आंखें ठहर गईं, चित्त खो गया। नेत्र सुख की अभिलाषा बढ़ती गई। हर किसी को महसूस हुआ कि जानकी के योग्य तो यही वर है। रामनगर की रामलीला के चौथे दिन की शुरूआत जनकपुर दर्शन से ही हुई। 36वीं वाहिनी पीएसी स्थित कैंपस में जनकपुर दर्शन, अष्टसखी संवाद और फुलवारी की लीला हुई।
लीला के प्रसंगानुसार मुनि विश्वामित्र से अनुमति लेकर श्रीराम लक्ष्मण के साथ जनकपुर देखने जाते हैं। दोनों भाइयों के जनकपुर पहुंचते ही इन्हें देखने के लिए काम धाम छोड़ लोग दौड़ पड़ते हैं। अष्टसखी संवाद
होता है।
दोनों भाइयों को दिखाई रंगभूमि की रचना
दोनों भाइयों को रंगभूमि की रचना दिखाई इसके बाद छोटे बालको द्वारा दोनों भाइयों को रंगभूमि की रचना दिखाई जाती है। दोनो भाई विश्वामित्र के पास लौट कर शयन करते है। सुबह होने पर दोनों भाई फुलवारी जाते है उसी समय गिरजा पूजन के लिए जानकी का आगमन होता है। वह गिरिजा स्तुति करती कर अपने लिए योग्य वर मांगती है सखिया जानकी से राजकुमारों के रंग रूप का वर्णन करती है सीता आश्चर्य चकित हो इधर उधर देखती हैं। श्रीराम विश्वामित्र के पास जाकर देरी का कारण बताते है। और इसी प्रसंग के साथ चौथे दिन की लीला समाप्त हो जाती हैं।
डेढ़ दर्जन लीला स्थलों पर किया जाता है रामलीला का मंचन
यद्यपि रामनगर की विश्व प्रसिद्ध घुमन्तू रामलीला का मंचन डेढ़ दर्जन लीला स्थलों पर किया जाता है जिसके लिए अलग अलग लीला स्थल बनाये गए हैं। पात्रों को प्रशिक्षण के दिनों के साथ ही रामलीला शुरू होने के बाद वना-गमन की लीला तक बलुआघाट स्थित धर्मशाला में ही निवास करना होता है। वनागमन की लीला के मंचन के बाद राम जानकी दुर्गा मंदिर स्थित रामबाग परिसर में निवास करते है जबकि भरत-शत्रुघ्न बलुआ घाट आ जाते हैं। सीता हरण की लीला के बाद जानकी जी लंका मैदान के समीप स्थित अशोक वाटिका में निवास करती हैं। भरत मिलाप की लीला में सभी पंचस्वरूप आपस में मिलते हैं जिसके बाद पुन: पंचस्वरूप बलुआ घाट स्थित धर्मशाला में निवास करते हैं। शरद पूर्णिमा के दिन कोर्ट विदाई की लीला रामलीला का अंतिम मंचन होता है। इसमें काशिराज परिवार के प्रतिनिधि सभी पात्रों को अपने हाथ से खाना खिलाकर विदाई देते हैं।
गिरिजा ने सीता को दिया मनचाहा वरदान
जाल्हूपुर बाजार स्थित टूडी नगर की रामलीला में शुक्रबार को लक्ष्मण की जनकपुर देखने की इच्छा को राम महर्षि विश्वामित्र को बताते हैं। विश्वामित्र राम-लक्ष्मण को जनकपुर देखने की इजाजत दे देते हैं। जनकपुर में दोनों भाइयों को देखकर वहां की खियां मोहित हो जाती हैं। सुबह दोनों फूल लेने फुलवारी में जाते हैं उसी समय सीता जी सखियों के साथ पूजन करने आती हैं। गिरिजा उन्हें मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद देती हैं।