काव्य-रचना
संभाल लेना
मैं पंथ से विपंथ न हो जाऊं
मुझे संभाल लेना मेरे ईश्वर।
मैं भक्त से अभक्त न बन जाऊं
मुझे संभाल लेना मेरे ईश्वर।
मैं पुण्य से पाप की तरफ न बढ़ जाऊं
मुझे संभाल लेना मेरे ईश्वर।
मैं न्याय से अन्याय न करने लग पड़ूँ
मुझे संभाल लेना मेरे ईश्वर।
मैं जीत कर भी हार न जाऊं
मुझे संभाल लेना मेरे ईश्वर।
मैं हंसता हुआ कभी रो न पडूँ
मुझे संभाल लेना मेरे ईश्वर।
मैं इंसान से हैवान न बन जाऊं
मुझे संभाल लेना मेरे ईश्वर।
राजीव डोगरा