काव्य- रचना

काव्य- रचना

      बारिश की रिमझिम सी बूंदों में......    

बारिश की रिमझिम सी बूंदों में
तुम शबनम सी लगने लगी
हमारे प्रेम का वो मधुर गीत
तुम अपनी बेचैनियों में सुनने लगी
फिर उस रात की तरह मेरे सपने में,
तुम मेरी दुल्हन सी सजने लगी
बारिश की रिमझिम सी बूँदों में
तुम शबनम सी लगने लगी।

तुम्हारी पायलों की झंकार
छम छम सी बजने लगी
देखकर तेरे चेहरे का नूर
साँसें मेरी बढ़ने लगी,
मुझ पे छाने लगा सुरूर
धड़कने हर बात तुमसे कहने लगी
बारिश की रिमझिम सी बूँदों में
तुम शबनम सी लगने लगी।

तेरी जुबां की हर बात
मेरे दिल को छूने लगी
जादू चलाकर मन में
असर सा करने लगी,
मेरा नशा चढ़ा ऐसा कि
तुम हर दम महकने लगी
बारिश की रिमझिम सी बूँदों में
तुम शबनम सी लगने लगी।

शीतल हवा की मन्द बयार
तेरी ओर अब चलने लगी
मेरी भी नजरें अब हर पल
तेरी राह तकने लगी,
इंद्रधनुष के रंगों सी
तुम मेरे प्यार में रंगने लगी
बारिश की रिमझिम सी बूँदों में
तुम शबनम सी लगने लगी।

अब हर दिन बस तुझसे
मिलने की चाहत बढ़ने लगी
धड़कनों की गति बढ़ने से
नई उम्मीदें जगने लगी,
अब बाकी बची जो प्यास
तुमारे दीदार को तरसने लगी
बारिश की रिमझिम सी बूँदों में
तुम शबनम सी लगने लगी।

जब आयी मिलन की बेला
तुम मुझमें सिमटने लगी
हाथों में लेके हाथ
तुम मुझमें खोने लगी,
बाहों में भरकर मुझे
तुम मुझमें रमने लगी
बारिश की रिमझिम सी बूँदों में
तुम शबनम सी लगने लगी।


 कुमार मंगलम