काव्य-रचना
हे वीणापाणि माँ सरस्वती
हे वीणापाणि माँ सरस्वती
तुम ज्ञान के सुर पिरोती माँ
मैं ठहरा अज्ञानी बालक
तुम तो हो ज्ञान की ज्योति माँ
स्वागत करूँ मैं तेरा दिल से
करके हंस सवारी आती माँ
भाग्य मेरा खुल जाता जो
तुम मन मंदिर में होती माँ
श्वेत कमल है आसन तेरा
श्वेत ही वस्त्र पहनती माँ
मन का अंधियारा दूर करो
सुन लो मेरी विनती माँ
मैं अबोध तेरी शरण में आया
तुम तो अवगुण हो हरती माँ
दे दो स्थान चरणों में मुझको
मैं हूँ कंकड़ तुम मोती माँ
विद्या बुद्धि बल दे दो मुझको
छोटा सा हूँ विद्यार्थी माँ
आओ विराजो जिह्वा पर
तुम तो हो ममता की मूर्ति माँ
आरती गाऊँ करूँ वंदना
बरसा दो अपनी प्रीति माँ
मुक्ति मार्ग खुल जाता मेरा
आशीष जो अपना देती माँ
- आशीष कुमार