काव्य-रचना

काव्य-रचना

  शाम तक  

देख लेंगे बेरुखी की अदा शाम तक
सह लेंगे हम तेरी जफ़ा शाम तक

जो हुआ न तुझे इश्क चिड़ियों के घरौंदे रोशन होने से पहले
लेलेंगे तुझसे रवानगी की रज़ा शाम तक

महकने लगी थी गुलपोशियाँ ओस की बूंदे सूखते ही
बदल ना दे कहीं बादल बरसने की वजह शाम तक

मेरा दिल है दिल की तरह ही गाएगा 
कहीं उतर ना जाए सुखन का नशा शाम तक

इन मौसमों से आज परिंदे भी नाराज हैं 
होंगे ये नजारे भी पतझड़ों की तरह शाम तक

हर बार नहीं लिखता लेखक सारे किरदार बेवफा
मुमकिन हैं वे बदल दे मंच से पटकथा शाम तक

मुसल्सल सिलसिला नहीं है फ़कत साँसों का 'इशिका'
तुम जियो ज़िन्दगी बामज़ा शाम तक


_ शौर्या सिंह 'इशिका