काव्य-रचना

काव्य-रचना

   किसी के बचपन में ही सपने पूरे   

किसी के बचपन में ही सपने पूरे हो जाते है
तो  किसी के बचपन ही पूरे अधूरे रह जाते है,

किसी के  हजार ख्वाइस पूरे
तो किसी के आधे अधूरे ही रह जाते है,

कोई महलो में राज करता है 
तो किसी को झोपड़ी भी नसीब नही होते है,

किसी को बिस्तर तो
कोई बिना बिस्तर के ही सो जाता है,

किसी को रोटी तो
तो किसी को रोटी भी नसीब नही होता,

बड़े अजीब होते है गरीब घर के बच्चे
बचपन मे ही अपने पाव पर खड़े हो जाते,

किसी के बचपन मे सपने पूरे
किसी का  बचपन भी पूरा  अधूरा रह जाता है ,

किसी को दवा दुआ  तो
कोई बिना इलाज के अभाव में ही मर जाता है,

किसी का स्कूल ही घर हो जाता है
किसी को स्कूल जाना भी नसीब नही होता है,

बड़ी कठिन होता है गरीबो का जीवन
इन्हें कहा खुशी नसीब होता है।

महेश कुमार प्रजापति