काव्य-रचना
देखा बबुआ....
देखा बबुआ पहिले वाली बात तोहे समझाइब ।
मत बुझिहा की ताना हउवे बुड़बक तोहें बनाइब ।
दुनिया के ई पहिल पहाड़ा बच के रहा बचा के ।
प्यार मोहब्बत आई लव यू से दूरी रहा बना के ।
पढ़े लिखे क उमर ह बाबू पढ़ ला तोहूं दबा के ।
जईसे खानs पान तिवारी ओईसे चबा चबा के ।
चानी पर न बार बची न डाढ़ी करिया पइबा ।
चढ्ढी भी ना आटी तोहके केतनो गुरु कमइबा ।
मेकअप से मोबाइल तक कुल खर्चा तोहिं उठईबा ।
रजनीगंधा खात न हऊआ ! ए वन भी न पईबा ।
हो जईहा सरकारी भलहीं हमके जाया भुलाय ।
मिल जइहा गर कतों बनारस चयवै दिहा पियाय ।
तोहरै नियर हमरो कब्बो चमकत रहे ललाट ।
झरबइरी के कांटा लेखा जीनगी हो गइल कांट ।
सूरज उगले तक ले सुतत रहली बाप के बूते ।
भुनभुनाय के कहैं पिता जी लगल नाक में मूते ।
केतनों बीन बजावा पगुरी ना छोड़ेले भईंस ।
तिन्नो मिला तीन तरह क भईलें एकदम घुईस ।
रामे मालिक हऊअन सारन क आगे का होई ।
गाय बेंच के दूध जे पइबा केतना ताकत होई ।
रत रत भर बतियावत रहली हमहु चदरा तान ।
आज बुझाला बाबू मारैं जब शब्दन के बान ।
हम रह गईली तकते ओकर पियर हो गइल हाथ ।
झरबइरी के कांटा लेखा जीनगी हो गइल कांट ।
धीरेन्द्र पांचाल