काव्य-रचना
हिन्दी की परिकल्पना
हिन्दी से ही हिन्दुस्तान की सान है,
हिन्दी से ही हम भारतीयों की पहचान है।
हिन्दी से ही हमारा अस्तित्व है,
हिन्दी से ही हिन्दुस्तान मूल्यवान है।
हिन्दी से ही सरलता और समानता है,
हिन्दी से ही एकता और अखंडता है।
हिन्दी से ही समाज की परिकल्पना है,
हिन्दी से ही उदारता और अजेयता है।
हिन्दी से ही लोककल्याण की कल्पना है,
हिन्दी से ही जीवन का सार्थकता और सपना है।
हिन्दी से ही व्याप्त समस्त संसार है,
हिन्दी ही हम पथिकों का प्रहार है।
हिन्दी से ही सम्यक ज्ञान है,
हिन्दी से ही मुंसी और दिनकर महान है।
हिन्दी ही लोकमार्ग का प्रसस्त एक आकार है,
हिन्दी ही जनकल्याण का एक आधार है।
हिन्दी ही अध्यात्म के पररूप का बोधक है,
हिन्दी ही सार्थक और साधक है।
हिन्दी ही ज्ञान का आकार है,
हिन्दी ही समस्त वाणियों पर प्रहार है।
हिन्दी मे ही,विश्व समाहित है,
इसलिए हिन्दुस्तान विश्व विजयी है।
शुभम त्रिवेदी