काव्य-रचना
संकल्प
नित संकल्प ठान के मन में
उठता-गिरता तू हर बार,
मन के जीते-जीत है
मन के हारे-हार।
भय-भूख प्रज्वलित जब
करतें आदम का नित संहार,
आशा और उम्मीद सहारे
मानव जीता है हर बार।
मन की कारा विस्मृत करके
करना ऊर्जा का नव संचार,
प्रगति पथ पर बढ़ना हरदम
जीत तुम्हारी बारम्बार।
रवि प्रकाश केशरी