काव्य-रचना

काव्य-रचना

   मन मे तनिक विचारा होता !    

क्या बीतेगी मां बापू पर,मन मे तनिक विचारा होता।
माँ इतना न रोई होती,एक पिता न हारा होता।
बहनें काश ! जो पढ़ लिख जाती
सफलता के कई एवरेस्ट चढ़ जाती
सारे जग में सोचो कितना,रोशन नाम हमारा होता
बहना काश!एक बार जो तूने,मन मे तनिक विचारा होता।
लड़ सकता था जो दुनिया से,वो खुद से ही हार गया
इक तेरा ही पागलपन,सबको जिंदा मार गया
तारे तोड़ लाता अम्बर से,सबकी आंखों का तारा होता।
कुल में दाग लगाने वाली,मन में तनिक विचारा होता।
झुका नहीं जो किसी के आगे,वो,शीश झुकाकर चलता है
मां भीतर -भीतर सुलग रही,पिता अंदर-अंदर जलता है
बेटी तनिक जो सीता बनकर,रावण सा दुत्कारा होता।
अब जग जाओ जगदजननियों,रणचण्डी रूप तो धारो
खुद का,कुल का मान घटे न,इन असुरों को अब संहारो
न कोई श्रद्धा मरने पाती, न ही आफताब ने मारा होता
कुल की मर्यादा को जो तूने,मन में तनिक विचारा होता
जो हैं अपने मूल्य,संस्कृति, काश!उन्हें सँवारा होता
मां पर कोई  न उठती ऊँगली, कोई पिता न हारा होता।

विवेक पाण्डेय