काव्य-रचना

काव्य-रचना

     उम्र गुजर जाने के बाद        

इतना तो मैं जान गया हूँ ।
थोड़ा तो पहचान गया हूँ ।
सब कुछ मेरे हाथ लगेगा ,
उम्र गुजर जाने के बाद ।

बिन रहा हूँ तिनका तिनका ।
छीन रहा हूँ अपने हक का ।
अंतर्मन चिंघाड़ेगा तब ,
उम्र गुजर जाने के बाद ।

आँखों पर तब चश्में होंगे ।
सब अपने तब सपने होंगे ।
ड्योढ़ी पर दिन-रात कटेगी ,
उम्र गुजर जाने के बाद ।

कुछ अपने धिक्कारेंगे ।
पर कुछ तो गले लगाएंगे ।
सबका मैं सम्मान करूँगा ,
उम्र गुजर जाने के बाद ।

सावन क्या मधुमास ना होगा ।
बेटा शायद पास ना होगा ।
बिन पानी की आँखें होंगीं ,
उम्र गुजर जाने के बाद ।

दरवाजे से सब निकलेंगे।
घर को मंदिर वो बोलेंगे।
कोई न मुझसे बात करेगा ,
उम्र गुजर जाने के बाद।

धीरेन्द्र पांचाल