काव्य-रचना
वो गलियों के भुलक्कड़ रास्ते
वो गलियों के भुलक्कड़ रास्ते
हर नुक्कड़ पर चाय और नाश्ते,
चाचा के राजनीति कि बाते
सड़कों से जाम के शोर है आते,
शाम की महफ़िल का मैं दीवाना
रोशन हैं सड़के,
गंगा आरती में वो भीड़ का आना
बाबा के दरबार की भक्ति
माँ अन्नपूर्णा की शक्ति,
संकटमोचन का आशीर्वाद
गंगा का पावन घाट
घंटो की आवाज से यहां सवेरा है
घाटो पर साधु संतों का बसेरा है।
यहाँ के लोगों का अलग ही व्यवहार है
अनजानों से भी दोस्तों जैसा प्यार है।
कितना कुछ लिख दू बनारस के प्यार में
कम पड़ जाते है शब्द इसके बखान में
कुमार मंगलम