काव्य रचना
माँ की उपमा
ऊपर जिसका अन्त नही, उसे आसमां कहते है।
जिसके प्यार का अन्त नही, उसे माँ कहते है।।
जो माँ जैसी देवी को घर के मन्दिर में नही रख सकते है,
वो लाखो पुण्य भले ही कर ले,इन्सान नही बन सकते है।
माँ के आंचल में युगों-युगों से भगवानों को पाला है,
माँ के चरणों मे गिरिजाघर और शिवाला है।।
माँ जिस पौधे को पानी दे दे,वो पौधा चन्दन बन जाता है।
माँ के चरणों को छूकर पानी भी, गंगा जल बन जाता है।।
हिमगिरि जैसी ऊँचाई है, सागर जैसी लहराई है,
दुनिया मे जितनी खुश्बू है, सब माँ के आंचल से आयी है।।
माँ कबीरा की साखी, माँ तुलसी की चौपाई है,
माँ मीरा की पदावली, माँ खुसरो की अमर नुमाई है।।
माँ आँगन की तुलसी जैसी, माँ पावन बरगद की छाया है,
माँ वेद ऋचाओ की महिमा, माँ महाकाव्य की काया है।।
माँ मानसरोवर ममता का,माँ गोमुख की ऊँचाई है,
माँ परिवारों का संगम,माँ रिश्तों की गहराई है।।
माँ हरि दुब धरती की, माँ केशर वाली क्यारी है,
माँ की उपमा केवल माँ है, माँ हर घर की फुलवारी है।।
सात सुर नर्तन करती, जब कोई माँ लोरी गाती है,
माँ जिस रोटी को छू ले, वह प्रसाद बन जाती है।।
माना मेरे घर की दीवारों में चन्दन सी सूरत है,
लेकिन दिल के इस मन्दिर में, केवल माँ की मूरत है।।
दिन भर काम करने के बाद, पापा पूछते क्या कमाया,
वाइफ पूछती क्या बचाया, बेटा पूछता है क्या लाया,
लेकिन सिर्फ एक माँ पूछती है,बेटा कुछ खाया।।
प्रमोद कुमार मिश्रा