आखिर कितनी मौतों के बाद वीडीए मानेगा अपनी गलती?

आखिर कितनी मौतों के बाद वीडीए मानेगा अपनी गलती?
  • जोनल संजीव कुमार के भ्रष्टाचार ने ले ली एक मजदूर की जान !
  • मारुति नगर में हो रहे इस अवैध निर्माण की किसने दी अनुमति !
  • क्या गरीबों के जान की नहीं है कोई कीमत ! 
  • आखिर सिस्टम क्यों बनता है इतना बेबस और बेचारा !

बीते साल नवंबर में भी भेलूपुर क्षेत्र में बेसमेंट की खुदाई के समय मजदूर की मलबे में दबने से हुई थी मौत

वाराणसी (रणभेरी विशेष सं.): लंका थाना क्षेत्र के मारुति नगर में बुधवार को निर्माणाधीन भवन की छत गिरने से एक मजदूर राम प्रवेश की मौत और दूसरे मजदूर महेश के घायल होने की घटना ने एक बार फिर विकास प्राधिकरण की कार्यशैली पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। यह हादसा केवल एक निर्माण दुर्घटना नहीं, बल्कि एक ऐसे सिस्टम का परिणाम है जिसमें भ्रष्टाचार, अनदेखी और गरीब की जान की कोई कीमत नहीं है। बुधवार को दोपहर के करीब मारुति नगर स्थित एक निर्माणाधीन मकान में जीने की शटरिंग हटाते वक्त अचानक छत भरभराकर गिर पड़ी। उस वक्त दो मजदूर...राम प्रवेश और महेश मलबे के नीचे दब गए। सूचना मिलते ही लंका थाने की पुलिस फोर्स मौके पर पहुंची। तत्काल दीवार तोड़कर दोनों मजदूरों को बाहर निकाला गया और बीएचयू ट्रामा सेंटर में भर्ती करवाया गया जहां डॉक्टरों ने राम प्रवेश को मृत घोषित कर दिया। राम प्रवेश (25 वर्ष), देवरिया के सरसा गांव निवासी थे। उनके परिवार में पत्नी आरती, तीन छोटे बच्चे और बूढ़ी मां हैं। उनका पूरा परिवार इस उम्मीद में था कि राम प्रवेश एक दिन बेहतर जीवन देगा, लेकिन अब उनके सिर से सहारा छिन गया। जानकारी के मुताबिक राम प्रवेश दिहाड़ी मजदूरी कर अपने तीन बच्चों का पेट पालते थे। पत्नी आरती, बड़ी बेटी (6 माह), दो बेटे (3 और डेढ़ साल) और मां प्रभाती देवी अब बेसहारा हो चुके हैं। गाँव में एक छोटे से मकान में रहने वाला यह परिवार राम प्रवेश की मजदूरी पर पूरी तरह निर्भर था। उनकी पत्नी बेसुध है और बच्चों को यह भी समझ नहीं कि पिता अब कभी नहीं लौटेंगे।

अवैध निर्माण पर सवाल लेकिन जिम्मेदार मौन 

बताया जा रहा है कि जिस इमारत में हादसा हुआ, वह एचएफएल क्षेत्र में पड़ता है, जहां अवैध निर्माण की भरमार है। स्थानीय सूत्रों के अनुसार पूरे क्षेत्र में बिना नक्शा पास कराए कई मकान बनाए जा रहे हैं, और यह सब वीडीए के जोनल अधिकारी संजीव कुमार की मौन सहमति से संभव हो रहा है। विभागीय सूत्रों के अनुसार, एक तय राशि के बदले में सारे नियम कानून को दरकिनार कर निर्माण की इजाजत दे दी जाती है। सवाल उठता है कि जब वीडीए का क्षेत्रीय अधिकारी अपने क्षेत्र की अवैध गतिविधियों की निगरानी नहीं करेगा तो कौन करेगा ? क्या यह रिश्वत का खेल नहीं ? सवाल यह है कि आखिर ऐसे हादसों से प्रशासन क्यों नहीं सबक लेता? कितने गरीब मजदूरों की जान जाएगी तब जाकर कोई जिम्मेदारी तय होगी ? अब ऐसे में सवाल उठता है आखिर इस अवैध निर्माण की अनुमति किसने दी। वीडीए के जोनल की जिम्मेदारी होती है कि वह अपने क्षेत्र के सभी अवैध निर्माणों की जानकारी रखे लेकिन नगवां जोन में ऐसा नहीं है। वीडीए जोनल ने अपना ईमान बेचकर एक एक निर्माण की बोली लगाई है। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या वीडीए जोनल संजीव कुमार एक गरीब मजदूर के मौत के जिम्मेदार नहीं हैं! 

बीते साल नवंबर में भेलूपुर में बेसमेंट की खुदाई करते समय भी हुई थी मजदूर की मौत 

आपको याद होगा कि बीते साल 6 नवंबर को भेलूपुर थाना अंतर्गत जलकल विभाग के पास एक निमार्णाधीन भवन के बेसमेंट की खुदाई के दौरान मजदूरों के ऊपर भरभरा कर गिरी मिट्टी के ढेर में दबकर एक मजदूर की मौत हो गयी थी। जलकल विभाग के सामने विगत कुछ दिनों से एक होटल का निर्माण कार्य चल रहा था, जिसमें अंडरग्राउंड फ्लोर बनाने के लिए मिट्टी की दीवार खोदी जा रही थी। इस कार्य में अरुण तिवारी नामक ठेकेदार की देख-रेख में दर्जनों मजदूर कार्य कर रहे थे। दिन में लगभग 1:00 बजे के करीब मजदूरों के ऊपर 10 फीट ऊंची मिट्टी की दीवार अचानक से भरभराकर गिर गई थी, जिसमें 8 मजदूर दब गए। जब तक किसी तरह से मजदूरों को बाहर निकाला गया तब तक बबलू नामक एक मजदूर जिसकी उम्र 25 वर्ष बतायी गयी की घटना स्थल पर ही मौत हो गई थी। बबलू मिर्जापुर जिले के अदलहाट थाने के कौवासाथ गांव का रहने वाला था। मिट्टी के नीचे दबने वाले मजदूरों में से 7 मजदूर घायल भी हो गए थे। यह निर्माण भी अवैध था।

जानिए क्या है कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम - 1923

कार्यस्थल पर कार्य के दौरान होने वाली शारीरिक क्षति के संबंध में, काफी विस्तार से इस कानून में बताया गया है। मजदूर समाज के निचले वर्ग से आने वाला वह व्यक्ति होता है, जिसका महत्व तभी तक होती है, जब तक वह अपना काम कर रहा होता है। मजदूर की क्षति एक बहुत ही साधारण घटना होती है समाज के लिए, जिसका कोई महत्व नहीं होता। इसी वजह से उपरोक्त कानून को लाया गया जिसका मूल उद्देश्य, यही है कि मजदूर की मौत के बाद उसके परिवार को तुरंत मुआवजा मुहैया कराया जाए जिस से उनकी लाचारी को थोड़ा सा मरहम मिले। इस कानून के अनुसार भले ही भवन स्वामी अपने भवन निर्माण का कार्य किसी ठेकेदार को दे रखा हो और मजदूर ठेकेदार की ओर से कार्य कर रहा हो - कानूनी रूप से भवन स्वामी उस मजदूर के "प्रिंसिपल एंप्लॉयर" होते हैं। अतः कार्य के दौरान अगर मजदूर की मौत होती है तो पहली ज़िम्मेदारी "प्रिंसिपल एंप्लॉयर" यानी भवन स्वामी ई होती है। आसान शब्दों में, मजदूर के परिवार तक मुआवजा मुहैया कराने की जिम्मेदारी भवन स्वामी की है। ऐसे में जब निर्माण के दौरान कोई मौत होती है तो पुलिस एफ. आई. आर दर्ज करती है, जिसकी जानकारी लेबर कमिश्नर दफ्तर को दी जाती है। लेबर कमिश्नर की तरफ से जांच की जाती है, जिसके बाद प्रिंसिपल एंप्लॉयर को मुआवजे से संबंधित जानकारी दी जाती है। यह सब कानून में लिखी हुई बातें हैं। हालांकि छीट - पुट कितने ही कामों में रोज मजदूरों की मौत होती है। मजदूरों के आश्रितों को उनके अधिकारों की कोई जानकारी नहीं होती है, और कुछ राज्यों के अलावा बाकी राज्यों में छोटे शहरों और कस्बों तक मजदूर संगठन भी नहीं होते। ऐसे में पुलिस मामले को रफा दफा कर के मलाई खाती है तथा थोड़े से पैसे मजदूर के आश्रितों तक पहुंचा कर उन्हें दिलासा दे दिया जाता है। अब देखना होगा कि लंका थाना क्षेत्र अंतर्गत हुई इस घटना में कौन कितनी मलाई खाता है और पीड़ितों के साथ कितना न्याय हो पाता है।

कौन होगा इस हादसे का जिम्मेदार !

राम प्रवेश की मौत कोई अकेली घटना नहीं है, यह उस सड़ चुके सिस्टम की निशानी है जिसमें गरीब की जान की कोई कीमत नहीं। अवैध निर्माण, भ्रष्टाचार, प्रशासनिक लापरवाही और राजनीतिक चुप्पी, ये सब मिलकर ऐसे हादसों को जन्म देते हैं। सवाल उठता है, क्या वीडीए के ज़ोनल अधिकारी संजीव कुमार को जिम्मेदार ठहराया जाएगा ? या फिर यह मामला भी बाकी हादसों की तरह फाइलों में दफन हो जाएगा ? जब तक सिस्टम में बैठे लोग जवाबदेह नहीं बनेंगे, राम प्रवेश जैसे मजदूर यूं ही मौत के मुंह में समाते रहेंगे।


पार्ट-26 

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