काव्य रचना

काव्य रचना

  तरुण सागर   

तू है तरुण सागर, 
है इच्छा भरने की गागर में सागर। 
न केवल देव नदी गंगा आकाश गंगा में नहाकर 
चाँद से भी आगे, चांदनी से दूर जाकर। 
क्यों भटक रहा है तू अपने पथ से 
दृढ़ चट्टानें डगति तीव्र जल धार से। 
भीगा जा सरे संसार को अपने लहर से 
दिखा वह सूक्ष्म शक्ति, खो रही जो तुझसे।
बदल तू दशा व दिशा इस काल की 
जिस धरती पर तू जन्मा वह गाँधी, बोस, आज़ाद की 
बचा तू इन मनुजों को, सौगंध तुझे इस धरती की 
तू जाग जा, तू उठ खड़ा हो, ये बात है हिंदुस्तान की।

मोहित त्रिपाठी