काव्य रचना

काव्य रचना

    रोपनी     

कमरतोड़ मेहनत कर
पेट की भूख मिटाने को
करती है पूरे दिन 
रोपाई धान की
रोपनी!

तुम क्या जानो
कितनी जिम्मेदारियां हैं
उनके सिर पर
तपती धूप गर्मी बारिश में
पसीने से लथपथ
भूख,प्यास को भूलाकर
कीचड़ से सने
शरीर लिये करती है
रोपाई!

रोपनी अधिकतर
एक वर्ग विशेष से आती हैं
आदिवासी,दलित,पिछड़े व 
मुसहर जातियों से 
इसका क्या कारण है?
कभी सोचते हो
इनके बारे में 

नहीं?
कभी नहीं।

कभी सोचो इनके 
बारे में भी?
क्योंकि
इन वर्गों की स्त्रियों के
अंदर होती है
हर परिस्थिति से लड़ने की क्षमता
कुछ भी करने की माकूल हिम्मत
फौलादी इरादे

तुम्हारी औरतों को 
आराम पसन्द है
वो रहती हैं,पर्दे के अंदर
एसी कूलर में रात-दिन
ऐसो आराम से

धन्य है रोपनी!
गाकर पारम्परिक लोकगीत
भुलाकर गीले शिकवे
करती है सुबह से साम
अपने भविष्य के लिए
भूख मिटाने के लिए
रोपाई।

मनोज कौशल