काव्य रचना
मन की पुकार सुनता हूँ
मन की पुकार सुनता हूँ
हाँ मैं तुमसे प्यार करता हूँ ||
तुम्हारी आँखों को पढ़ना सीख लिया,
हाँ उन आँखों में खुद को देखता हूँ ||
जब भी तुम मुस्काती-खिलखिलाती हो,
उस पल दूर हो के भी नज़रों से,
मन के करीब आ जाती हो ||
बारिश की बूंदें जब टपकती धरा पर,
उन बूंदों की आवाज सुन, तुम्हारे
कंगन की खनक महसूस करता हूँ ||
हवा जब भी बहती है ,एहसास तुम्हारा
मुझ तक पहुँचता है
बह जाता हूँ मैं उन फ़िज़ाओं में , फिर बिन कहे
मन मयूर बन नृत्य करता है ||
इश्क़ है ये कहता नहीं ,न कहना मुझको पड़ता है,
तुम जो आई जीवन में , जीवन सफल सा लगता है ||
मन की पुकार सुनता हूँ,
हाँ मैं तुमसे प्यार करता हूँ ||
तन्हाई संग आजकल अकेला हूँ ,
फिर भी सच में कहता हूँ ,
तुम्हारी यादें , यादों में बातें
बातों में हंसी याद कर उस पल
जी-भर मुस्कुरा ,तुम-तक बिन कहे पहुंच जाता हूँ ||
तुम-सा कौन है ,जो प्रेम करे इतना
हो दूर लेकिन ,पास ही हूँ पाता
मन की पुकार संग पुकारता तुमको ,
हाँ उस पुकार में प्यार हूँ करता ||
नवीन आशा