सरकारी आदेशों की धज्जियां उड़ाकर चमका रहे नेतागिरी
जागरूकता ने नाम पर कड़ाके की ठंड में मासूम बच्चों के सेहत से कर रहे खिलवाड़
वाराणसी (रणभेरी सं.)। आप सभी तमाम रोगों से परिचित होंगे। सभी रोगों का लगभग ईलाज भी संभव है लेकिन ऐसा रोग है जो लाईलाज है, उसका नाम है "छपास रोग"। यह रोग जिसको लग जाता उसे बस किसी न किसी वजह की तलाश होती है ताकि उसके माध्यम से वह छप सके। दरअसल ऐसे छपास रोगियों को समाज, पर्यावरण व सामाजिक बदलाव की परवाह कम लेकिन छपने की भूख अधिक होती है। बनारस में भी ऐसे तमाम तथाकथित समाजसेवी और सामाजिक संस्थाएं है जिसका मूल उद्देश्य अपनी नेतागिरी चमकाना है। ये संस्थाएं एक बैनर बनवाकर, दस-बीस लोगों को इकठ्ठा कर पूरे शहर को जागरूक करने का ढिंढोरा पीटने निकल पड़ते है। बनारस में इन दिनों एक ऐसी ही संस्था चर्चा में है जिसका नाम है सुबह-ए-बनारस। एक तरफ जहां काशी में भीषण ठंड पड़ रही वही इस संस्था के अध्यक्ष स्कूली बच्चों का सहारा लेकर निकल पड़े चाइनीज मंझे के खिलाफ जागरूकता फैलाने। जागरूकता तो ठीक है, लेकिन साहब अपनी नेतागिरी चमकाने में शायद यह भूल गए कि इस कड़ाके की ठंड में अगर कोई मासूम बीमार पड़ गया तो उनका क्या होगा ! नेतागिरी के चक्कर में महानुभाव सरकारी आदेशों की भी धज्जियां उड़ा दिए।
विदित हो कि कड़ाके की ठंड को देखते हुए गुरुवार को ही बनारस के बेसिक शिक्षा अधिकारी ने कक्षा 1 से 8 तक के बेसिक शिक्षा परिषद से मान्यता प्राप्त सभी विद्यालयों को बंद रखने का आदेश जारी किया था। लेकिन कुछ सरकारी-गैर सरकारी स्कूल अपनी मनमानी से आज भी खुले थे। ऐसे में सुबह-ए-बनारस संस्था के अध्यक्ष मुकेश जायसवाल, उपाध्यक्ष अनिल केसरी, कमलेश सिंह, गणेश सिंह, श्याम दास गुजराती, ललित गुजराती, बी.डी. टकसाली व सरस्वती इंटरमीडिएट कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. अखिलेंद्र त्रिपाठी ने सुड़िया स्थित सरस्वती इंटरमीडिएट कॉलेज के परिसर में बेसिक शिक्षा अधिकारी के आदेशों को ताख पर रखकर खुले आसमान के नीचे मासूम बच्चों के साथ जागरूकता के नाम पर सरकारी आदेशों की जमकर धज्जियां उड़ाई।
अगर इन समाजसेवियों को बच्चों की इतनी ही फिक्र थी बेहतर होता कि सर्वप्रथम देश का भविष्य मानकर ये लोग इन बच्चों को आगे खड़ा करते लेकिन असल में तो इनका उद्देश्य जागरूकता कम छपना ज्यादा था। महानुभावों ने खुद ही हाथ में बैनर लेकर बच्चों को पीछे कर दिया और जमकर फोटोबाजी की। यहां पर "छपास रोग" की गंभीरता को समझना जरूरी है। ऐसी तथाकथित संस्थाएं और नेता अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए मासूमों का इस्तेमाल कर रहे हैं। सरकारी आदेशों की अवहेलना कर और बच्चों की सेहत को खतरे में डालते हुए, वे अपनी नेतागिरी को चमकाने की कोशिश कर रहे हैं। यह न केवल उनके खुद के स्वार्थ को दिखाता है, बल्कि समाज के प्रति उनकी असंवेदनशीलता को भी उजागर करता है।
जागरूकता के नाम पर फोटोबाजी है शौक
सभी सरकारी आदेशों को ताक पर रखते हुए ये लोग स्कूली बच्चों को सर्दी में एक बैनर लेकर उनकी तस्वीरें खिंचवाते रहे। बच्चों को जागरूकता का पाठ पढ़ाने के बजाय, इनका असली मकसद अपने प्रचार और छवि को मीडिया में सामने लाना था। अगर इन्हें बच्चों की चिंता होती, तो वे बच्चों को केवल प्रतीक के रूप में नहीं बल्कि उनके स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए सोचते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बच्चों को बैनर पकड़ाने के बजाय खुद बैनर लेकर आगे खड़े हुए और तस्वीरें खिंचवाई। समाज सेवा और जागरूकता के नाम पर ऐसी संस्थाओं के असली उद्देश्य पर सवाल उठाना जरूरी है। अगर वे समाज के लिए काम करना चाहते हैं, तो उन्हें बच्चों की सेहत और सुरक्षा के मामलों में सरकारी आदेशों का पालन करना चाहिए न कि केवल प्रचार और प्रचार के लिए किसी भी कीमत पर बच्चों को सड़कों पर उतारना चाहिए। इन संस्थाओं को यह समझना होगा कि उनका उद्देश्य केवल अपने नाम को चमकाना नहीं होना चाहिए, बल्कि समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
बच्चों का सहारा लेकर आये दिन निकाली जाती है रैली
वाराणसी की संस्था सुबह-ए-बनारस का यह कोई पहला कार्यक्रम नहीं है जिसमे इस संस्था के पदाधिकारियों द्वारा अपनी छपास तृष्णा मिटाने के लिए स्कूली बच्चों का उपयोग किया जा रहा हो। असल में इस संस्था के अध्यक्ष मुकेश जायसवाल ने अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए यह रास्ता हमेशा के लिए बना रखा है। विगत कई महीनों से ऐसा देखा जा रहा है कि इस संस्था के अध्यक्ष द्वारा आये दिन विभिन्न मुद्दों पर स्कूली बच्चों की भारी भरकम संख्या का सहारा लेकर अपने कुछ साथियों सहित एक बैनर के साथ अलग-अलग एंगल से फोटो खिचवाया जाता है। जिसके बाद एक प्रेस नोट तैयार करके सभी छोटे-बड़े मीडिया संस्थानों को भेजा जाता है। सोशल मीडिया पर भी पूरे दिन इस बात का प्रचार किया जाता है कि सुबह-ए-बनारस संस्था ने लोगों को किया जागरूक । परन्तु वास्तव में तो ऐसी छपास के रोग से ग्रसित संस्थाओं को आईना दिखाने का कार्य अब चौथे स्तम्भ को करना होगा ।
बच्चों का सहारा लेकर आए दिन रैलियां निकालने वाले चेहरे