काव्य रचना
मुझे हँसते हुए विदा कर
न रो ऐसे लिपट कर
मुझे हँसते हुए विदा कर
आखिरी सफर है यह मेरा
मुकम्मल होने की दुआ कर
आखरी मिलन था तुझसे
सच्चाई से आँखें ना मूँदा कर
संभाल अपने दिल को
मेरे दिल को अब जुदा कर
मेरी रुखसती के गम को
यूँ सीने में ना सिया कर
मेरे बाद भी जहां है
खुशी-खुशी जिया कर
सभी जख्मों को धो डाल
उन्हें नासूर ना किया कर
थोड़ी हकीमी तू भी जान ले
शिद्दत से उनकी दवा कर
तेरा वक्त बनेगा मरहम
खुद को वक्त दिया कर
मेरी चिंता छोड़ दे
खुद की खबर लिया कर
फकीरी में दिन हैं गुजारे
बादशाहों सा हक अदा कर
न रो ऐसे लिपट कर
मुझे हँसते हुए विदा कर
आशीष कुमार-