मैं बैरी सुग्रीव पियारा, अवगुन कवन नाथ मोहिं मारा
वाराणसी (रणभेरी सं.)। वचन दृढ़ता ही श्रीराम की पहचान है। यह कैसे न सुग्रीव को दिया वचन निभाते। बालि का वध कर दिया। सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बना दिया। जब सुग्रीव की बारी आई तो वह राजमद में भूल गया। फिर उसे श्रीराम के बल की याद दिलानी पड़ी। रामलीला के 18वें दिन राम सुग्रीव को बालि से युद्ध के लिए भेजते हैं। बालि की पत्नी तारा उसे समझाती है, लेकिन वह नहीं माना और यह कहकर कि भगवान सबको बराबर देखते हैं, युद्ध के लिए चला। बालि सुग्रीव की खूब पिटाई करता है। राम दोनों भाइयों का एक समान रूप देखकर भ्रम में पड़ जाते हैं। तब उन्होंने सुग्रीव को एक माला पहनाकर पुन: युद्ध के लिए भेजा। जब सुग्रीव बालि से युद्ध में हारने लगा तो राम पेड़ की आड़ से एक बाण मार कर बालि का वध कर देते हैं। बालि भी पूछ बैठता है कि मैं शत्रु सुग्रीव प्यारा। ऐसा क्यों प्रभु? श्रीराम अपने तर्कों से उसे निरुत्तर कर देते हैं तब बालि अपने पुत्र अंगद को श्रीराम को सौंपकर अपने प्राण त्याग देता है। सुग्रीव का राजतिलक कर किष्किंधा का राजा बनाया जाता है। प्रवर्षण पर्वत पर निवास के दौरान वर्षा काल में बरसते बादलों को देखकर राम और लक्ष्मण उसका वर्णन करते हैं। इधर लम्बी अवधि तक सीता की कोई खबर ना पाकर राम क्रोधित हो कर लक्ष्मण से कहते हैं कि लगता है सुग्रीव राज पाकर हमें भूल गया है। जिस बाण से बालि को मारा था, उसी से उसको भी मारूंगा। लक्ष्मण सुग्रीव पर जब गुस्सा दिखाते हैं तो सुग्रीव सारे वानरों को सीता की खोज में भेजते है। कहते है कि एक पखवारे में उनकी खबर न लाने पर उन्हें अपने हाथों मारूँगा। वानरों की टोली चलती है तो श्रीराम हनुमान को अपनी अंगूठी देकर सीता का संदेश लेकर जल्दी लौटने को कहते हैं। सभी दक्षिण दिशा में समुद्र के किनारे पहुंचे जहां जटायु का भाई संपाति मिला। उसने सौ जोजन देखकर बताया कि सीता लंका में अशोक वाटिका में बैठी कुछ सोच रही है। सभी वहां तक पहुंचने का उपाय सोचने लगे। समुद्र लांघने की बात आती है तो सब अपनी अपनी क्षमता बताते है। तब जामवंत हनुमान को उनके बल की याद दिलाते हैं। इस पर हनुमान गर्जना करते हैं। यहीं पर आरती के साथ लीला को विश्राम दिया गया।श्रीराम के चरण धूलि से अहिल्या का हुआ उद्धार
वाराणसी (रणभेरी सं.)। चोलापुर क्षेत्र के दशकों पुरानी प्रसिद्ध दानगंज रामलीला में आदर्श रामलीला समिति के तत्वावधान में दूसरे दिन के लीला मंचन मे प्रभु श्रीराम के धरती पर अवतरण के पश्चात देव, दानव, गंधर्व, पशु-पक्षी व वनस्पतियों में भी हर्षोल्लास व्याप्त हो गया। सभी एक-दूसरे को बधाई देते हैं। शुक्रवार को मुनि विश्वामित्र की तपस्या व यज्ञ के दौरान राक्षस उनकी तपस्या भंग करते हैं और ऋषि-मुनियों को परेशान करते हैं। दु:खी होकर विश्वामित्र राजा दशरथ के पास जाकर राम व लक्ष्मण को कुछ समय के लिए अपने साथ वन में ले जाने की बात करते हैं तो दशरथ राजकुमारों को छोटा बताकर मना कर देते हैं। विश्वामित्र के समझाने पर दशरथ मान जाते हैं और वन में ऋषि मुनियों की रक्षा करने और यज्ञ को बिना विघ्न के पूरा करने के लिए ताड़का का वध करते हैं। तत्पश्चात राजा जनक द्वारा सीता स्वयंवर की सूचना मुनि विश्वामित्र तक पहुंचती है। इसके बाद रामलीला मंचन में राम और लक्ष्मण के साथ जनकपुर जाते समय श्रापित होकर पत्थर के रूप में पड़ी अहिल्या भगवान राम के चरण स्पर्श होते ही सुंदर स्त्री के रूप में बदल जाती हैं, जिन्हें यह अभिशाप मिला था कि त्रेता युग में भगवान राम व लक्ष्मण के द्वारा ही उद्धार होगा। जनकपुर बाजार पहुंच कर भगवान राम व लक्ष्मण जनकपुर बाजार में दुकानों को देखते हैं। रामलीला समिति अध्यक्ष अनूप गुप्ता, पूर्व ब्लॉक प्रमुख सुभाष यादव, ग्राम प्रधान शिवकुमार जायसवाल, अजय बरनवाल, मिथिलेश बहादुर सिंह, रामनगीना सेठ, अशोक सेठ, अजय जायसवाल, अरविंद सेठ, प्रिंस सिंह, विनय कुमार सिंह अभिषेक गुप्ता, राहुल गुप्ता, प्रांजल बरनवाल समेत सैकड़ो रामभक्त मौजूद रहे।
रामलीला में आज
- रामनगर: हनुमान का सिंधुपार गमन, श्रीजानकी दर्शन, लंका दहन, श्रीपदांबुज समागम, समाचार निवेदन
- जाल्हपुर: हनुमान का सिंधुपार गमन, श्रीजानकी दर्शन, लंका दहन, श्रीपदांबुज समागम, समाचार निवेदन
- भोजूबीर: संत वर्णन, श्रीराम हनुमान भेंट, सुग्रीव मित्रता, बालि वध, सुग्रीव का राज्याभिषेक।
- लाटभैरव: जयंत नेत्रभंग, अत्रि मिलन, अनुसुइया संवाद, विराध वध, पंचवटी निवास
- तुलसी घाट: जयंत नेत्रभंग, अत्रि मिलन, विराघ वध, सरभंग देहत्याग