गंभीर बीमारी ने तोड़ा, सहारा बन आगे आईं बहू-बेटियां
गोरखपुर । आज के इस आधुनिक युग में भी भारतीय परंपरा अपने जड़ से जुड़ी हुई है। यह हम नहीं कर रहे हैं बल्कि गोरखपुर विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. गरिमा सिंह के केस स्टडी में यह तथ्य सिद्ध साबित हुआ है। परिवार में पति, सास या ससुर की गंभीर बीमारी के उपचार में परिवार टूट गया। उनके घर जाने पर भी सेवा भाव जरूरी है। ऐसे में सर्वाधिक मामलों में बहू, बेटी और बहन उनकी सेवा करती मिलीं। लंबे समय से देखभाल के बाद भी उनके मन में पछतावा नहीं था। वह उनकी सेवा को अपने धर्म और कर्म से जोड़कर जोश के साथ सेवा में जुटी हुई हैं। डॉ. गरिमा सिंह ने गंभीर बीमारी से ग्रसित ऐसे लोगों की केस स्टडी पर अध्ययन किया जो लंबे समय से ग्रसित होने के साथ घर पर उनका उपचार चल रहा है। इसमें मधुमेह, कैंसर, हृदय की बीमारी, गठिया, ब्लड प्रेसर, पाकिंर्संस की बीमारी, माइग्रेन, थायराइड और स्पाइनल बोन टीबी आदि से ग्रसित लोगों को अपने अध्ययन में शामिल किया। ऐसे 60 मामलों पर अध्ययन कर पाया कि सर्वाधिक मामलों में बहू, पत्नी, बेटी, पोती, मां, बहन, ननद आदि के रूप में सेवा करती मिलीं।
मरीज तीमारदार केस
सास बहू 12
पति पत्नी 12
मां बेटी 11
दादी पोती 07
पिता बेटी 04
चाचा बेटी 03
दादा पोता 03
बेटी मां 02
चाचा भतीजा 02
बहन बहन 02
भाभी ननद 01
ससुर बहू 01
सहायक आचार्य मनोविज्ञान विभाग, डीडीयू डॉ गरिमा सिंह ने बताया कि पश्चिमी सभ्यता की अपेक्षा भारतीय संस्कृति की जड़ आज भी अपने धरातल से जुड़ी हुई हैं। जहां लंबी बीमारी के बाद लोग ऊब जाते हैं और उसे बोझ समझने लगते हैं, लेकिन अध्ययन में यह सामने आया कि रिश्ते की डोर से बंधे हमारे समाज के लोग उसे अपना धर्म मानते हुए अपने लिए उसे सेवा का अवसर मान पूरे मनोभाव से देखभाल में लगे हुए हैं।