बीएचयू ने दलाईलामा को पुनः दिया 'डॉक्टर ऑफ लेटर्स' सम्मान

वाराणसी (रणभेरी): काशी हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा वर्ष 1956 में परम पावन दलाईलामा को 'डॉक्टर ऑफ लेटर्स' की मानद उपाधि प्रदान की गई थी, जब तिब्बत एक स्वतंत्र राष्ट्र था। वर्ष 1959 - में जब परम पावन ने तिब्बत से निर्वासन लेकर भारत में शरण ली, उस समय यह उपाधि पत्र वहीं तिब्बत में ही छूट गया। पिछले माह केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान की कुलसचिव डॉ. सुनीता चंद्रा धर्मशाला स्थित मैक्लोडगंज में परम पावन के दर्शन के लिए गई थीं। वहां स्थित दलाई लामा ट्रस्ट द्वारा स्थापित संग्रहालय, जहां उनके द्वारा प्राप्त सभी सम्मान संरक्षित हैं। कुलसचिव ने संग्रहालय में देखा कि बीएचयू द्वारा प्रदत्त 'डॉक्टर ऑफ लेटर्स' की उपाधि का केवल छायाचित्र मौजूद है, परंतु मूल डिग्री नहीं है।
संग्रहालय के निदेशक से बातचीत के दौरान यह जानकारी मिली कि यह डिग्री तिब्बत में ही छूट गई थी, जब परम पावन ने देश छोड़ा था। धर्मशाला से लौटने के पश्चात डॉ. चंद्रा ने बीएचयू के संयुक्त कुलसचिव डॉ. अवधेश कुमार (परीक्षा) से इस विषय में संपर्क किया और उसके बाद उपाधि की द्वितीय प्रति जारी करने की प्रक्रिया आरंभ की गई। विश्वविद्यालय की अनुमति और विधिपूर्वक औपचारिकताओं को पूर्ण करने के बाद रविवार को 69 वर्ष बाद परम पावन दलाई लामा के 90वें जन्मदिवस के मौके पर यह मानद डिग्री पुनः बीएचयू के कुलपति प्रो. संजय कुमार द्वारा संस्थान के कुलपति प्रो. वांगचुक दौरजे को संस्थान द्वारा आयोजित समारोह में उन्हें समर्पित की गई। यह डिग्री अब धर्मशाला स्थित संग्रहालय में स्थायी रूप से संरक्षित रहेगी, जहां विश्व भर से आने वाले श्रद्धालु और शोधार्थी इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बन सकेंगे।