बाबा विश्वनाथ ने स्थापित किया था ब्रह्मांड का पहला शिवलिंग
वाराणसी (रणभेरी सं.)। कंकर-कंकर शंकर है और घर-घर शंकर हैं। जिस तरह शिव अनंत हैं उसी तरह उनकी नगरी काशी भी अनंत है। देश और दुनिया भर में बाबा विश्वनाथ के भक्त हैं और अपनी श्रद्धा अर्पण करने काशी आते हैं। मंदिरों के शहर में सभी देवी-देवता, ऋषि मुनि, मानव-दानव और यक्षगण ने शिवलिंग स्थापित किए हैं।
ब्रह्मांड में शिवलिंग पूजन की परंपरा श्री काशी विश्वनाथ ने ही आरंभ की थी। मान्यता है कि उन्होंने ब्रह्मांड के प्रथम शिवलिंग अविमुक्तेश्वर महादेव को स्थापित किया और इसके साथ ही शिवलिंग स्थापना की परंपरा शुरू हुई। काशी खंड के अनुसार अचन्ति विश्वे विश्वेशं विश्वेशोऽर्चति विश्वकृत्।
अविमुक्तेश्वरं लिङ्गं भुवि मुक्तिप्रदायकम्।। पुरा न स्थापितं लिङ्गं कस्यचित्केनचित्क्वचित्। किमाकृति भवेल्लिङ्गं नैतद्वेत्यपि कश्चन...। यानी विश्व में सभी लोग विश्वेश्वर की पूजा करते हैं। वही विश्वकर्ता विश्वेश्वर मुक्तिदायक अविमुक्तेश्वर लिंग का पूजन करते हैं और पूर्वकाल में किसी ने भी कहीं पर किसी का लिंग स्थापन नहीं किया था और न तो कोई यही जानता था कि लिंग का आकार कैसा होता है।
अविमुक्तेश्वर लिंग ही प्रथम महालिंग
श्री काशी विश्वनाथ द्वारा भगवान अविमुक्तेश्वर का स्वरूप देखकर ब्रह्मा और विष्णु आदि देवताओं व ऋषि मुनियों ने शिवलिंग स्थापित किए। इस क्षितिमंडल में यह अविमुक्तेश्वर लिंग ही प्रथम महालिंग कहा गया है। इसके बाद ही सारे शिवलिंग स्थापित हुए हैं। आनंद कानन काशी की टीम ने छह महीने के अध्ययन के बाद अविमुक्तेश्वर महादेव की प्रमाणिकता पर अपनी मुहर लगाई है। अविमुक्तेश्वर महादेव का यह शिवलिंग श्री काशी विश्वनाथ धाम क्षेत्र से सटे खोवा गली में विराजमान है।
बीएचयू के प्रो. माधव जनार्दन रटाटे का कहना है कि यह ब्रह्मांड का प्रथम शिवलिंग है। जिसने अविमुक्तेश्वर के दर्शन किए और उन्हें स्पर्श किया, उसके सारे मनोरथ शीघ्र पूर्ण हो जाते हैं।
केंद्रीय ब्राह्मण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष अजय शर्मा और मंगला गौरी के महंत नरेंद्र पांडेय ने बताया कि काशी खंड और पुराणों के अध्ययन के बाद अविमुक्तेश्वर महादेव के स्थान का पता चला है। काशी खंड में तो विस्तार से इसका वर्णन मिलता है।