श्रीराम के वन गमन से भावुक हुई अयोध्या
वाराणसी (रणभेरी सं.)। श्रीराम को मयार्दा पुरुषोत्तम ऐसे ही नही कहा जाता था। पिता के वचन को निभाना था सो राजपद का मोह त्यागने में एक पल नही लिया और चल पड़े वन की ओर। सीता ठहरी अर्धागिनीं तो राजमहल में क्या करती। वह भी हमसफर बन गई। लक्ष्मण को इससे बेहतर प्रभु की सेवा का अवसर कहाँ मिलता तो वह भी साथ हो लिये। और जब राम वन चले तो भींगी आंखे लिए सारी अयोध्या उनके पीछे वन की डगर पर चल पड़ी। रामलीला के नौवें दिन शनिवार को श्रीराम के वन गमन लीला के भावुक प्रसंगों का मंचन हुआ। श्रीराम के वन जाने की बात सुनकर सीता भी उनके साथ वन चलने का आग्रह करती हैं। श्रीराम तरह-तरह से समझाते हुए कहते हैं कि अयोध्या में रह कर सास ससुर की सेवा करो इसी में तुम्हारी और अयोध्या की भलाई है। लेकिन सीता का यह जबाब उन्हें निरुत्तर कर देता है कि जब आप वन में हो तो मैं यहां महल का सुख कैसे भोगूँगी। लक्ष्मण भी साथ वन जाने को कहते हैं। सुमित्रा कहतीं है कि श्रीराम के बिना तुम्हारा अयोध्या में कोई काम ही नहीं है। सब पिता की आज्ञा लेने के लिए कोप भवन में गए तो कैकेई के कटु वचन सुनकर दशरथ अचेत हो गए। कैकेई कहती हैं कि वह तुम्हे वन जाने को नही कहेंगे। तुम्हे जो अच्छा लगे करो। कैकेई मुनियों वाले वस्त्र ला कर रख देती हैं। राम उन्हें प्रणाम करके गुरु वशिष्ठ को अयोध्या की देखरेख करने को कह सीता और लक्ष्मण के साथ वन के लिए चल देतें हैं। यह देख देवता प्रसन्न हो उठे। होश में आने पर दशरथ सुमंत से पूछते हैं कि राम वन को चले गए। प्राण शरीर से नहीं जाते। किस सुख के लिए भटक रहे हैं। वे रथ लेकर सुमंत को राम को वन घुमा कर वापस लाने के लिए भेजते हैं। रास्ते में निषाद राज समाचार पाकर कंद मूल फल लेकर राम के दर्शन के लिए दौड़ पड़ते हैं। राम से मिलने के बाद वे उन्हें अपने गांव ले जाना चाहते हैं। लेकिन राम वन में ही रहने को कहते हैं। भीलनी आपस में बात करते हुए कहती हैं कि कैसे माता-पिता है कि इन जैसे कोमल बच्चों को वन में भेज दिया। राम सिंगुआ वृक्ष के नीचे बैठते हैं। निषादराज सभी को भोजन कराते हैं। भोजन के बाद राम सीता भूमि पर शयन करते हैं। यह देख निषादराज रोने लगे तो लक्ष्मण ने उन्हें अपना उपदेश सुना कर उनको मोह छोड़कर सीताराम के चरण कमल में अनुराग करने को कहते हैं।
लीला का संदेश, मयार्दा, त्याग और धर्म का अनुकरण
रामनगर की रामलीला केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि धर्म, मयार्दा और त्याग का एक जीवंत उदाहरण है। यहां हर दृश्य में भगवान श्रीराम के जीवन के आदर्शों को साकार रूप में प्रस्तुत किया जाता है। अयोध्या के राम से लेकर वन के राम तक, हर प्रसंग में मयार्दा और त्याग का संदेश मिलता है। यह लीला हमारे समाज को याद दिलाती है कि अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार रहना और अपने परिजनों के प्रति निष्ठा रखना ही सच्चा धर्म है। इस पावन लीला में भगवान की आरती के बाद मंचन का समापन हुआ, लेकिन हर श्रद्धालु के दिल में राम का त्याग और उनकी मयार्दा की गूंज युगों-युगों तक जीवित रहेगी।