24 सप्ताह तक बिना बोर्ड से अनुमति लिए हो सकता है गर्भपात
लखनऊ। अयोध्या में किशोरी से बलात्कार के बाद गर्भपात को लेकर नई बहस शुरू हो गई है। स्वास्थ्य विभाग के नियमों के मुताबिक अब 24 सप्ताह तक का गर्भपात चिकित्सक की निगरानी में हो सकती है, लेकिन 24 सप्ताह से अधिक समय होने पर राज्य स्तरीय बोर्ड से अनुमति लेनी होती है। बोर्ड की निगरानी में ही यह गर्भपात होगा।
सुरक्षित गर्भपात अधिनियम 1971 के तहत पहले 20 से अधिक के गर्भपात के लिए राज्य स्तरीय बोर्ड से अनुमति ली जाती थी, लेकिन वर्ष 2021 में हुए बदलाव के बाद इसे बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया है। राज्य स्तरीय बोर्ड की अध्यक्ष केजीएमयू स्त्री एवं प्रसुति रोग विभागाध्यक्ष हैं। इसी तरह बाल रोग, हृदय रोग, मानसिक रोग सहित विभिन्न चिकित्सा संस्थानों के आठ विभागाध्यक्षों को कमेटी में बतौर सदस्य नामित किया गया है। परिवार कल्याण विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 12 सप्ताह तक के गर्भपात कोई भी चिकित्सक अकेले करा सकता है, जबकि 12 से 24 सप्ताह के लिए दो डॉक्टरों का पैनल होना चाहिए। लेकिन यह गर्भपात कोर्ट के आदेश अथवा गर्भवती की जान को खतरे की स्थिति में ही कराया जा सकता है।
गर्भस्थ शिशु का हो सकता है डीएनए टेस्ट
एसजीपीजीआई की प्रोफेसर डा. मंदाकिनी प्रधान ने बताया कि गर्भस्त शिशु का डीआक्सीराइबो न्यूक्लिक एसिड (डीएनए) टेस्ट किया जा सकता है, लेकिन एक फीसदी मामले में महिला की जान को खतरा रहता है। यही वजह है कि डीएनएन टेस्ट से पहले लीगल कार्यवाही पूरी करनी होती है। केजीएमयू की पूर्व विभागाध्यक्ष डा. एसपी जैसवार ने बताया कि डीएनए से पितृत्व परीक्षण सटीक रूप से किया जा सकता है। इसके लिए नॉनइनवेसिक प्रीनेटल पैटरनिटी (एनआईपीपी) टेस्ट भी किया जाता है।
प्रदेश में सामान्य गर्भपात की स्थिति
राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण रिपोर्ट 2019-21 के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 15 से 19 वर्ष के बीच 412 गर्भवती होती हैं, जिसमें 3.5 फीसदी किसी न किसी कारण गर्भपात कराती हैं। इसी तरह 20 से 29 वर्ष के बीच की 17280 गर्भवती में 2.8 फीसदी को गर्भपात कराना पड़ता है।