काशी में आज भी सजता है मान्यताओं और परंपराओं का मेला

काशी में आज भी सजता है मान्यताओं और परंपराओं का मेला

वाराणसी (रणभेरी): काशी में नाग पंचमी पर महुअर, शास्त्रार्थ, दंगल, नाग पूजन, नागकूप के दर्शन की मान्यता है। काशी की पुरातन परंपराओं के बीच यह पांच प्रमुख आयोजन नाग पंचमी पर लोगों के बीच चर्चा में रहती है। इस बार भी इन्हीं परंपराओं को आगे ले जाने की तैयारियां जिला स्तर पर आयोजक संस्थाएं निर्वहन कर रही हैं। इसके अतिरिक्त काशी में परंपराओं का अनवरत क्रम भी इसी के साथ परवान चढ़ेगा। वैसे तो नाग पंचमी पर्व को गुड़िया का पर्व भी माना जाता है जहां लड़कियां गुड़िया बनाकर मेले में डालती हैं। अब यह परंपरा कुछ ही स्थानों पर शेष है।

महुअर- यह दरअसल एक खेल है जिसमें तंत्र मंत्र के साथ ही इसके असर को देखकर लोग दंग हो जाते हैं। तंत्र मंत्र और जादू टोने पर आपको यकीन न हो तो आप महुअर को देखकर यकीन करने लगेंगे। चारों ओर तंत्र मंत्र भूत भभूत का साया और एक दूसरे पर भस्म फेंककर जख्मी करने की ताकत को दिखाता यह प्रदर्शन आपको हैरतअंगेज नजारे पेश करता नजर आता है। एक दूसरे को संभालने की ताकीद देते हुए मंत्रों की मार से चोटिल लोगों को देखकर हैरान होती भीड़ का मनोरंजन ही दरअसल महुअर होता है। यह स्वांग तंत्र मंत्रों की डुप्लीकेसी और डद्म प्रहार को देखकर जनता खुश होती है और महुअर करने वालों (स्वांग धरकर नाटक करना) को इनाम भी देती है।

शास्त्रार्थ- यह परंपरा युगों पुरानी वैदिक कालीन परंपरा से जुड़ी है। महर्षि पतंजलि की जैतपुरा में नागकूप में स्थापना मानी जाती है। पतंजलि की परंपरा शास्त्रार्थ की रही है, इस लिहाज से नागकूप में परंपरा का मान रखते हुए प्रतिवर्ष परंपराओं का अनुपालन किया जाता है। परंपराओं के क्रम में शास्त्रार्थ की मान्यता के अनुसार वेद पाठी बटुक और वेद शास्त्रवेत्ताओं के बीच मंथन और तर्क के साथ ही तथ्यों को सामने रखकर वैदिक परंपराओं में तथ्य तर्क को काटने और उसमें से निचोड़ सामने रखने की मान्यता का अनुपालन किया जाता है। प्रतिवर्ष इसका निर्वहन नागकूप क्षेत्र में आज भी किया जाता है। पाणिनि अष्टाध्यायी से विल्वार्चन तथा धातूपाठ भगवान नागेश्वर महादेव का होगा। इसके बाद व्याकरण वेदांत न्यायशास्त्र साहित्य और मीमांसा आदि शास्त्रों पर चर्चा होगी। 

दंगल- काशी में दंगल की परंपरा का निर्वहन युगों पुरानी परंपरा है। नागपंचमी पर दंगल की परंपरा को काशी में तुलसीदास द्वारा शुरू की गई नई परंपरा का ही क्रम माना जाता है। तुलसीदास द्वारा स्थापित दंगल की परंपरा के क्रम में तुलसी अखाड़ा में आज भी मान्यताओं के अनुरूप दंगल की परंपरा होती है। कई क्षेत्रों में बुलबुलों का दंगल भी होता है तो कुछ जगहों पर तीतर और बटेर आदि के दंगल होते हैं। मगर परंपराओं के अनुसार जोर आजमाइश के जरिए लोग खुद को आंकते और ताकत का प्रदर्शन भी करते हैं। 

नागपूजन- काशी में नाग पंचमी पर नागपूजन की परंपराएं आज भी जीवित हैं। नागपूजन के साथ ही नाग से वर्ष भर रक्षा और श्री समृद्धि की कामना का यह पर्व मनाया जाता है। गौ दूध के साथ ही लावा का मेल शिवलिंग पर अर्पित कर समृद्धि की कामना और मान्यता का यह पर्व सावन मास में शिव को समर्पण के साथ ही मान्?यताओं को पूरा करने वाला माना गया है। वर्ष भर में यह त्योहार एक बार आता है तो कामनाओं से पूरा शहर बाबा के दर्शन पूजन को उमड़ पड़ता है।

 

नागकूप दर्शन- जिनपर महंर्षि पतंजलि की कृपा होती है उनको कोई दुख नहीं होता। दरअसल पतंजलि शेषनाग के अवतार माने जाते हैं। जिनका स्थान नागकूप में होने की अनोखी मान्यता होने की वजह से जैतपुरा के नागकूप में प्रतिवर्ष लोग शीश झुकाने और उनको नमन करने आते हैं। नागपंचमी पर्व पर आस्था का रेला यहां उमड़ता है। स्नान ध्यान और जल आचमन करने के लिए आने वाले श्री समृद्धि की यहां पर कामना करना नहीं भूलते। 

लड़कियों ने कुश्ती में दिखाया दमखम, कहा- हम किसी से कम नहीं

नागपंचमी के अवसर पर मंगलवार को तुलसी घाट स्थित स्वामीनाथ अखाड़े में दंगल का आयोजन किया गया। लड़कियों ने कुश्ती में दमखम दिखाया और उम्दा प्रदर्शन किया। लड़कियों ने कुश्ती में कौशल दिखाकर बताया कि अब हम  किसी से कम नहीं। इसके पूर्व दंगल का शुभारंभ महंत विशंभर नाथ मिश्र ने अखाड़े पर स्थित हनुमान जी का पूजन अर्चन कर किया। इसके पश्चात पहलवानों ने अखाड़े का विधि विधान से पूजन अर्चन किया गया। इसके पश्चात प्रतियोगिता का शुभारंभ महिला पहलवान खुशी एवं पुरुष पहलवान कमल के बीच हुआ। दोनों ने जमकर जोर आजमाइश की। इसके बाद खुशी एवं पलक, खुशबू व सृष्टि, अंजली एवं पायल, सोनी अनुराधा के बीच में रोमांचक कुश्ती हुई। वहीं पुरुष पहलवानों में हर्ष पटेल एवं प्रतीक यादव, प्रांजल एवं सौरव, ऋषभ व करण के बीच रोमांचक कुश्ती हुई। मैच के रेफरी विजय यादव थे। इस अवसर पर अखाड़ा स्वामीनाथ के महंत विशंभर नाथ मिश्र ने कहा कि आज महिलाएं पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। जब वह हर क्षेत्र में आगे जा रहे हैं तो पहलवानी में क्यों कम रहें। 5 वर्ष पूर्व स्वामीनाथ अखाड़े में लड़कियों को कुश्ती दंगल का अभ्यास कराना शुरू किया गया था। आज स्वामीनाथ अखाड़े से निकली लड़कियां राज्यस्तरीय, राष्ट्र स्तरीय एवं अंतरराष्ट्रीय लेवल पर कुश्ती प्रतियोगिता में शामिल हो रही हैं और अच्छा प्रदर्शन कर रही है। इस अवसर पर कल्लू पहलवान, श्यामलाल, रामसुंदर,  पप्पू यादव, सुरेश मोहन, मेवा पहलवान, सुरेश यादव, मुकेश पहलवान, रामयश मिश्र, विश्वनाथ यादव उर्फ छेदी, स्वर्ण प्रताप चतुवेर्दी सहित काफी संख्या में पहलवान उपस्थित थे। 4 वर्षीय रेयान्श यादव पहलवान लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए थे। 

जैतपुरा के नागकूप पर उमड़े श्रद्धालु

काशी की गलियों में नागपंचमी का उल्लास मंगलवार सुबह से ही नजर आने लगा। जैतपुरा स्थित नागकूप पर मेला जैसा नजारा रहा। मंगला आरती के बाद से दर्शन-पूजन का सिलसिला शुरू हो गया। अनुष्ठान पूजन के साथ ही लोगों ने नाग देवता से परिवार की कुशलता की कामना की। जैतपुरा स्थित नागकूप महर्षि पतंजलि की तपोस्थली है। नाग पंचमी पर हर साल उनकी जयंती श्रद्धाभाव से मनाई जाती है। कहा जाता है कि ह्ययोगसूत्रह्ण के रचनाकार महर्षि पतंजलि ने कभी जैतपुरा मोहल्ले में नागकूप पर श्रावण कृष्ण पंचमी को ही अपने गुरु महर्षि पाणिनी के ह्यअष्टाध्यायीह्ण ग्रंथ पर महाभाष्य पूरा किया था। तभी से उस स्थान पर मेला लगता आ रहा है। भगवान शिव के गले के आभूषण यानि नाग देवता श्रावन शुक्ल के पंचमी तिथि को नाग पंचमी का पर्व है। मान्यता है की वेदों के प्रचलन के साथ ही नागों की पूजा की परम्परा चली आ रही है। महर्षि पतंजलि का योग पीठ जिसे नाग कुआ भी कहा जाता है जो वाराणसी में स्थित है। जहां महर्षि पाताल लोक में जाकर साधना किया करते थे। महर्षि को भगवान शेषनाग का अवतार भी माना जाता है। वाराणसी में एक नागकूप है, जिसकी मान्यता है की इस नागकूप का पानी पिने से ज्ञान की वृद्धि होती है और असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। नाग पंचमी के मौके पर श्रद्धा से सराबोर होकर भक्त इस कुंड के दर्शन के लिए आते हैं।

तो नानी की कहानी बन जायेगा महुअर खेल !

काशी परंपराओं का वह शहर है जहां की गली-गली में परंपराएं, पारंपरिक खेल कूद, वेश भूषा और खान पान मौजूद हैं। ऐसी ही कुछ परंपराओं में शामिल हैं बनारस का पारंपरिक महुअर खेल। यह एक ऐसा खेल है, जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में दर्शकों का हुजूम उमड़ पड़ता है। खास कर के बनारस के कुछ चुनिंदे स्थानों पर ही खेला जाने वाला यह खेल सनातन धर्म के प्रांगण में, पिशाचमोचन कुंड पर, गोलघर तथा और भी कुछ एक स्थानों पर खेला जाता रहा है। 

लेकिन अब ये खेल केवल परम्परा को जिंदा रखने के नाम पर सनातन धर्म इंटर कॉलेज के प्रांगण में ही हो रहा है। खेल के आयोजक सूरज जायसवाल बताते हैं कि पुराने मदारियों के न होने की वजह से नए मदारियों में वो उत्साह नहीं हैं। बहुत मनाने पर एक डेढ़ घंटे के लिए आ जाएं, वही बहुत है। बाहर से भी अब कोई उस्ताद या मदारी नहीं आता है। पहले चंबल के क्षेत्र से, रायबरेली से और देश के अन्य प्रांतों से महुअर के खिलाड़ी आते थे और अपना दमखम दिखाते थे। महुअर अपने आप में विशेष भी इसीलिए है क्योंकि इसमें कोई वैज्ञानिक तथ्य न होने के बावजूद यह विज्ञान से परिपूर्ण लगता है। विशेष है इसलिए कि यह कोई जादू नहीं लेकिन इसमें जादूगर के हाथ की सफाई जरूर है। नींबू की बली चढ़ने के बाद इस खेल में मंत्रो का वार प्रतिवार होता है। मंत्रों के वार से कभी एक खिलाड़ी भू लुंठित हो जाता है तो कभी दूसरा बंदरों की भांति खंभे पर चढ़ने लगता है। मदारी और खिलाड़ी  एक-दूसरे पर मंत्रों के जरिए जमकर वार करते हैं। कभी खिलाड़ी गिरता है तो कभी मदारी।दोनो ओर से हार जीत की ये कशमकश कुछ देर के लिए मूक दर्शकों के लिए मनोरंजन और आश्चर्य का केंद्र बने रहते हैं। फिर तब तक अचानक एक खिलाड़ी अपने मंत्र से पटखनी दे देता है फिर तालियों की गड़गड़ाहट से पूरे  माहौल में रंगत आ जाती है। 

मंत्रों के वार से सांपों का छटपटाने लगना, मुंह से खून उगलना, बिन(तुरही) का खिलाड़ी के मुंह में चले जाना, एक सम्मोहन होते हुए भी वास्तविकता से भरा पूरा लगता है। लेकिन दुख की बात ये है कि आज अपने अस्तित्व की कसौटी पर अपनी अंतिम सांसे गिन रहा यह महुअर खेल दूर दूर तक लोगों के जुबां और कान से गायब है। इसके बारे में नई पीढ़ी ने न ही सुना है, न ही देखा है।