...तो ज्ञानवापी में जारी रहेगी पूजा और नमाज
वाराणसी (रणभेरी)। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को ज्ञानवापी परिसर के व्यास तहखाने में पूजा पर रोक के खिलाफ याचिका पर सुनवाई के दौरान मस्जिद पक्ष के वकील ने पूजा पर तत्काल रोक की मांग पर अपनी दलीलें रखीं। इस पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा- तहखाने का प्रवेश दक्षिण से है और मस्जिद का उत्तर से। दोनों एक-दूसरे को प्रभावित नहीं करते। हम निर्देश देते हैं कि फिलहाल दोनों अपनी-अपनी जगहों पर जारी रहें।
आज सोमवार को मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने मुस्लिम पक्ष के वकील से जब यह पूछा कि क्या हो रहा है ? पूजा हो रही है? तो वकील अहमदी ने कहा- हां पूजा हो रही है। उन्होंने जगह पर कब्जा कर लिया है। अंतरिम आदेश से प्रभावी रूप से 1993 यानी 30 साल पहले की यथास्थिति बहाल हो गई है। राज्य सरकार जो मामले में पक्षकार भी नहीं है, रात के अंधेरे में आदेश लागू करती है। आदेश की रात पूजा की जाती है। जिसमें मुस्लिम पक्ष को रहने से रोका गया। यह ट्रायल कोर्ट और फिर हाईकोर्ट द्वारा पारित एक असाधारण मामला है। आदेश का प्रभाव अंतरिम चरण में अंतिम राहत देना है। कृपया कोर्ट संज्ञान ले।
वकील की दलील सुनकर सीजेआई द्वारा यह पूछे जाने पर कि मस्जिद में नमाज कहां पढ़ी जाती है? जो लोग मस्जिद में प्रार्थना करने आते हैं। वे किस तरफ से आते हैं। मुस्लिम पक्ष के वकील ने कहा कि नमाज 'उत्तर की तरफ' पढ़ी जाती है। तहखाना दक्षिण की ओर है और मस्जिद की सीढ़ियां उत्तर की ओर से हैं। सीजेआई द्वारा यह पूछे जाने पर कि ...तो तहखाना वाले लोग उत्तर की ओर की सीढ़ियों का उपयोग नहीं करते हैं? मुस्लिम पक्ष ने जवाब दिया कि 'हां, वे नहीं करते हैं.. लेकिन उन्होंने अब नमाज रोकने के लिए एक और आवेदन भी दिया है। इसलिए धीरे-धीरे मुझे अपनी ही संपत्ति से बेदखल किया जा रहा है। "हम धीरे-धीरे मस्जिद खो देंगे"
मुस्लिम पक्ष की तमाम दलीलों को सुनकर सीजेआई ने कहा कि ज्ञानवापी में पूजा-नमाज एक साथ हो सकती है। दोनों की दिशाएं अलग-अलग हैं, इसमें किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। तहखाने का प्रवेश द्वार दक्षिण से है और मस्जिद का प्रवेश द्वार उत्तर से है। क्या दक्षिण में की जाने वाली प्रार्थनाएं उत्तर में की जाने वाली प्रार्थनाओं को प्रभावित कर रही हैं। इस पर मुस्लिम पक्ष का जवाब था 'नहीं', तब सीजेआई ने पुन: कहा यदि यह सही है, तो हम कह सकते हैं कि यथास्थिति में आगे कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए। हम कहते हैं कि नमाज जारी रहने दी जाए और दक्षिणी तहखाने में पूजा जारी रह सकती है। मुस्लिम पक्ष का यह तर्क था कि : मेरा मामला पूर्ण प्रवास का है। लेकिन अगर आपका आधिपत्य अभी इसकी अनुमति दे रहा है, तो मुझे कहना होगा, नमाज रोकने के लिए अन्य आवेदन दायर किए गए हैं। इस तरह के रवैया से लगता है कि हम धीरे-धीरे मस्जिद खो देंगे। 30 साल की यथास्थिति को अनिवार्य आदेश द्वारा बहाल कर दिया गया है। मैं स्थगन की मांग कर रहा हूं। क्योंकि ट्रायल कोर्ट के आदेश को जल्दबाजी में लागू किया गया है। अब यह मेरे खिलाफ है। क्योंकि बाद में कहा जाएगा कि अगर यह चल रहा है तो अभी क्यों रोका जाए। यह सब मस्जिद परिसर के भीतर है। हर दिन मस्जिद परिसर में पूजा होती है। आप मस्जिद के अंदर ऐसा होने दे रहे हैं। हमें गंभीर आशंका है।
वहीं हिंदू पक्ष के वकील श्याम दीवान ने कहा कि यह मामला कोर्ट द्वारा नोटिस जारी करने का भी नहीं है। यह एक अंतर्वर्ती आदेश है जिसकी पुष्टि उच्च न्यायालय ने ठोस तर्कों से की है। इसलिए वार्ता के चरण में, यह न्यायालय हस्तक्षेप नहीं करेगा। काशी विश्वनाथ मंदिर का न्यासी बोर्ड पूजा करा रहा है। यह एक अंतरिम व्यवस्था है और इससे कोई पूर्वाग्रह नहीं होता है। कोर्ट को जो सुझाव दिया गया था वह यह था कि वहां कोई मूर्तियां नहीं थीं। यह गलत है, पूजा मस्जिद में पाई गई मूर्तियों के सम्मान में आयोजित की जाती है। 31 जनवरी से पूजा चल रही है, इस न्यायालय द्वारा कोई पूर्वाग्रह उत्पन्न नहीं किया गया है और हस्तक्षेप का कोई मामला नहीं है। जहां तक व्यास परिवार का सवाल है, यह एक व्यक्तिगत अधिकार है। पीढ़ियों से, वे पुजारी रहे हैं। कोर्ट से अभी अंतिम राहत नहीं मिली है। खबर लिखे जाने तक सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई जारी थी।