जब तक होगी कार्रवाई, बिक चुकी होंगी नकली दवाइयों की खेप
गोरखपुर । मिलावटी दवाओं की बिक्री पर रोक लगाने की व्यवस्था इतनी कमजोर है कि जब तक इन दवाइयों पर नियंत्रण के उपाय हो पाएंगे, उससे पहले ही वे बाजार में बिक चुकी होंगी। अभी जिन आठ दवा व इंजेक्शन का सैंपल फेल हुआ है, उसमें भी यही कहानी है। सैंपल फेल होने के बाद कंपनी को नोटिस और आपत्तियों के निस्तारण में कम से कम महीने भर का समय लगेगा। तब तक इस लॉट की सभी दवाएं बाजार में बिक चुकी होंगी। दवा बाजार की निगरानी के लिए ड्रग इंस्पेक्टर हर महीने कम से कम 15 सैंपल जांच के लिए भेजते हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 में 197 दवाओं के नमूने जांच के लिए भेजे गए। 31 मार्च तक इनमें से 144 दवाओं की रिपोर्ट मिली है। इनमें से आठ के नमूने अधोमानक पाए गए हैं। मतलब यह कि इनमें साल्ट की मात्रा निर्धारित मानक से कम है। अधोमानक पाई गईं दवाओं में से चार एसिडिटी के इलाज में प्रयोग की जाती हैं। एक इंजेक्शन गंभीर स्थिति में मरीज को लगाई जाती है। विभागीय नियमानुसार अधोमानक पाई गईं इन दवाइयों को बाजार से हटाने के लिए पहले रिपोर्ट प्रदेश के औषधि नियंत्रक को भेजी जाएगी। वहां से इसकी रिपोर्ट दवा निर्माता कंपनी जिस राज्य में होगा, वहां भेजी जाएगी। इसके बाद कंपनी को पत्र जाएगा। कंपनी रिपोर्ट पर चुनौती भी दे सकती है।इस प्रक्रिया के साथ-साथ दवा विक्रेता से दवा खरीद से संबंधित बिल-बाउचर लिया जाएगा। फिर उसके स्टाकिस्ट के स्टॉक का मिलान होगा। इन सब प्रक्रिया के बाद दवा को बाजार से वापस मंगाने के लिए निर्देश जारी होगा। जानकारों का कहना है कि इस पूरी प्रक्रिया में कम से कम चार महीने लग जाते हैं। अगर कहीं कंपनी ने आपत्ति कर दी तो उसके नमूनों की जांच दूसरे लैब से कराई जाएगी। इसके बाद जो रिपोर्ट आएगी, उसके अनुसार कार्रवाई होगी। जब तक यह प्रक्रिया पूरी होगी, तब तक जिस बैच नंबर का सैंपल लिया गया था, उससे संबंधित दवाएं बाजार में खप चुकी होंगी। थोड़ी मात्रा में अगर कहीं दवा बची रह गईं होगी तो वही वापस होंगी। अभी 53 दवाएं ऐसी हैं, जिनके नमूनों की जांच रिपोर्ट आनी बाकी है।
बॉर्डर इलाके में खपाई जा रही करोड़ों की दवाएं
दवा बाजार में सब स्टैंडर्ड या अधोमानक दवाओं का खेल काफी गहरे तक जड़ जमा चुका है। बिहार व नेपाल बॉर्डर के छोटे-छोटे कस्बों और बाजारों में बड़े ब्रांड की दवाओं वाले नाम पर ही दवाएं बिक रही हैं। जांच में जब सैंपल पकड़ा जाता है, तो रिपोर्ट अधोमानक की आती है। ऐसे मामलों में बड़ी कार्रवाई कम ही होती है, लिहाजा यह धंधा तेजी से फल-फूल रहा है। दवा विक्रेता कम रेट में इन मिलते-जुलते नाम वाली दवाओं को खरीदकर ब्रांडेड के दाम पर ही बेच देते हैं। दवा कारोबार से जुड़े मनीष सिंह ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्र में छोटे-छोटे मेडिकल स्टोर संचालक ही आसपास के लोगों के लिए डॉक्टर की भूमिका में भी होते हैं। वे सर्दी-जुकाम, एसिडिटी, दर्द आदि की दवाएं खुद ही मरीज को लक्षण पूछकर दे दिया करते हैं। वे ही ऐसी दवाओं की बिक्री के सबसे बड़े माध्यम भी बनते हैं, क्योंकि वे मरीजों को फुटकर में दवा देते हैं। दवा देते हुए पत्ते को इस तरह से काटते हैं कि उसका नाम बड़े ब्रांड जैसा प्रतीत हो। साल्ट की मात्रा 90 प्रतिशत से कम होने पर ही होगी कार्रवाई ड्रग इंस्पेक्टर जय सिंह ने बताया कि अगर किसी दवा में साल्ट की मात्रा उसके रैपर पर प्रदर्शित मात्रा के सापेक्ष 90 प्रतिशत तक मिलता है, तो ऐसे मामले में केवल निर्माता कंपनी को नोटिस जारी होता है। मान लीजिए कि दवा 100 एमजी की है और जांच में 90 एमजी तक मिलती है तो इसे सामान्य माना जाता है। वहीं, 89 से 85 ग्राम के बीच होने पर इस पर चेतावनी जारी होगी। लेकिन, अगर 85 प्रतिशत से कम है तो इसे अधोमानक माना जाएगा।वहीं, अगर साल्ट 50 प्रतिशत से भी कम है, तब उसे नकली मानकर कार्रवाई होगी। ड्रग इंस्पेक्टर ने बताया कि अगर दवा में साल्ट की मात्रा काफी कम मिलती है, तो निर्माता कंपनी पर केस दर्ज कराया जाता है। तब उसका लाइसेंस भी निरस्त किया जा सकता है। अधोमानक मामलों में भी औषधि नियंत्रक की तरफ से संबंधित दवाओं को बाजार से वापस लेने का आदेश निर्गत होता है। अपने यहां से भेजे गए जिन आठ सैंपल के नमूने फेल हुए हैं, उनके दवा खरीद से संबंधित अभिलेखों की जांच कराई जा रही है।