काव्य-रचना

काव्य-रचना

   माँ काली    

कभी हंसा देती है
कभी रुला देती है 
माँ है मेरी  काली 
जो खुद से ही 
मोहब्बत करवा देती है।

कभी जीवन जीना सिखा देती है 
कभी मेरे गुनाहों को दफना देती है
 माँ है मेरी काली
 जो काबिल-ऐ-तारीफ  
शख्स मुझे बना देती है।

कभी आदि से अंत तक ले जाती है
कभी अंतिम चरण में भी 
नया आरंभ कर देती है 
माँ है मेरी काली
जो हर संकट में मुझे 
अपनी गोद में उठा लेती है।

कभी धर्म का राह दिखा देती है 
कभी कर्म को ही धर्म बना देती है 
माँ है मेरी काली
जो नादान बालक समझकर 
मेरे हर गुनाह को भूलाकर 
सीने से मुझे अपने लगा लेती है।


राजीव डोगरा