निजी गाड़ियो से चल रहा तस्करी का खेल
गोरखपुर। रेलवे स्टेशन से नेपाल की सीमा तक तस्करी का खेल निजी गाड़ियों से फल-फूल रहा है। निजी गाड़ियों से प्रदेश के अलग-अलग जिलों के व्यापारी बिना जीएसटी बिल के सामानों को खपा रहे। जबकि, नेपाल से गर्म मसाला, नशीला पदार्थ और अन्य सामानों को भारत में खपाया जा रहा है। नेपाल से तस्करी में अब धंधेबाजों ने निजी गाड़ियों को टैक्सी के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। रेलवे स्टेशन से रोजाना 70 से 100 ऐसी गाड़ियां फरेंदा, नौतनवां या निचलौल के रास्ते आती-जाती हैं। नशीले पदार्थंं के अलावा इनमें गोरखपुर से कपड़ा, चमड़े के सामान को भेजा जाता है और नेपाल से इलायची, तेजपत्ता, जीरा, लौंग अन्य गर्म मसाले मंगाए जाते हैं। कर चोरी के इस खेल में धंधेबाज बोगस फर्म का इस्तेमाल करते हैं, ताकि पकड़े जाने पर इनका नाम न सामने आए। इन गाड़ियों को जांच के लिए रोका न जाए, इसका इंतजाम भी धंधेबाजों ने कर रखा है। हर बैरियर पर उनका नेटवर्क है। गाड़ियों के मालिक, बिचौलिए और सामानों की तस्करी करने वाले मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। दरअसल, इन धंधेबाजों का नेटवर्क इतना मजबूत है कि उन्हें हर कार्रवाई की जानकारी पहले ही हो जाती है। एक वर्ष पहले एक निजी गाड़ी से नेपाल से गोरखपुर भेजी जा रहे करोड़ों रुपये के चरस को पुलिस ने जब्त किया था। नेपाल में गर्म मसालों की खेती होती है। इसमें इलायची, तेजपत्ता, जीरा, लौंग अन्य गर्म मसाले होते हैं। इन मसालों को भी इन्हीं गाड़ियों के माध्यम से हर दो से तीन दिन के अंतराल पर लाया जाता है। बोगस फर्मों का उपयोग करने वाले धंधेबाज, टैक्सी के रूप में चल रहीं निजी गाड़ी मालिकों पर ज्यादा भरोसा करते हैं। ट्रेवल एजेंट या निजी गाड़ी मालिक ही रास्ते में सेटिंग का नेटवर्क तैयार करते हैं। इस पूरे खेल की जानकारी इस धंधे से जुड़े एक शख्स से मिली। बातचीत में पता चला कि रेलवे स्टेशन से पूरी गाड़ी बुक कर नेपाल की सीमा तक जाने का किराया ढ़ाई हजार रुपये और अलग से तेल खर्च होता है। यह किराया बोगस फर्म वाले व्यापारियों से लिया जाता है। जबकि, रेलवे स्टेशन से फरेंदा, कोल्हुईं बाजार होते हुए नौतनवां या निचलौल सीमा जाने में 12 लीटर तेल का खर्च आता है। ऐसे में लगभग 1200 रुपये लगते हैं। एक गाड़ी प्रतिदिन दो से तीन चक्कर सुबह से शाम तक लगा लेती है और तीन से चार हजार रुपये का मुनाफा इन्हें मिल जाता है। शुक्रवार सुबह छह बजे रेलवे स्टेशन के पास इन गाड़ियों का जहां अड्डा है, वहां एक कार नजर आई। गाड़ी पर सामने से पुलिस के निशान का स्टीकर लगा था। चालक ने पूछने पर बताया कि गाड़ी रिजर्व कर नेपाल जाना है।
रास्ते में कई थाना पर रोकता कोई नहीं
रेलवे स्टेशन चौराहे पर ही चौकी बनी है। इसके बाद नेपाल की तरफ जाने पर गोरखनाथ थाना, फरेंदा थाना और निचलौल और नौतनवां थाना पड़ता है, लेकिन पुलिस की नजर इन गाड़ियों पर नहीं पड़ती है। जबकि, सड़क के एक किनारे नेपाल जाने वाली निजी नंबर की गाड़ियां लाइन लगाकर खड़ी रहती हैं।
सिंडीकेट बनाकर करते हैं तस्करी
महाराजगंज-नेपाल बॉर्डर पर सिंडिकेट बनाकर तस्करी की जा रही है। सिंडिकेट वाले बॉर्डर के ठीक किनारे जमीन खरीद कर मकान बनवा लेते हैं। इस मकान में गोदाम और दुकान भी होता है। बॉर्डर के सहारे नेपाल के भीतर भारतीय कपड़े और नेपाल में तैयार किए फर्जी कंपनियों के नाम से तैयार खाद्य, श्रृंगार, गर्म मसाला और अन्य उत्पाद मंगाए जाते हैं।
इन रास्तों से करते हैं तस्करी
छपवा, बैरिहवां, संडी, डाली, चन्नी, संपतिया, जोगिया बारी, कुरहवां, खनुआ, पुराना मलिक, भगवानपुर, सौनौली, सेवतरी, बरगदवा, ठूठीबारी,लक्ष्मीपुर(बार्डर) सोनौली और नौतनवां की प्रमुख सीमाएं हैं, जहां से नेपाली तस्कर भारतीय तस्करों के साथ सांठगांठ कर तस्करी के धंधे चलाते हैं।