...तो जिम्मेदारों ने खा ली है कसम बेच कर ही मानेंगे शिवपुर तालाब!
वाराणसी (रणभेरी सं.)। काशी, जो अपने धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, में काशी पंचकोशी परिक्रमा एक महत्वपूर्ण धार्मिक आस्था का प्रतीक है। यह परिक्रमा न केवल भक्तों के लिए बल्कि स्थानीय संस्कृति और पारिस्थितिकी के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस परिक्रमा के दौरान श्रद्धालु विभिन्न जलाशयों और धार्मिक स्थलों का दर्शन करते हैं, जो काशी की प्राचीनता और भक्ति का प्रतीक हैं। शिवपुर तालाब इस परिक्रमा के चौथे पड़ाव पर स्थित है। यह तालाब न केवल श्रद्धालुओं के लिए स्नान और पूजा का स्थान था, बल्कि स्थानीय पारिस्थितिकी के लिए भी एक महत्वपूर्ण जल स्रोत भी। समय के साथ, इस तालाब का अस्तित्व कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस पौराणिक तालाब को भूमाफियाओं ने मिट्टी और मलवे से पाटकर इसके अस्तित्व को समाप्त कर दिया है।
शिवपुर पंचकोशी मार्ग पर स्थित यह ऐतिहासिक सार्वजनिक तालाब को वर्षों से भू माफिया के कब्जे में है। इस तालाब को भू माफिया के कब्जे से मुक्त कराने की लड़ाई वर्षों से चल रही है। उच्च न्यायालय तक का निर्देश हो चुका है फिर भी तालाब की हालत जस की तस है। स्थानीय लोगों ने इसके विरोध में कई बार संबंधित अधिकारियों को ज्ञापन सौंप कर तालाब को कब्जा मुक्त कराने की गुहार लगाई लेकिन अधिकारी सिर्फ आश्वासन ही देते रहे लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसी क्रम में मंगलवार को पूर्व पार्षद व कांग्रेस नेता डॉ. जितेंद्र सेठ के नेतृत्व में महानगर कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारियों एवं पार्षद दल के नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने कई बार नगर निगम मुख्यालय पहुँच कर अपर नगर आयुक्त सविता यादव को शिवपुर तालाब को भू माफियाओं द्वारा पाट कर कब्जा किये जाने के सम्बन्ध में विस्तार से उन्हे अवगत कराते हुए संलग्नक दस्तावेजों के साथ उन्हें सामूहिक हस्ताक्षर उक्त ज्ञापन सौंप कर तालाब को पुराने स्वरूप में वापस लाने की गुहार लगाई। लेकिन जिम्मेदारों के कान में जूं तक नहीं रेंग रही। ज्ञापन सौंप कर नेताओ ने काशी पंचकोसी परिक्रमा के चौथे पड़ाव के रूप में मशहूर शिवपुर पंचकोशी मार्ग स्थित ऐतिहासिक महत्व के धार्मिक तालाब (जिसका अराजी नं० 69 मौजा एवं परगना शिवपुर तहसील सदर वाराणसी इस तालाब पर से अविलंब अवैध कब्जा हटाकर, भू माफियाओं का मनोबल तोड़ते तोड हुए वहाँ नगर निगम का सूचना पट्ट लगवाने एवम तालाब की खुदाई कराने की मांग की, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। ऐसा लगता है जैसे जिम्मेदारानों ने इस ऐतिहासिक तालाब को बेचने की कसम खा ली है!
दर्ज हुई थी एफआईआर
इस सार्वजनिक तालाब को पाट कर उसके स्वरूप को परिवर्तित करने वालों के खिलाफ तत्कालीन जिलाधिकारी वीणा के निर्देश पर मुख्य राजस्व अधिकारी वाराणसी की ओर से मेसर्स अलका कंस्ट्रक्शन के खिलाफ एवं अन्य अवैध कब्जेदारो के खिलाफ शिवपुर थाना में दिनांक 20/4/2008 को एफआईआर भी दर्ज कराई। सन 2002 से अनवरत जारी संघर्ष की ही उपलब्धि रही है कि तत्कालीन मंडलायुक्त नितिन रमेश गोकर्ण के निर्देश पर पाटे गए तालाब पर दो-दो जेसीबी लगाकर खुदाई। खनन) का कार्य प्रारंभ कराया गया, परंतु राजनीतिक हस्तक्षेप से खुदाई का कार्य अचानक बीच में ही रोक दी गई?
63 तालाबों की सूची में 31वें नंबर पर अंकित है यह तालाब
यह तालाब बंदोबस्त के नक्शे में भी अंकित है। जन विरोध के फल स्वरुप अवैध कब्जेदारों ने इस तालाब को मिट्टी से पाट अवश्य दिया है परंतु उस पर किसी भी तरह का निर्माण कार्य अभी तक नहीं हो पाया है। इस सार्वजनिक तालाब को भूमाफियाओं ने भारी लाभ कमाने के जीस नापाक इरादे से तालाब को पाटकर उसे पर कब्जा कर करने का मंसूबा पाल रखे है उसे कभी पूरा नहीं होने दिया जायेगा। लगभग 22 वर्षों से संघर्षरत पूर्व पार्षद डॉ जितेंद्र सेठ ने कहा कि पौराणिक धार्मिक महत्व के उक्त तालाब को उसके मूल स्वरूप में बहाल करने के साथ ही पुन: एक खूबसूरत जलाशय (तालाब) का निर्माण (रीस्टोरेशन आफ वॉटर बॉडी) की मांग की है। यह तालाब नगर निगम वाराणसी सीमा के अंतर्गत आता है एवम नगर निगम की संपत्ति है यह तालाब 63 तालाबों की सूची में सूचीबद्ध हैं, जहाँ नगर निगम का बोर्ड भी लगा हुआ है' तालाब को बचाने एवम उसके संरक्षण की संपूर्ण जिम्मेदारी नगर निगम की है उसे आगे बड़कर अतिशीघ्र कार्यवाही करनी चाहिए।
अधिकारियों की मिलीभगत से भू-माफिया ने कर लिया कब्जा
ऐसे जीवंत सार्वजनिक तालाब को पहले अवैध कब्जेदारों ने धारा 229 बी. कराकर भ्रष्ट अधिकारियों / कर्मचारियों की मिली भगत से अपना नाम कपट पूर्वक दर्ज कराकर जब उसे मिट्टी डालकर पाटा जाने लगा तो आस पास के क्षेत्रीय नागरिकों ने इसका पुरजोर विरोध किया। यह मामला सड़क से लेकर नगर निगम सदन तक उठाया गया, जन आंदोलन के तहत कई बार धरना प्रदर्शन हुए मामला जिला प्रशासन, उत्तर प्रदेश शासन के संज्ञान में लाया गया, परंतु भू माफियाओं ने पुन: भ्रष्ट्र अधिकारियों / कर्मचारियों की मिली भगत से नगर निगम वाराणसी द्वारा तालाब की भूमि पर अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करा लिया एवं वाराणसी विकास प्राधिकरण द्वारा भू - विन्यास मानचित्र भी स्वीकृत कराने में वह सफल हो गए। इस मामले में माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद का दरवाजा खटखटाया गया। जहाँ याचिका पर सुनवाई करते हुए माननीय उच्च न्यायालय के निर्देश पर वाराणसी मंडल के तत्कालीन मंडल आयुक्त द्वारा गठित जिलाधिकारी वाराणसी, उपाध्यक्ष विकास प्राधिकरण वाराणसी, नगर आयुक्त नगर निगम वाराणसी एवं अपर जिला मजिस्ट्रेट (वित्त एवं राजस्व) की चार सदस्यीय समिति से मौके एवम अभिलेखों की जांच कराई गई।
जांच समिति ने भी माना था कि शिवपुर तालाब पर है कब्जा
जांच के बाद समिति ने अपनी जांच रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से लिखा है कि सन 1291 फसली (यानी सन 1883-84) में गाटा संख्या 69 तालाब के रूप में दर्ज था, इससे यह प्रतीत होता है उक्त गाटे पर उपर्युक्त व्यक्तियों ने दिनांक 23/1/1990 को प्रश्नगत आदेश पारित होने के पूर्व अभिलेखों में अपना नाम कपट पूर्वक दर्ज करा लिया है अत: इसे निरस्त कर पुन: तालाब के रूप में दर्ज किया जाना आवश्यक है। जांच समिति ने आगे कहा कि प्रश्नगत गाटा संख्या तालाब की भूमि है अत: इसका स्वरूप किसी भी दशा में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। तत्कालीन सहायक कलेक्टर (प्रथम श्रेणी) अपर नगर मजिस्ट्रेट द्वितीय वाराणसी द्वारा दिनांक 23/1/1990 को पारित उक्त निर्णय उनके क्षेत्राधिकार के परे है। यह जांच रिपोर्ट दिनांक 26/5/2006 की है जिसे सभी अधिकारियों से हस्ताक्षरित होकर मंडल आयुक्त को प्रेषित किया गया था। इसके बाद नगर निगम द्वारा अपने राजस्व अभिलेख में तालाब दर्ज करने के पश्चात पूर्व में जारी अनापत्ति प्रमाण (एनओसी) पत्र एवं विकास प्राधिकरण द्वारा स्वीकृत मानचित्र को भी निरस्त कर दिया गया।
विधायक की भी नहीं सुनते अधिकारी
शिवपुर तालाब को अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराने के लिए बीते 22 वर्षों से संघर्षरत डॉ. जितेन्द्र सेठ ने रणभेरी को बताया कि हाल ही में, वाराणसी कैंट के विधायक सौरभ श्रीवास्तव से मुलाकात के दौरान, हमने शिवपुर तालाब से मिट्टी और मलवा निकालकर उसे उसके मूल स्वरूप में लाने और भूमाफियों के चंगुल से मुक्त कराने की मांग की। क्योंकि यह कार्य न केवल तालाब की स्वच्छता को बढ़ाएगा, बल्कि स्थानीय पारिस्थितिकी को भी सुधारने में मदद करेगा। जल निकायों का संरक्षण आवश्यक है, क्योंकि वे जैव विविधता को बनाए रखने में सहायक होते हैं और स्थानीय जलवायु को प्रभावित करते हैं। विधायक ने अधिकारियों को आदेशित भी किया बावजूद इसके कोई कार्रवाई नहीं हुई। डॉ. सेठ ने बताया कि तत्कालीन प्रतिनिधि जनसुनवाई प्रधानमंत्री संसदीय कार्यालय द्वारा दिये गये आदेश को जिलाधिकारी वाराणसी ने अवमानना किया। बताया कि विगत 20 अप्रैल 2008 को मुख्य राजस्व अधिकारी वाराणसी द्वारा तालाब को पाटने वालों के विरुद्ध नामजद प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। प्राथमिक की दर्ज होने के बाद भी तालाब पाटने वाले दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कोई सम्यक विधिक कार्यवाही नहीं हुई और अपने रसुक के दम पर वह अपनी मनमानी करते रहे। डॉ. जितेंद्र सेठ ने कहा कि प्रधानमंत्री देश की विधायिका के सर्वोच्च व्यक्ति हैं और साथ ही काशी के सांसद भी हैं। ऐसे में काशी की जनता प्रधानमंत्री के जनसुनवाई कार्यालय में बैठे उनके प्रतिनिधि को उन्हीं के स्वरूप में देखती है। प्रधानमंत्री के कार्यालय में बैठकर जन शिकायतों का निस्तारण कर रहे उनके प्रतिनिधि के आदेश के पीछे की ताकत प्रधानमंत्री कार्यालय से ही प्राप्त होती है। इन परिस्थितियों में हमारे द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय को दिए गए पत्र पर निस्तारण करते हुए विधायक के आदेश को जिला प्रशासन/नगर निगम वाराणसी के अधिकारियों द्वारा गंभीरता से न लेना हमारी भावनाओं को आहत करता है। प्रथम दृष्टिया प्रधानमंत्री कार्यालय के द्वारा जारी आदेश की भी जिला अधिकारी वाराणसी द्वारा अवमानना किया जाना परिलक्षित हो रहा है।