चप्पा चप्पा बेच रहा है जोनल संजीव कुमार !

चप्पा चप्पा बेच रहा है जोनल संजीव कुमार !
  • सड़क किनारे धड़ल्ले से बनाई जा रही अवैध दुकानें 
  • व्यवसायिक क्षेत्रों के चप्पे चप्पे का सौदागर बना जोनल अफसर
  • नाली पटरी पाटकर किया जा रहा अवैध अतिक्रमण 
  • कबीर नगर में पटरी पर बना दी गयी दर्जन भर दुकानें
  • वीसी का साथ फिर इसलिए जोनल संजीव कुमार कर रहा अपना आर्थिक विकास
  • पैसों की हवस में अंधा-गूंगा हुआ वीडीए प्रशासन

अजीत सिंह 

वाराणसी (रणभेरी): प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र, देश की सांस्कृतिक राजधानी और गंगा किनारे बसी वह नगरी, जिसे "मोक्ष की भूमि" कहा जाता है, आज भ्रष्टाचार की गहराइयों में डूबती दिख रही है। वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) के जोन-4 में तैनात ज़ोनल अधिकारी संजीव कुमार पर आरोप है कि उन्होंने भेलूपुर और नगवां वार्ड के एक-एक इंच ज़मीन को नीलाम कर दिया है। वो भी नियमों, कानूनों और कोर्ट के आदेशों को ताक पर रखकर। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं कई बार अवैध निर्माणों पर सख़्त कार्रवाई के निर्देश दे चुके हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा किनारे के 200 मीटर क्षेत्र को निर्माण-मुक्त क्षेत्र घोषित किया है। लेकिन ज़ोनल अधिकारी संजीव कुमार के संरक्षण में इन आदेशों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि... यहां पैसा दो, नक्शा पास कराओ और मनमाफिक मंज़िल वाली इमारत खड़ी कर लो। वाराणसी विकास प्राधिकरण के जोन-4 में ज़ोनल अधिकारी के रूप में तैनात संजीव कुमार का नाम इन दिनों हर गली, हर चौराहे और हर ज़मीन के अवैध सौदे में गूंज रहा है। वे सिर्फ़ एक प्रशासनिक अफ़सर नहीं हैं, बल्कि उन्हें एक ऐसे 'सुपर बिल्डर' के रूप में देखा जा रहा है, जो सरकारी कुर्सी पर बैठकर निजी फायदे के लिए पूरे ज़ोन को टुकड़ों में बेच रहा है।

अफसर नहीं, दलाल बन गया है ज़ोनल संजीव कुमार

सामान्यतः एक ज़ोनल अधिकारी का काम होता है अवैध निर्माण पर रोक लगाना, मानचित्र स्वीकृत करने से पूर्व आवश्यक दस्तावेजों की जांच करना, और नियमों का पालन कराना। लेकिन संजीव कुमार पर लगे आरोपों के अनुसार, वे इन कार्यों के उलट भूमिका निभा रहे हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, वह बिल्डरों से संपर्क कर खुद ‘डील’ तय करते हैं। नक्शा पास कराने के लिए ‘रेट लिस्ट’ तय है। जमीन के क्षेत्रफल, निर्माण की मंज़िल और लोकेशन के अनुसार घूस की रकम तय होती है।
संजीव कुमार अकेले यह खेल नहीं खेल रहे। उनके साथ वीडीए  के कुछ जूनियर इंजीनियर सहित अन्य कर्मचारी भी इस काले कारनामे में शामिल बताए जाते हैं। नक्शा पासिंग फाइलें बिना कोई जांच के फॉरवर्ड कर दी जाती हैं। कुछ मामलों में तो नक्शा पास भी नहीं किया जाता, सिर्फ़ “जोनल हरी झंडी” मिलने के बाद निर्माण शुरू हो जाता है। सूत्र बताते हैं कि संजीव कुमार को वीसी के अलावा राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त है। यही वजह है कि उन पर किसी भी शिकायत या जांच का कोई असर नहीं पड़ता। मुख्यमंत्री के आदेशों की खुलेआम अवहेलना करने के बावजूद उनका स्थानांतरण तक नहीं हुआ। ज़ोन में रोज़ नए अवैध निर्माण शुरू हो रहे हैं, लेकिन ज़िला प्रशासन और वीडीए के वरिष्ठ अधिकारी आंख मूंदे बैठे हैं। आरटीआई कार्यकर्ताओं द्वारा निकाले गए दस्तावेज़ों से पता चला है कि पिछले दो वर्षों में जोन-4 में सैकड़ों निर्माण ऐसे हुए हैं, जिनके पास वैध नक्शा ही नहीं है। कई भवनों का नक्शा वीडीए के रिकॉर्ड में ही मौजूद नहीं है। आरटीआई से यह भी सामने आया कि जोनल ऑफिस से बिना साइन और बिना तकनीकी जांच के फाइलें अप्रूव मानी जाती रहीं। भेलूपुर और नगवां जैसे इलाकों में जहां ज़मीन की क़ीमतें आसमान छू रही हैं, वहीं संजीव कुमार का ‘प्राइवेट परमिशन सिस्टम’ फल-फूल रहा है। जिन बिल्डरों को नक्शा पास नहीं कराया जा सकता, वे सीधा संजीव कुमार से संपर्क करते हैं और निर्माण शुरू कर देते हैं। इस पूरे खेल में वीडीए को करोड़ों का राजस्व नुकसान हो रहा है, लेकिन अफ़सरों की जेबें भर रही हैं।

पहले 

अब 

जोनल की कृपा से सुखानंद बाबा आश्रम के पास उगते होटल

वाराणसी, गंगा के तट पर बसी दुनिया की सबसे प्राचीन नगरी, जहां हर मोड़ पर आस्था की एक नई परत खुलती है। घाट, मंदिर, आश्रम, संन्यासी और संत सब कुछ मिलकर इस नगरी को "मोक्ष की राजधानी" बनाते हैं। लेकिन अब इसी नगरी के हृदयस्थल पर, जहां गंगा अपनी शांत धारा से संतों को सुकून देती थीं, वहां ईंट-गारा और मुनाफे की भूख ने डेरा डाल दिया है। सुखानंद बाबा आश्रम, जो कभी साधना और सेवा का केंद्र था, आज होटल व्यवसायियों और अवैध निर्माण माफिया की आँखों का तारा बना हुआ है। गंगा किनारे स्थित इस आश्रम के ठीक बगल में पिछले दो वर्षों में तीन आलीशान होटल खड़े हो चुके हैं। इन होटलों का निर्माण न तो वैध नक्शों पर आधारित है, न ही किसी पर्यावरणीय मंज़ूरी के तहत। स्थानीय प्रशासन की अनदेखी, वाराणसी विकास प्राधिकरण की चुप्पी और नेताओं की मौन सहमति ने इस पूरे खेल को वैधता की परछाईं दे दी है। सवाल उठता है, आखिर ये निर्माण किसकी शह पर हो रहे हैं? कौन है इनके पीछे? और गंगा जैसी पवित्र धरोहर की भूमि को कैसे इतनी आसानी से व्यवसायिक भूखंड में बदला जा रहा है ? यह आश्रम पिछले कई दशकों से वाराणसी के धार्मिक और समाजसेवी कार्यों का केंद्र रहा है। आश्रम के बाहर रोज़ सैकड़ों श्रद्धालु जुटते थे, कुछ भजन-कीर्तन के लिए, कुछ गंगा स्नान के बाद साधना हेतु। लेकिन अब उसी परिसर के पास हर समय सीमेंट के ट्रक, कंक्रीट मिक्सर और मज़दूरों की आवाजाही अब आम हो गई है।

दुर्गाकुंड से भेलूपुर तक...एक नई अवैध निर्माण बेल्ट

यदि आप दुर्गाकुंड से गंगा की ओर उतरें, तो रास्ते में दर्जनों ऐसे निर्माणधीन भवन मिलेंगे जिनके ऊपर "होटल", "गेस्टहाउस" या "लॉज" का बोर्ड टंगा है। अधिकतर निर्माण पुराने मकानों को गिराकर शुरू किए गए हैं। इनमें से अधिकांश का कोई वैध नक्शा नगर निगम या वीडीए की वेबसाइट पर दर्ज नहीं है। स्थानीय सूत्रों की मानें तो नक्शा मंज़ूरी के नाम पर मोटी रिश्वत लेकर आंखें मूंद ली गईं।

व्यवसायिक क्षेत्रों के चप्पे चप्पे का सौदागर बना जोनल अफसर

वाराणसी विकास प्राधिकरण की जिम्मेदारी शहर के नियोजित विकास की है, लेकिन जब यही संस्था शहर की आत्मा पर अनियंत्रित अतिक्रमण और भ्रष्टाचार को नजरअंदाज करने लगे, तो सवाल उठना स्वाभाविक है। बीते कुछ महीनों में ज़ोनल अधिकारी संजीव कुमार के अधीन क्षेत्रों में जिस तरह से सार्वजनिक भूमि, सड़क किनारे की पटरी, नाली, पार्किंग स्थल और यहां तक कि गंगा घाट के नजदीकी इलाकों में भी अवैध निर्माण कार्यों की बाढ़ आ गई है, वह न केवल प्रशासनिक मिलीभगत की ओर इशारा करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि 'विकास' के नाम पर कैसे ज़मीनों की खुली नीलामी हो रही है। सबसे ताजा मामला दुर्गाकुंड के कबीर नगर क्षेत्र का है, जहां सरकारी पटरी और नाली के ऊपर करीब दर्जन भर दुकानें खड़ी कर दी गई हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि यह सब जोनल अधिकारी संजीव कुमार की मौन सहमति और सुविधा शुल्क के बदले हुआ है। बिना किसी वीडीए अफ़सर की वैधानिक स्वीकृति के, बिना नक्शा पास कराए, चन्द दिनों में स्थाई दुकानें खड़ी कर दी गईं। सवाल उठता है कि यह सब किसकी अनुमति से हुआ ?  गंगा किनारे से लेकर दुर्गाकुंड से लेकर भेलूपुर तक के एचएफएल क्षेत्रों में किसी भी प्रकार के निर्माण पर प्रतिबंध है, फिर भी संजीव कुमार के अधीन क्षेत्रों में दर्जनों निर्माण बिना रोकटोक जारी हैं। सूत्रों के मुताबिक, प्रति निर्माण स्थल 5 से 10 लाख रुपए तक की 'डील' होती है, जिसमें हिस्सा ऊपर तक जाता है।

सड़कें बनी दुकान, नाली बनी फाउंडेशन

बनारस की पुरानी गलियों में पहले ही जगह की भारी कमी है। लेकिन अब सड़क किनारे चलने भर की जगह भी छीन ली गई है। कई क्षेत्रों में नाली पटरी को पाटकर उस पर पक्के फर्श बनाकर दुकानें खड़ी कर दी गई हैं। मालूम हुआ कि यहाँ सब चलता है। नक्शा-वक्शा कुछ नहीं चाहिए, बस जोनल साहब के आदमी को पैसा दो। हज़ारों में एनओसी मिल जाती है।" इसका मतलब साफ है, वीडीए अब स्वीकृति संस्था नहीं, बल्कि 'परमिशन बेचने वाला बाजार' बन चुका है। सूत्रों के अनुसार, कई स्थानीय पार्षद और राजनीतिक दलों के छुटभैये नेता भी इन निर्माण कार्यों में दलाली करते हैं। वे जमीन दिलवाने से लेकर नक्शा पास कराने तक का काम करवाते हैं। इस नेटवर्क के केंद्र में फिलहाल जोनल अफसर संजीव कुमार का नाम सर्वोपरि हैं, जो हर निर्माण से हिस्सा वसूलते हैं और फिर शिकायत होने पर वीडीए की कार्रवाई को 'कागजी खानापूर्ति' तक सीमित रखते हैं।

वीसी साहब ! कबतक धारण किए रहेंगे मौन ?

वाराणसी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष (वीसी) पुलकित गर्ग की भूमिका पर भी उंगलियां उठ रही हैं। जब वीडीए के ज़ोनल अधिकारी इस तरह खुलेआम सरकारी ज़मीनों को बेचने और निर्माण की अनुमति देने में लगे हों, और वीसी मौन रहें या कार्रवाई न करें, तो सीधा संदेश यही जाता है कि इस पूरे खेल में ऊपर तक साझेदारी है। अब तो आम जनता भी पूछ रही है कि वीसी साहब कब तक रहेंगे मौन ?
निष्क्रियता नहीं, जानबूझ कर की जा रही अनदेखी

जब किसी संस्था के अधिकारी हर स्तर पर नियमों की अनदेखी करें, जब अवैध निर्माणों पर कार्रवाई करने के बजाय केवल दिखावे के पाईप हटाकर चले जाएं, जब हर शिकायत को दबा दिया जाए, तो यह निष्क्रियता नहीं बल्कि संगठित भ्रष्टाचार कहलाता है। यह भ्रष्टाचार की कहानी नहीं है, बल्कि एक शहर की आत्मा पर हो रहे हमले की दस्तावेज़ी गवाही है। बनारस जैसे धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक नगर में जब गंगा किनारे की ज़मीन तक बिकने लगे और वह भी सरकारी अफसरों की मिलीभगत से, तो यह पूरे प्रशासन, मीडिया और समाज के लिए चेतावनी की घंटी है। जोनल अधिकारी संजीव कुमार के कार्यकाल में बनारस का एक-एक चप्पा बिक रहा है। गंगा घाट से लेकर कालोनी की गलियों तक, हर जगह 'विकास' के नाम पर भ्रष्टाचार और अतिक्रमण का जाल बिछाया जा चुका है। वीडीए अब विकास की नहीं, बल्कि 'वसूली' की संस्था बनकर रह गई है। अगर अब भी प्रशासन ने आंखें मूंदे रखीं, तो आने वाली पीढ़ियां केवल किताबों में ही 'काशी की गलियों' और 'गंगा के घाटों' को पढ़ पाएंगी।

पार्ट-21 

रणभेरी के अगले अंक में पढ़िए.....वीसी साहब के ठेंगे पर नियम और कानून