सरकार के दामन पर दाग लगाने वाले अधिकारियों पर कब होगी कार्रवाई !
कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति को ही अधिकारियों ने बना लिया है लूट का जरिया
विभागों में भ्रष्टाचारियों का ऐसा दबदबा कि खोखला हो गया जीरों टॉलरेंस का दावा
वाराणसी (रणभेरी/विशेष संवाददाता)। उत्तर प्रदेश के तेज तर्रार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आये दिन बड़े ही बेबाकी के साथ यह कहते हुए सुने और देखे जाते है कि यूपी में भ्रष्टाचार करने वालो की खैर नहीं होगी, जो भ्रष्टाचार में लिप्त होगा वो सलाखों के पीछे होगा। बीते दिनों मुख्यीमंत्री योगी आदित्य नाथ ने राज्य कर विभाग के सबसे भ्रष्टव अफसरों की सूची मांगी है जिसमें जोन स्तयर पर सबसे खराब छवि वाले अधिकारियों के नामों की सूची बनाकर शासन को भेजी जाएगी। यह फैसला प्रमुख सचिव राज्ये कर एम देवराज ने राज्यब कर की समीक्षा बैठक में लिया। समीक्षा बैठक के दौरान प्रमुख सचिव राज्या कर ने कहा कि विशेष जांच दल और सचल दल के सबसे भ्रष्ट। अधिकारियों के नाम और डिटेल बताएं। इसके लिए कुछ मानक जारी किए गए हैं। इन मानकों पर अगर ये खरे नहीं उतरते हैं तो उनकी रिपोर्ट बनाकर शासन को भेजा जाएगा।
इस आदेश से यह प्रतीत होता है कि सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ प्रदेश के किसी भी विभाग में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को किसी कीमत पर बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। पर यह विडंबना है कि प्रदेश के अधिकारी ही मुख्यमंत्री के आंखों में धूल झोंकने का काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में ऐसे कई विभाग है जहां के भ्रष्ट अधिकारियों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जीरो टॉलरेंस के सारे दावों को झूठा साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखी है। पीएम के संसदीय क्षेत्र में भाजपा के 8 विधायक, दो मंत्री और सीएम के खासमखास तक होने के बाद भी कई ऐसे विभाग हैं जहां भ्रष्टाचार ने न केवल अपनी जड़े मजबूत कर लीं हैं बल्कि इन विभागों के अफसरों ने आय से कहीं ज्यादा अधिक नामी-बेनामी संपत्ति इकठ्ठा कर ली है। वाराणसी में ऐसे विभागों के दर्जनों अधिकारी हैं जो मुख्यमंत्री को गुमराह कर मलाई काट रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या ये सभी अधिकारी और खासमखास वास्तव में सीएम योगी के आंखों में धूल झोंक कर गुमराह कर रहे या फिर मुख्यमंत्री का जीरो टॉलरेंस की नीति सिर्फ एक जुमला है!
वाराणसी विकास प्राधिकरण
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का सबसे भ्रष्टतम विभाग है, वाराणसी विकास प्राधिकरण। इस विभाग के भ्रष्ट और लोभी अधिकारियों ने निजी स्वार्थ की बदौलत शहर में अवैध निमार्णों की बाढ़ सी ला दी है। शहर का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहां अवैध मकान न बने हो। वीडीए के भ्रष्ट अधिकारी सील और डील का खेल खेलकर सीएम योगी आदित्यनाथ के आंख में भी निरंतर धूल झोंकते हैं। सूत्रों की माने तो शहर में हो रहे तमाम व्यवसायिक व बड़े अवैध निमार्णों को वीडीए वीसी पुलकित गर्ग का खुला संरक्षण प्राप्त है। अवैध निर्माण के बदले जो सील- डील का खेल चलता है, उसका मोटा सा हिस्सा नीचे से ऊपर तक के अधिकारियों में बंदरबांट की जाती है। वीडीए वीसी पुलकित गर्ग का बुलडोजर सिर्फ गरीबों के निर्माण पर चलता है या फिर उस निर्माण पर जहां डील नहीं हो पाती। जब धन्नासेठों और रसूखदारों के अवैध निर्माण की बारी आती है तो वीडीए वीसी के बुलडोजर का चक्का जाम हो जाता है। वीडीए वीसी के देख रेख में बेधड़क अवैध निमार्णों के जरिये शहर विकास के बहाने विनाश की लीला रची जा रही है, इस बात से शायद सीएम योगी अंजान है, वरना ऐसे भ्रष्ट अधिकारी अबतक कुर्सी पर बैठकर मलाई नहीं काट रहे होते। सूत्र बताते हैं कि शहर के चप्पे-चप्पे पर होने वाले अवैध निर्माण का पता लगाने के लिए बाकायदा विभाग के बड़े अफसरों ने अपना-अपना आउटसाइडर सेट कर रखा है, जो घूम-घूम कर अवैध निर्माण की रेकी करते है और फिर ऐसे अवैध निर्माण की सूचना वीडीए के बड़े अधिकारी तक पहुंचाते हैं। जिसके बाद विभागीय अधिकारी बकायदा लाव-लश्कर के साथ अवैध निर्माण तक पहुंचते है। यहीं से डील डॉल देने के बाद शुरू होता है वीडीए अफसरों का असली खेल और इस खेल के हेड कोच होते हैं वीडीए वीसी।
परिवहन विभाग: जिसे होना चाहिए था सलाखों के पीछे उसे मिला प्रमोशन का ईनाम
वाराणसी (रणभेरी)। कुछ ऐसे मामले हैं जो सरकार के मंशा पर भी संदेह पैदा करते है। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक ऐसा ही विभाग है परिवहन विभाग जिसकी कहानी तो सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़ी करती है ! सूत्र बता रहे हैं कि परिवहन विभाग के वाराणसी कार्यालय में उप परिवहन आयुक्त के पद पर रहे अशोक कुमार सिंह उर्फ ए.के.सिंह के भ्रष्टाचार की खबर जब विगत वर्ष रणभेरी में प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी तब तमाम मजबूत सबूतों के बावजूद परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह ने तत्कालीन उप परिवहन आयुक्त अशोक कुमार सिंह उर्फ ए.के.सिंह को बचाने के एवज में उनसे मोटी रकम वसूलकर पहले तो उन्हें निलंबित करने के बजाय मुख्यालय से संबद्ध कर लिया और फिर बाद में उन्हें बाकायदा प्रमोशन का ईनाम भी दे डाला। जबकि भ्रष्टाचार का यह मामला बड़ा चर्चित हुआ था जिसमे तत्कालीन उप परिवहन आयुक्त अशोक कुमार सिंह उर्फ ए.के.सिंह की आवाज का आडियों पुख्ता सबूत के रूप में वायरल भी हुआ था। दरअसल ए.के.सिंह के देख-रेख में ही पूर्वांचल के दर्जन भर जिलों में ओवरलोड ट्रकों का संचालन धड़ल्ले से कराया जा रहा था। इस कुकृत्य के दम पर पूर्व उप परिवहन आयुक्त ए.के.सिंह द्वारा सरकार को प्रतिमाह करोंड़ों रुपए के राजस्व की क्षति पहुंचाई गई। इस मामले में गूंज उठी रणभेरी ने परिवहन विभाग के एक बड़े भ्रष्टाचार का स्टिंग आॅपरेशन के जरिए सनसनी खेज खुलासा कर 27 फरवरी के अंक में सबूतों के साथ खबर प्रकाशित किया था। जिसमे चंदौली जिले में प्रति माह एक हजार ओवरलोड ट्रकों का संचालन कराने की योजना के पुख्ता सबूत पाए गये थें। यही नहीं अखबार ने 23 मार्च के अंक में मिजार्पुर जनपद में पिछले तीन माह में अवैध रूप से चलने वाले लगभग 18 हजार ओवरलोड ट्रकों की सूची भी प्रकाशित किया था। प्रमुखता से प्रकाशित इस खबर में यह बताया गया था कि वाराणसी मंडल के उप परिवहन आयुक्त ए के सिंह के की देख-रेख में पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और सीएम के गृह जनपद गोरखपुर सहित पूर्वांचल के 14 जिलों में ओवरलोड ट्रकों का काला धंधा बदद्दस्तुर जारी है। इस घपलेबाजी को लेकर रणभेरी ने लगातार ठोस तथ्यों और साक्ष्यों के साथ खबरें भी प्रमुखता से प्रकाशित की लेकिन शासन -प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेंगा। योगी सरकार के जीरो टालरेंस वाले दावे को दरकिनार करते हुए परिवहन मंत्री की सरपरस्ती में ही पूरे पूर्वांचल में ओवरलोडिंग का खेल धड़ल्ले से चल रहा है। विडंबना यह है कि इतना कुछ होने के बाद आजतक पूर्व परिवहन आयुक्त वाराणसी के खिलाफ न कोई जांच बैठी न ही मामले में कार्रवाई हुई बल्कि साहब की इतनी मेहरबानी जरूर हुई कि जिसे सलाखों के पीछे होना चाहिए उसे ईनाम के तौर पर प्रमोशन दे दिया गया ताकि भ्रष्टाचार की खेती लहलहाती रहे।
सीएमओ के सह पर धड़ल्ले से चल रहे अवैध अस्पताल और डायग्नोस्टिक सेंटर
पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में अवैध अस्पतालों और डायग्नोस्टिक सेंटरों का कारोबार जिम्मेदारों के संरक्षण में खूब फल-फूल रहा है। स्वास्थ्य विभाग की नाकामी और जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही के चलते इन अवैध संस्थानों का नेटवर्क बढ़ता जा रहा है। यह अस्पताल और सेंटर बिना किसी प्रमाणपत्र और पंजीकरण के चल रहे हैं, जबकि इनमें होने वाले इलाज और जांच की गुणवत्ता पर भी सवाल उठ चुके हैं। इन अवैध अस्पताल और डायग्नोस्टिक सेंटरों पर सीएमओ की मेहरबानी है। वाराणसी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी के मौन सहमति से न सिर्फ लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ किया जा रहा बल्कि मरीजों से लूटने का अड्डा भी बन चुका है। बीते दिनों रणभेरी अखबार ने वाराणसी के एक ऐसे ही अवैध डायग्नोस्टिक सेंटर "करौली" का मुद्दा पूरे दमदारी के साथ उठाया था जो मरीज को न सिर्फ गलत रिपोर्ट देता है बल्कि उस डॉक्टर के नाम से मरीजों को रिपोर्ट दी जाती जिसका उस सेंटर से कोई वास्ता ही नहीं है। स्वास्थ्य विभाग ने माना था कि करौली डायग्नोस्टिक सेंटर अवैध रूप से संचालित हो रहे हैं। मामले में लंका थाने में मुकदमा भी दर्ज हुआ लेकिन रसूखदारों के धन बल के आगे मामला ठंडे बस्ते में चला गया। सूत्रों की माने तो बावजूद इसके करौली डायग्नोस्टिक सेंटर मरीजों के स्वास्थ्य की परवाह किये वगैर सी.एम.ओ. कार्यालय को करौली डायग्नोस्टिक सेंटर के प्रबंध निदेशक द्वारा अवैध मोटी रकम देकर इन सारी बातों को दबा दिया गया और फिर फर्जी व मनमाने तरीके से करौली डायग्नोस्टिक सेंटर चला रहा है। करौली डायग्नोस्टिक सेंटर डॉ. एस. सेंथिल कुमार के फर्जी हस्ताक्षर से की जांच रिपोर्ट जारी कर मरीजों व नागरीकों के स्वास्थ्य के साथ बड़े पैमाने पर खेल कर रहे है। सूत्रों ने बताया कि स्वास्थय विभाग वाराणसी के अधिकारी व कर्मचारी इस फजीर्वाड़े में शामिल है, लिहाजा अंधा, गूंगा और बहरा बने है।
पहले सील और फिर डील की जिंदा गवाही दे रही बृज इंक्लेव कॉलोनी की यह अवैध इमारत
सीएम के खासमखास भी नहीं बताते असली सच !
जब वाराणसी विकास प्राधिकरण के बोर्ड मेंबर का गठन किया होगा तो प्रशासनिक अधिकारियों के अलावा यह सोचकर सत्ता पक्ष के कुछ सदस्यों को शामिल किया होगा कि विभाग में पारदर्शिता बनी रहेगी। लेकिन यह विडंबना है कि विभाग के बोर्ड मेंबर में शामिल सत्ता पक्ष के सदस्यों को भी अधिकारियों के कारनामे के बारे में नहीं मालूम ! या फिर सत्ता पक्ष के सदस्य भी इन अधिकारियों के साथ मिलकर सीएम योगी को गुमराह करने का काम कर रहे हैं। आपको बता दें कि वीडीए के बोर्ड मेंबर में वीसी सहित कुल 13 सदस्य है जिसमें 10 प्रशासनिक अधिकारी और 3 सत्ता पक्ष के प्रतिनिधि शामिल है। इन तीनों में एक नाम अम्बरीष सिंह भोला का है। अम्बरीष सिंह भोला सीएम योगी आदित्यनाथ के खासमखास माने जाते हैं। लेकिन यह विडंबना है कि जिस वीडीए बोर्ड का सदस्य मुख्यमंत्री के करीबी को बनाया गया है उनको भी शायद यह नहीं मालूम की वीडीए के अधिकारी किस कदर शहर में अवैध निर्माण को सह देकर भ्रष्टाचार की इबारत लिख रहे हैं। यह प्रश्न संदेह पैदा करता है की वीडीए बोर्ड के मेंबर को इस बात की भनक नहीं होगी कि शहर में वीडीए के भ्रष्ट अधिकारी किस कदर भ्रष्टाचार की कहानी गढ़कर सीएम के छवि को ही नहीं बल्कि शहर की सुंदरता को भी धूमिल कर रहे है।
वीडीए वीसी के संरक्षण में एचएफएल क्षेत्र में खड़ी हो गई आलिशान इमारत